मेरे नेक अल्फाज भर दे घाव जख्म
जिंदगी भर का तोहफा, हमको मिला संविधान
सबके लिए अधिकार, छोटी बच्ची और किसान…
कहते हैं अच्छा गीत और संगीत किसी जादूगर से कम नहीं होता, क्योंकि वो सुनने वालों पर उतना ही असर करता है जैसे कोई जादूगर आपको ख्वाब की दुनिया दिखा रहा हो. ये जानते हुए की जादूगर की ये ख्वाब की दुनिया झुठी है पर जादू देखने वाले को उससे निकलने का मन नहीं करता. सोशल मीडिया पर हमें भी ऐसा ही एक जादूगर दिखा, जिसके गाने गरीबों को उनका हक दिलाने की बात करता है. नीली चिड़िया वाले सोशल प्लेटफॉर्म पर लोग उसे जादूगर के नाम से नहीं बल्कि रैपर दुले रॉकर के नाम से जानते हैं.
रैपर दुले रॉकर यानि दुलेश्वर टांडी रहने वाले ओडिशा के हैं पर उनके रैप सॉन्ग यूपी और बिहार में भी सुने जा रहे हैं. उनके रैप सॉन्ग में दर्द है किसानों, मजदूरों और दलितों का. दुले खुद एक मजदूर हैं. बीएसी ऑनर्स से ग्रेजुएट होने के बाद नौकरी की तलाश की, सपना था डॉक्टर बनने का. अच्छी नौकरी की तलाश में रायपुर गए पर उन्हें एक होटल में काम करना पड़ा. कोविड लॉकडाउन में दुले को अपने गांव लौटना पड़ा और फिर सफर शुरू हुआ रैपर बनने का.
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जाति और जातिवाद लंबे समय से भारत में एक ऐसी बीमारी है, जिसका अब तक कोई इलाज नहीं है. वहीं भारतीय सिनेमा, गीतकार और गायक भी इस समस्या की अनदेखी करते रहे हैं. बॉलीवुड फिल्मों में जातिगत वास्तविकताओं को अमीर बनाम गरीब की जोड़ी या दया के चश्मे से देखता रहा. पर अब सोशल मीडिया पर खुद दलित सिंगर अपने आवाज को बुंलद कर रहे हैं. दुले भी उन्हीं में से एक हैं.
दुले बताते है कि लॉकडाउन में मैंने मजदूरों के पलायन पर जो देखा, उसे लिखा और गाया. यह लोगों को काफी पंसद आया. जो हमने बचपन से देखा है, सहा है उसी को अब रैप सॉन्ग के जरिए सबके सामने लाता हूं. दुले ने बताया कि वह खुद एक दलित परिवार से आते हैं और पिता किसान है. मेरे सॉन्ग को काफी लोग पंसद भी करते हैं और कुछ लोग नापंसद भी. दुले बताते हैं कि कुछ लोग उन्हें कहते हैं कि सरकार को टारगेट करने के लिए तुम ऐसे रैप सान्ग बनाते हो. इस पर उन्होंने कहा कि मेरा मकसद किसी भी सरकार को टारगेट करने का नहीं बल्कि अपने मुद्दे उठाने का है.