नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा और ग्रेटर नोएडा के डेवलपर्स को बड़ी राहत दी है. सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों अथॉरिटी को डेवलपर्स पर बकाया रकम का ब्याज भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड बेस्ड लैंडिंग रेट (एमसीएलआर) से जोड़ने का आदेश दिया है. जस्टिस अरुण मिश्रा और यूयू ललित की पीठ की ओर से दिये गये आदेश में कहा गया है कि डेवलपर्स को जनवरी, 2010 से बकाए रकम पर ब्याज एसबीआई के एमसीएलआर के अनुसार चुकाना होगा. अभी करीब तीन साल के कर्ज पर एसबीआई का एमसीएलआर करीब 7.3 फीसदी है. कोर्ट के इस आदेश से दोनों प्राधिकरण को थोड़ी राहत जरूर मिली है, लेकिन उससे ज्यादा बिल्डरों को फायदा पहुंचेगा.
अब तक कई मामलों में पेनल्टी लगने से डेवलपर्स को 20 फीसदी से अधिक दर पर ब्याज चुकाना होता था. इस फैसले के आने के बाद करीब 7.3 फीसदी की दर से ब्याज चुकाना होगा. वह भी पिछले 10 साल के बकाए रकम पर. हालांकि, बिल्डरों को तीन महीने के भीतर 25% बकाया का भुगतान करना होगा. कोर्ट के आदेश के मुताबिक, सभी बकाया राशि को एक वर्ष के भीतर चुकाना होगा. जानकारों का कहना है कि इस फैसले से डेवलपर्स पर ब्याज का बोझ कम होगा. इससे उन्हें बकाया भुगतान करने में मदद मिलेगी. साथ ही डेवलपर्स को अथॉरिटी से पूर्णता प्रमाण पत्र (कम्पलीशन सर्टिफिकेट) लेने में आसानी होगी. इससे करीब 1.25 लाख फ्लैट का पोजिशन मिलने की उम्मीद है.
सुप्रीम कोर्ट ने अथॉरिटी की ओर से ब्याज की नई दर लाने की पेशकश को खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि यह फैसला 1 जनवरी, 2010 से सभी लीज होल्डर के लिए लागू होगा. नोएडा और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी की ओर से पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता उपस्थित हुए थे. कोर्ट ने कहा कि ज्यादा ब्याज दर के कारण डेवलपर्स कर्ज चुकाने में सक्षम नहीं है. कोर्ट ने बैंकों को भी लोन एग्रीमेंट का मामला बिना देरी के 10 दिन में पूरा करने का निर्देश दिया.
रियल एस्टेट विशेषज्ञों की मानें तो इस फैसले का सबसे बड़ा फायदा हाउसिंग सोसाइटी के कम्पलीशन सर्टिफिकेट पर देखने को मिलेगा. नोएडा-ग्रेटर नोएडा में लाखों फ्लैट का पोजिशन अथॉरिटी का बकाया नहीं चुकाने के कारण अटका हुआ है. इस फैसले के बाद इसमें बड़ी राहत मिलेगी. घर खरीदारों को उनके घर की चाबी मिलने की उम्मीद बढ़ गयी है. मालूम हो कि ग्रेटर नोएडा में 200 से अधिक बिल्डर परियोजनाएं हैं. जो कि बकाया भुगतान न कर पाने की वजह से फंस गए हैं. अधिक ब्याज दर लिए जाने की वजह से बिल्डरों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. जुलाई में आए इस फैसले पर प्राधिकरण ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि इतना कम ब्याज लेने से अधिक आर्थिक हानि होगी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई कर आदेश दिया.
posted by ashihs jha