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गुनाहों का देवता और कनुप्रिया के लेखक धर्मवीर भारती ने धर्मयुग के जरिये अनगिनत प्रतिभाओं को गढ़ा

धर्मवीर भारती की कनुप्रिया एक ऐसी रचना है जिसकी चर्चा आज के दिन अवश्य होनी चाहिए. भारतीय साहित्य में राधा-कृष्ण के संबंधों को लेकर कई रचनाएं हुई हैं, लेकिन कनुप्रिया में धर्मवीर भारती ने कनुप्रिया यानी राधा के अंतर्मन की पीड़ा और उनकी अनुभूतियों को जिस तरह व्यक्त किया है वह अप्रतिम है.

कनुप्रिया, गुनाहों का देवता, सूरज का सातवां घोड़ा, अंधा युग, बंद गली का आखिरी मकान और मुर्दों का गांव के रचियता धर्मवीर भारती का आज जन्मदिन है. धर्मवीर भारती हिंदी साहित्य के एक ऐसे हस्ताक्षर हैं, जिनके बिना साहित्य की कल्पना ही बेमानी है.

हिंदी साहित्य के क्लासिक में शुमार है गुनाहों का देवता

गुनाहों का देवता उनका एक ऐसा उपन्यास है, जिसे हिंदी साहित्य के क्लासिक में शामिल किया जाता है. हालांकि इस उपन्यास की निंदा भी काफी हुई है, लेकिन यह कहने में भी कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि यह उपन्यास किशोरवय के लोगों को खासा आकर्षित करती रही है और उनकी मन:स्थिति का इसमें जिस तरह से वर्णन किया गया है, वह अद्‌भुत और अतुलनीय है.

सूरज का सातवां घोड़ा में किया प्रयोगात्मक लेखन

वहीं जब हम धर्मवीर भारती की सूरज का सातवां घोड़ा पढ़ते हैं तो हमें उनके अद्‌भुत प्रयोग की जानकारी मिलती है और हर पाठक यह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि क्या प्रेम में निष्कर्ष निकालना संभव है. क्या उन निष्कर्षों के आधार पर हम अपना जीवन जी सकते हैं. यह उपन्यास जो कुछ कहती है, उसकी जड़ें इंसानी जीवन में अंदर तक गड़ी हैं.

कनुप्रिया में नारी मन की अद्‌भुत अभिव्यक्ति

धर्मवीर भारती की कनुप्रिया एक ऐसी रचना है जिसकी चर्चा आज के दिन अवश्य होनी चाहिए. भारतीय साहित्य में राधा-कृष्ण के संबंधों को लेकर कई रचनाएं हुई हैं, लेकिन कनुप्रिया में धर्मवीर भारती ने कनुप्रिया यानी राधा के अंतर्मन की पीड़ा और उनकी अनुभूतियों को जिस तरह व्यक्त किया है वह अप्रतिम है. शायद नारी मन की ऐसी अभिव्यक्ति किसी और रचना में नहीं हुई है.

धर्मयुग और धर्मवीर भारती का संबंध

धर्मवीर भारती ना सिर्फ एक उच्चस्तरीय लेखक और कवि थे, बल्कि वे एक बेहतरीन पत्रकार और संपादक भी थे. धर्मयुग जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका का उन्होंने लगभग 28 सालों तक संपादन किया था. धर्मवीर भारती ने अपनी पत्रिका के जरिये कई प्रतिभाओं को निखरा या गढ़ा. उन्होंने धर्मयुग में राजनीति, साहित्य, धर्म, कला और संस्कृति हर चीज को अलग अंदाज में पेश किया.

इलाहाबाद में हुआ था जन्म

धर्मवीर भारती का जन्म 25 दिसंबर 1926 को इलाहाबाद के अतरसुइया मोहल्ले में एक साधारण परिवार में हुआ था. उनके पिता का निधन उनके बचपन में ही हो गया था, इसलिए उन्होंने काफी संघर्ष किया और उनका यह संघर्ष उनके अनुभव में शुमार था. इलाहाबाद धर्मवीर भारती की रचनाओं में शामिल होता था, जिस तरह वे इलाहाबाद का वर्णन करते हैं किसी भी व्यक्ति को उस शहर से प्यार हो सकता है. वे अपनी रचना गुनाहों का देवता में लिखते भी हैं कि इलाहाबाद का रचयिता कोई रोमांटिक कलाकार होगा.

इलाहाबाद उनके दिल में बसता था

इलाहाबाद से उनका प्रेम जगजाहिर है. लेकिन उसी इलाहाबाद को धर्मवीर भारती छोड़कर जब गये तो वापस नहीं आये. इसकी वजह क्या थी, यह कोई जान नहीं पाया, क्योंकि इलाहाबाद में उनका दिल बसता था. धर्मवीर भारती ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ही पढ़ाई की थी और फिर शोध भी किया था. उनका नाटक अंधा युग भी एक कालजयी रचना है. इस नाटक के पात्र भले ही महाभारत काल के हैं, लेकिन इसमें वर्णन जो कुछ हुआ है वह आधुनिक काल की समस्याओं पर है.

पद्मश्री से सम्मानित थे धर्मवीर भारती

धर्मवीर भारती ने आजीवन हिंदी भाषा-साहित्य की सेवा की. चाहे वे एक साहित्यकार के रूप में हों या फिर एक पत्रकार और संपादक के रूप में. उनकी सेवाओं के लिए सरकार ने उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया था. उनकी कई रचनाओं पर बाॅलीवुड में फिल्में भी बनीं. उन्होंने एक बार लिखा था-मैं लिख-लिखकर सीखता चल रहा हूं और सीख-सीखकर लिखता चल रहा हूं.

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