Varanasi News: पंडित मदन मोहन मालवीय की बगिया बीएचयू में शिक्षक बनकर अपने ही गुरु को दक्षिणा के तौर पर उपाधि दे दी. बीएचयू में 84 वर्ष के अपने गुरु सरीखे छात्र डॉ. अमलधारी सिंह को अपने पूर्व शिष्य के अंडर में डी. लिट की उपाधि से नवाजा गया है. इस उम्र में पहले डी. लिट धारक बनकर डॉ. अमलधारी सिंह ने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड में रिकॉर्ड कायम करने के लिए आवेदन भी भेज दिया है.
बीएचयू संस्कृत के विभागाध्यक्ष प्रो. उमेश सिंह जो कि डॉ. अमलधारी सिंह के पूर्व शिष्य रह चुके हैं. उन्होंने आर्ट डिपार्टमेंट के एनी बेसेंट सभागर में उन्हें सम्मान के साथ यह उपाधि दी. डॉ. अमल धारी सिंह आजाद भारत के पहले पीएम पंडित जवाहर लाल नेहरू से भी चीन युद्ध के समय 13 जनवरी 1963 में बेस्ट ट्रेनर का अवार्ड भी ले चुके हैं. बीएचयू में गुरुवार को 84 साल के छात्र डॉ. अमल धारी सिंह को अपने पूर्व शिष्य के अंडर में डी. लिट की उपाधि से नवाजा गया. यह विषय बहुत कम जगह देखने-सुनने को मिलता है कि गुरु को किसी मानद उपाधि से उनका शिष्य नवाजे. मगर यह बात चरितार्थ की है. संस्कृत के विभागाध्यक्ष प्रो. उमेश सिंह ने जिन्होंने अपने गुरु डॉ. अमलधारी सिंह को डी. लिट उपाधि दी. ऐसा करने वाले डॉ. अमलधारी सिंह दुनिया के सबसे उम्रदराज छात्र बन गए हैं. उपाधि मिलने के बाद कला संकाय के डीन प्रोफेसर विजय प्रताप सिंह ने कहा कि दुनिया में अभी ऐसा कोई विश्वविद्यालय नहीं रहा. जहां पर 84 साल की उम्र में किसी ने यह उपाधि ली है. जल्द ही गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड के लिए आवेदन दिया जाएगा.
अपने छात्र प्रो. उमेश सिंह द्वारा डी. लिट की उपाधि मिलने के बाद डॉ. अमलधारी सिंह काफी प्रसन्न नजर आ रहे थे. 84 साल की उम्र में यह उपाधि प्राप्त करना अपने आपमें गर्व का विषय है. ऐसा करने वाले डॉ. अमलधारी सिंह दुनिया के सबसे उम्रदराज छात्र बन गए हैं। इससे पहले 2015 में केरल के 82 साल वेल्लायाणी अर्जुनन को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की तरफ से डी. लिट की उपाधि दी गई थी. इससे पहले अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के नाम यह रिकॉर्ड था. डि. लीट की उपाधि मिलने के बाद कला संकाय के डीन प्रोफेसर विजय प्रताप सिंह ने कहा कि दुनिया में अभी ऐसा कोई विश्वविद्यालय नहीं रहा, जहां पर 84 साल की उम्र में किसी ने यह उपाधि ली है.
अमलधारी सिंह ने 18 फरवरी, 2021 को 83 वर्ष की उम्र में डी. लीट करने के लिए संस्कृत विभाग में रजिस्ट्रेशन कराया था. ऋग्वेद में जमा उनकी थीसिस में प्लेगरिज्म शून्य था. इसका मतलब यह है कि उनकी थीसिस पूर्णंत: मौलिक थी. कहीं से कुछ भी कॉपी-पेस्ट नहीं था. उमेश सिंह एक बार अमलधारी के शिष्य रहे, दूसरी बार प्रतिस्पर्धी बने और अब अंत में गुरु बन गए. आर्मी से ट्रेनिंग ऑफिसर की नौकरी पूरी करने के बाद डॉ. अलमधारी सिंह एक बार टीचिंग पद के लिए इंटरव्यू में डॉ. उमेश सिंह के साथ प्रतिस्पर्धी थे. इसमें डॉ. अमलधारी सिंह का सेलेक्शन हो गया. इसमें डॉ. उमेश सिंह का नाम वेटिंग लिस्ट में आ गया. यह देख अमलधारी सिंह ने तत्काल अपना नाम वापस ले लिया और नौकरी उनके शिष्य डॉ. उमेश को मिल गई.
छात्र जीवन से निकलने के बाद डॉ. अमलधारी ने आर्मी ज्वाइन कर ली थी. रिटायरमेंट के स्कूल में टीचिंग का काम शुरू किया. यहां पर उमेश सिंह उनके छात्र थे. विजय बहादुर सिंह ने बताया कि आज का दिन विश्वविद्यालय के लिए इतिहास में दर्ज हो गया. इस कार्यक्रम का संचालन डिप्टी लाइब्रेरियन डॉ. संजीव सराफ, धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर अशोक सिंह ने किया. पूरे कला संकाय के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष मौजूद रहे. अमलधारी सिंह की पहली पुस्तक योग सूत्र 1969 में प्रकाशित हुई. इसके बाद सांख्य दर्शन, कालीदास, अंग्रेजी, हिंदी और संस्कृत का प्रकाशन हुआ. डॉ. अमलधारी सिंह का जन्म जौनपुर के केराकत स्थित कोहारी गांव में 22 जुलाई, 1938 को हुआ था. प्रयागराज से स्नातक किए थे. इसके बाद BHU से 1962 में एमए और 1966 में पीएचडी की. यहीं से NCC के वारंट ऑफिसर और ट्रेनिंग अफसर से लेकर आर्मी का सफर पूरा किए. चीन युद्ध के बाद उन्हें 13 जनवरी, 1963 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के हाथों बेस्ट ट्रेनर का अवार्ड मिला था.
रिपोर्ट : विपिन सिंह