Dussehra: गोरखपुर में गंगा जमुनी तहजीब की अनोखी मिसाल, 65 साल से रावण का पुतला बना रहा मुस्लिम परिवार
गोरखपुर में एक ऐसा मुस्लिम परिवार है, जो 65 साल से गंगा जमुनी तहजीब को बचाए रखने के लिए भरसक प्रयास कर रहा है, ये प्रयास किस रूप में किया जा रहा है फर्क नहीं पड़ता, लेकिन इसके पीछे जो भावना है, वो वाकई काबिले तारीफ है. ये परिवार 65 साल से रावण का पुतला बना रहा है.
Gorakhpur News: गोरखपुर के बेनीगंज मोहल्ले में एक ऐसा परिवार है, जो गंगा जमुनी तहजीब के किसी बड़े उदाहरण से कम नहीं है. यहां समीउल्ला का परिवार रामलीला के लिए रावण का पुतला बनाता है. यह काम उन्होंने अपने पुरखों से सीखा है. इनके काम से उभरती गंगा-जमुनी तहजीब में शहर की कौमी एकता और सद्भाव की झलक दिखाती है. बेनीगंज शहर के उन मुहल्लों में शामिल है जहां हिन्दू और मुसलमानों का परिवार लगभग समान संख्या में है, और सभी लोग मेलजोल से रहते हैं.
दूर-दूर तक जाते हैं रावण के पुतले
बेनीगंज में ही समीउल्ला का घर है. समीउल्ला का रामलीला के दौरान जलाए जाने वाले रावण का पुतला बनाने का पुस्तैनी कारोबार है. हालांकि, अब समीउल्ला नहीं हैं, लेकिन उनके बेटे मुन्नू और पोते अफजल आज भी महानगर में होने वाले रामलीलाओं के लिए रावण और मेघनाद का पुतला, रावण दरबार और अशोक वाटिका का निर्माण करते हैं. शहर की सभी रामलीलाओं के लिए रावण के पुतले यहीं बनते हैं. मुन्नू और अफजल ने मिलकर इस समय पांच रावण, मेघनाद के पुतले, रावण दरबार व अशोक वाटिका का निर्माण किया है. शहर में कई जगहों पर इनके बनाये गए किरदार दूर दूर तक जाते है.
दशहरे और मुहर्रम को लेकर पहले से होती है तैयारी
बता दें, दशहरे और मुहर्रम के दो माह पूर्व से ये परिवार अपने इस काम में जुटता है, और पांच से छः रावण बनाकर तैयार कर देते हैं, जिनकी बाजार में 5 से 6 हजार के बीच कीमत होती है. परिवार के सभी सदस्य मिलकर पंद्रह दिन की कड़ी मेहनत के बाद एक रावण तैयार करते हैं. अगर लागत की बात करें तो एक रावण का पुतला बनाने मे सभी मेटेरियल और साजसज्जा का समान लेकर 3 हजार से 3.5 हजार रुपये तक का खर्च आ जाता है.
पीड़ियों से चली आ रही है ये परंपरा
परिवार पूरे साल इन त्योहारों का इंतजार करता है, ताकि आय की चिंता खत्म हो सके. और सालभर जीवन यापन किया जा सके. इतना ही नहीं अगर मौसम ने बेरुखी दिखाई तो इनकी महीनों की मेहनत पर पानी भी फिर जाता है. रावण का पुतला बनाने वाले मुन्नू का कहना है कि अल्ला और भगवान का शुक्र है कि हमारी कलाकारी कई पीड़ियों से चली आ रही है. और हर बार हम अपनी कलाकारी आम लोगों तक पहुंचा पाते हैं.
उन्होंने कहा कि मुख्य रूप से हम ये काम अपनी पूस्तैनी विरासत को बचाने के लिए करते हैं, और इससे भाई चारे का एक संदेश समाज में जाता है. वहीं रावण का पुतला बनाने वाले अफजन ने बताया कि रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद का पुतला बनाना हमारी पुस्तैनी परंपरा है. एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी यह हस्तांतरित होती रही.
अफजन ने कहा कि आज भी हम लोग शहर की सभी रामलीलाओं के लिए पुतले बनाते हैं. महंगाई के हिसाब से कोई पैसा देने को राजी नहीं है, फिर भी हमारी परंपरा है, इसलिए इसका निर्वाह कर रहे हैं. और एक रावण बनाने के बाद तैयार हुए रावण के स्टेचू की कीमत तकरीबन 5 से 6 हजार के आस पास है. इसे बनाने के लिए भी कई दिन लग जाते हैं, और दो महीने पहले से ही इनकी सारी तैयारी शुरू हो जाती हैं.
रिपोर्ट- कुमार प्रदीप, गोरखपुर