Aligarh News: रेलवे पूरे दिन पटरियां बिछाता था. सुबह आकर जब रेलवे अधिकारी और पटरी बिछाने वाले कर्मचारी देखते थे, तो यह देखकर दंग रह जाते थे कि पटरियां उखड़ी पड़ी होतीं थीं. यह कई दिनों तक चला, जब दरगाह को छोड़कर पटरी बिछीं, तब रेल पटरी पर दौड़ी. आज भी इस दरगाह से गुजरने वाली हर ट्रेन दरगाह के बाबा को सलामी बतौर सीटी देती है.
उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जनपद के बीचों-बीच कठपुला के पास बाबा बरछी बहादुर की दरगाह हैं, जहां दूर-दूर से हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, यानी सभी धर्म के श्रद्धालु बाबा बरछी बहादुर से अपनी परेशानी बताने आते हैं और कुछ न कुछ मांगने आते हैं.
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बाबा बरछी बहादुर दरगाह के सेक्रेटरी हाजी नूर मौहम्मद ने प्रभात खबर को बताया कि बाबा बरछी बहादुर का इतिहास 750 साल पुराना है. अजमेर के ख्वाजा गरीब नवाज ने ख्वाजा कुतुबद्दीन बख्तियार काकवी को अपना शागिर्द बनाया था और बाबा बरछी बहादुर काकवी के साथी थे. बाबा बरछी बहादुर के अलावा हजरत शमशुल आफरीन शाहजमाल की दरगाह भी अलीगढ़ में दर्ज बहुत पुरानी दरगाह है.
बाबा बरछी बहादुर के सामने रेलवे को भी नतमस्तक होना पड़ा था. अलीगढ़ में रेलवे पटरियां बिछा रहा था. पटरियां बाबा बरछी बहादुर की दरगाह के हिस्से को लेकर बिछाई जा रहीं थीं. दिन में रेलवे के अधिकारी और कर्मचारी पटरियां बिछाते थे और अगले दिन सुबह जब काम पर आते, तो पटरियां उखड़ी मिलती थीं.
ऐसा कई दिनों तक हुआ. अंग्रेज अधिकारी परेशान हो गए. एक अंग्रेेज अधिकारी परेशान होकर कुर्सी पर सो गया, तो बाबा बरछी ने उसे सपने में बताया कि अगर पटरियां दरगाह की जमीन को छोड़कर बिछाईं जाऐं, तो पटरियां नहीं उखडेंगी. तभी पटरियां दरगाह से अलग हटाकर बिछाई गई और फिर नहीं उखड़ीं.
गुरूवार के दिन बाबा बरछी बहादुर पर मेले जैसा माहौल रहता है. इस दिन 20 से 20 हजार श्रद्धालु बाबा बरछी बहादुर के दर्शन करने आते हैं. दरगाह के बाहर स्थित दुकानों से चादर, फूलमाला, बताशे का प्रसाद लेकर श्रद्धालु दरगाह में बाबा बरछी बहादुर और उनकी मजार के संग वाली सैयद जुर्रार हसन कावरी रहमत्तुल्लाह अली के की मजार पर चादर चढ़ाते हैं और जीवन मे सबकुछ पाते हैं.