Varanasi News: गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस पर आधारित विश्व प्रसिद्ध मुक्ताकाशीय रामलीला की शुरुआत 9 सितंबर को होने जा रही है. महादेव की नगरी में कोरोना के दो साल बाद जय श्री राम का उद्घोष सुनने को मिलेगा. 31 दिन तक चलने वाली यह रामलीला 9 सितंबर से लेकर 9 अक्टूबर तक अनवरत चलेगी. प्रतिदिन लीला का समापन नारद वाणी और आरती के साथ किया जायेगा. काशी नरेश की ओर से हरी झंडी मिलने के बाद समिति पात्रों का चयन और संवाद को पात्र कंठस्थ कराने में लगे हुए है, अब तैयारियां लगभग पुरी हो चुकी है. इस रामलीला की खासियत यह है कि बिना बिजली और बिना माइक के पिन ड्राप साइलेंस का नजारा सदियों से इस परंपरा को पुरातन स्वरूप में जीवित रखे हुए है. रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला को देखने के लिए देश के कोने-कोने से लोगों की भीड़ इकठ्ठी होती है.
रामनगर आयोजन समिति की ओर से दुर्ग प्रशासन ने आयोजन को हरी झंडी दे दी है. राज परिवार से जुड़े अनंत नारायण सिंह की ओर से पात्रों के चयन का निर्देश देने के बाद से ही जून से तैयारी हो रही थी. रामलीला में प्रभु श्रीराम के जन्म से लेकर के रावण के वध तक के लीला मंचन को दिखाया जायेगा. काशीवासी रामलीला का पिछले 2 वर्षो से इंतजार कर रहे थे. प्रत्येक वर्ष की तरह इस बार भी रावण के जन्म के बाद रामबाग पोखरे से क्षीरसागर की झांकी निकाली जाएगी. देव-स्तुति और आकाशवाणी होगी.
इस विश्व प्रसिद्ध रामलीला की खासियत ये है कि 21वीं सदी में भी रामनगर की रामलीला का मंचन पेट्रोमेक्स की रोशनी में होता है. यहां की रामलीला में माइक और लाउड स्पीकर का प्रयोग भी नहीं होता है. इसके बावजूद दूर बैठे श्रीराम के भक्तों को रामलीला के पात्रों की आवाज साफ सुनाई देती है. रामलीला रोजाना शाम 5 से शुरू होकर रात 9 बजे तक चलेगी. वहीं, भरतमिलाप रात के 9 बजे से 12 बजे तक चलेगा. राम राज्य की झांकी शाम 5 बजे से सुबह तक चलेगी. यदि बारिश या मौसम खराब होने की वजह से किसी दिन लीला बाधित हुई तो उसके लिए दिन रिजर्व रखा जाएगा. रामलीला के दौरान बिना अनुमति फोटो लेने, वीडियो बनाने या टेप रिकॉर्डर लाने की मनाही रहती है.
रामलीला के श्रीगणेश का ताना बाना वर्ष 1835 में काशीराज परिवार की तत्कालीन महारानी के एक ताना मारने के बाद बुना गया था. महारानी द्वारा यह ताना महाराज उदित नारायण सिंह को मारा गया था. जब-जब श्रीराम लीला की शुरुआत का जिक्र होता है, रामनगर निवासी वयोवृद्ध लीला प्रेमियो की जुबान पर वह किवदंती बरबस आ जाती है. कहते हैं कि रामनगर से आठ किलोमीटर दूर मिर्जापुर के बरईपुर गाँव मे व्यवसायी बिच्छल साव व उनके भाई रामलीला कराते थे. इस दौरान रामलीला के प्रमुख प्रसंगों के दिन तत्कालीन काशी नरेश उदित नारायण सिंह भी शामिल हुआ करते थे. वर्ष 1835 में महाराज उदित नारायण सिंह को धनुष यज्ञ की लीला में शामिल होना था लेकिन उसी समय उनके आठ वर्षीय पुत्र ईश्वरी प्रसाद नारायण सिंह बीमार हो गए. इस कारण महाराज एक घंटे विलम्ब से लीलास्थल की ओर रवाना हुए. महाराज आधे रास्ते तक पहुंचे थे कि लीलाप्रेमियों की भीड़ लौटती दिखी. लीलाप्रेमियों ने महाराज को बताया कि आज की लीला बिना आपकी उपस्थिति के ही हो गयी. इससे व्यथित महाराज रास्ते से ही वापस लौट आये.
किले में महाराज को उदासीन देख महारानी ने कारण पूछा. महाराज ने सारी बातें महारानी को बतायी तब महारानी ने ताना मारा कि एक छोटा व्यवसायी रामलीला कराता है. महाराज होते हुए भी भगवान के प्रति आस्था नही रखते हैं आप क्यों नहीं यही रामलीला का आयोजन करवाते? यह बात महाराज उदित नारायण सिंह को चुभ गयी वह चुभन उनके लिए संकल्प बन गयी. उन्होंने तत्काल नगर में लीला आरम्भ करने का आदेश दिया. उसके बाद काष्ठजीह्वा स्वामी की प्रेरणा और मदत से संकल्प को मूर्त रूप मिला. स्वामी जी ने लीलाओं के लिए अयोध्या, जनकपुर, रामबाग, पोखरा, पंचवटी, सिगरा, निषादराज, वाजिदपुर, लंका, पम्पासर सरोवर, अशोक वाटिका आदि के रूप में अलग अलग स्थान चिह्नित किए.
पूजा-पाठ के बाद उसी वर्ष अनन्त चतुर्दशी से रामलीला प्रारम्भ हुई. तब से अब तक रामनगर की रामलीला उसी परम्परा व अनुराग के साथ होती आ रही है महाराजा उदित नारायण सिंह के समय अंग्रेजी हुकूमत में वाराणसी के जिलाधिकारी जेम्स प्रिंसेप थे जेम्स ने अपनी पुस्तक हान्यूज ऑफ़ बनारस में रामनगर की रामलीला का जिक्र किया है यह रामनगर की रामलीला का प्राचीनतम लिखित प्रमाण है.
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13 सितंबर – धनुष यज्ञ और परशुराम संवाद
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14 सितंबर – अवध से राम बारात का प्रस्थान, जनकपुर में विवाह
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16 सितंबर – राज्याभिषेक
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17 सितंबर – श्रीराम का वन गमन
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24 सितंबर – शूर्पणखा-नासिका छेदन और जानकी हरण
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26 सितंबर – बालि वध, हनुमान का लंका प्रस्थान
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27 सितंबर – लंका दहन
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28 सितंबर – विभीषण मिलन और राम सेतु निर्माण
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1 अक्टूबर – कुंभकर्ण और मेघनाद युद्ध
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2 अक्टूबर – रावण युद्ध
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3 अक्टूबर – रावण युद्ध
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4 अक्टूबर – रावण वध
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5 अक्टूबर – राम-जानकी मिलन
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7 अक्टूबर – भरत मिलाप
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8 अक्टूबर – श्रीराम का राज्याभिषेक
रिपोर्ट : विपिन सिंह