BJP से टिकट कटा तो नेताजी ने आधी रात को नंदराम के घर भेजा था पार्टी का सिंबल, सपा से लड़कर जीते चुनाव
up election special: नेताजी मुलायम सिंह यादव द्वारा सपा से टिकट मिलने के बाद फरीदपुर से नंदराम ने 1996 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सियाराम सागर को लंबे अंतर से हरा दिया.
सियासत में ना कोई दोस्त होता है और ना ही कोई स्थाई दुश्मन. किस मुकाम पर किसकी जरूरत पड़ जाए. यह पता नहीं. इसीलिए सियासत के माहिर खिलाड़ी कभी संबंधों को नहीं बिगाड़ते. बरेली की फरीदपुर विधानसभा से 1993 में सपा से विधायक बनने वाले सियाराम सागर ने 1996 विधानसभा चुनाव में अचानक पार्टी को अलविदा कह दिया. वह भाजपा से टिकट भी ले आए. उनके अचानक जाने से सपा के पास चुनाव लड़ने को कोई प्रत्याशी नहीं था.
इससे नेताजी मुलायम सिंह यादव भी असमंजस में पड़ गए. उन्होंने उस समय के पार्टी जिलाध्यक्ष वीरपाल सिंह यादव के साथ काफी चिंतन किया. काफी देर बाद उस समय के जिलाध्यक्ष को फरीदपुर से भाजपा से टिकट मांगने वाले पूर्व विधायक नंदराम को टिकट देने की सलाह दी, लेकिन उस दौरान कोई फोन नहीं था. जिसके चलते संपर्क भी नहीं हुआ.
मगर, नेताजी ने भाजपा से टिकट कटने के बाद मायूसी में घर सो रहे नंदराम के लिए चुनाव सिंबल भेज दिया.आधी रात को वीरपाल सिंह यादव ने नंदराम के घर का दरवाजा खटखटाया. काफी देर में दरवाजा खुला. इसके बाद बताया नेताजी ने सिंबल भेजा है. आपका टिकट भाजपा से कट चुका है. इसलिए आप सपा से चुनाव लड़ लो.
सियासी जानकार बताते हैं कि दोनों में काफी देर बातचीत हुई. नंदराम भाजपा नहीं छोड़ना चाहते थे, लेकिन रात में ही कार्यकर्ताओं का जमावड़ा लग गया. सभी ने चुनाव लड़ने का फैसला लिया. सियाराम सागर ने भाजपा से चुनाव लड़ा, जबकि नंदराम ने सपा से चुनाव लड़ा. नंदराम ने 1996 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सियाराम सागर को लंबे अंतर से चुनाव हरा दिया.
मगर, 2002 के चुनाव में फिर सियाराम सागर सपा में लौट आएं, जबकि नंदराम भाजपा में चले गए. इस चुनाव में सियाराम सागर ने जीत दर्ज की. वह विधायक बन गए. सियासी उलटफेर से सब हैरान थे.
लगातार दो बार नहीं बना विधायक- फरीदपुर सीट 1957 विधानसभा चुनाव में बनी थी, लेकिन उस दौरान यह जनरल सीट थी. 1957 के पहले चुनाव में कांग्रेस के नत्थू सिंह विधायक बने, जबकि 1962 में जेएसए पार्टी से हेमराज सिंह, 1967 में यह सीट सुरक्षित हो गई. यहां से कांग्रेस के डीपी सिंह ने 1967 में जीत दर्ज की. 1969 में राजेश्वर सिंह बीकेडी से विधायक बने.
अगले चुनाव में बीकेडी ने राजेश्वर सिंह का टिकट काट दिया और 1974 के चुनाव में हेमराज सिंह बीकेटी से विधायक बन गए. 1977 में सियाराम सागर ने जीत दर्ज की, जबकि 1980 में नंदराम ने यह सीट भाजपा की झोली में डाल दी.भाजपा ने यहां पहली बार जीत दर्ज की थी.1985 में कांग्रेस के नत्थू लाल विधायक बने. 1989 में सियाराम सागर निर्दलीय चुनाव जीते.
1991 में भाजपा से नंदराम दूसरी बार विधायक बने. 1993 में पहली बार सपा की झोली में यह सीट गई. सियाराम सागर तीसरी बार विधायक बने. 1996 में भाजपा से आए नंदराम ने सपा के टिकट पर जीत दर्ज की. 2002 में सियाराम फिर सपा से विधायक बने. 2007 में बसपा से विजय पाल सिंह, 2012 में पांचवी बार सियाराम सागर सपा से विधायक बने थे.
मगर ,2017 में डॉ श्याम बिहारी लाल ने काफी समय बाद भाजपा की झोली में यह सीट डाल दी. यहाँ से कोई भी विधायक लगातार दूसरी बार विधायक नहीं बना है. ऐसे में सियासी गलियारों में इस बार टिकट वितरण और चुनाव को लेकर चर्चा तेज है.
रिपोर्ट: मुहम्मद साजिद