अंग्रेजों ने 7 बार बंधु सिंह को दी फांसी, हर बार टूट जाता था फंदा, पढ़ें भारत मां के वीर सपूत की दास्तां
शहीद बाबू बंधु सिंह अंग्रेजों का सिर काटकर माता की सिद्ध पीठ पर चढ़ाते थे. आखिर में जब पकड़े गए तो अंग्रेजों ने उन्हें सात बार फांसी देने की कोशिश की, लेकिन वे बार-बार असफल हो जाते थे. फिर जब...
Gorakhpur News: गोरखपुर मुख्यालय से लगभग 22 से 23 किलोमीटर की दूरी पर सिद्ध पीठ माता तरकुलहा देवी का प्रसिद्ध मंदिर है. मां तरकुलहा देवी की कहानी अमर बलिदानी बाबू बंधु सिंह से जुड़ी हुई है. शहीद बाबू बंधु सिंह अंग्रेजों का सिर काटकर माता की सिद्ध पीठ पर चढ़ाते थे. आखिर में जब वे पकड़े गए तो अंग्रेजों ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई थी.
मां तरकुलहा देवी का दर्शन करने के लिए उत्तर प्रदेश से ही नहीं देश के कई प्रदेशों से श्रद्धालु यहां आते हैं .रोज हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां लाइन में लगकर मां के दर्शन का इंतजार करते हैं. लेकिन मां तरकुलहा देवी की कहानी कम लोगों को ही पता होती है कि उन्हें सिद्ध पीठ के रूप में पहचान दिलाने वाले कौन थे. चौरी चौरा करीब में होने की वजह से आजादी का अमृत महोत्सव पर श्रद्धालुओं को यह जानकारी दी जा रही है.
डुमरी रियासत के बाबू शिव प्रताप सिंह के पुत्र अमर बलिदान बाबू बंधु सिंह का नाम उन देशभक्तों में पूरे सम्मान के साथ लिया जाता है जो स्वाधीनता की पहली ही लड़ाई में अंग्रेजों के लिए नासूर बन गए थे. इतना ही नहीं बंधु सिंह का आतंक ऐसा था कि अंग्रेज उनके नाम से ही कांपते थे. बाबू बंधु सिंह उन राजाओं और जिम्मेदारों में शामिल थे जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना राजपाट कुर्बान कर दिया था. इस बीच की प्रसिद्धि की कहानी डूंगरी रियासत के बाबू से शिव प्रताप के पुत्र बाबू बंधु सिंह से जुड़ी हुई है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार, तरकुलहा के पास घने जंगलों में बाबूबं धु सिंह रहकर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंके थे. वह जंगल में रहकर मां तरकुलहा की पूजा करते थे और अंग्रेजों का सिर काटकर मां के सिद्ध पीठ पर चढ़ाते थे. बाबू बंधु सिंह ने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली अपनाकर अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था. उनकी इस प्रणाली और अपने अफसरों को खोने से भयभीत अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार करने के लिए हर संभव कोशिश कर डाली थी. काफी लंबे प्रयास के बाद अंग्रेज बंधु सिंह को धोखे से गिरफ्तार करने में सफल हो गए, जिसके बाद अंग्रेजी सरकार ने बंधु सिंह को फांसी की सजा सुनाई.
अंग्रेजों ने जब बंधु सिंह को फांसी दी तो बार-बार फांसी का फंदा टूट जाता था. दोबारा फंदा चढ़ाया जाता था और वह भी टूट जाता था. इस तरह से सात बार के प्रयास के बाद भी अंग्रेज बंधु सिंह को फांसी देने में असफल हुए. अंत में स्वम बंधु सिंह ने मां तरकुलहा माता से अपने चरणों में लेने का अनुरोध किया. उसके बाद जब उनके गले में फांसी का फंदा डाला गया और वह हंसते-हंसते उस पर झूल गए. तब जाकर अंग्रेजों के सांस में सांस आयी. बंधु सिंह को गोरखपुर की कोतवाली थाना क्षेत्र के अलीनगर में फांसी दी गई थी.
रिपोर्टर- कुमार प्रदीप