मान्यता के अनुसार द्वापर युग में लोग दीपावली के बाद और भाई दूज से पहले इंद्र देव की पूजा किया करते थे. इंद्र देव से फसलों के लिए अच्छी बारिश और सुख समृद्धि का वरदान मांगते थे. श्रीकृष्ण के जन्म के बाद जब फिर से ब्रज क्षेत्र के लोग इंद्र की पूजा करने को चले तो श्रीकृष्ण भगवान ने उन्हें रोक दिया और कहा कि आप इंद्र की पूजा क्यों करते हैं. जबकि इंद्र आपको भारी बारिश के अलावा कुछ भी नहीं देते.
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उन्होंने कहा कि अपने क्षेत्र में इतना बड़ा पर्वत मौजूद है, जिस पर आपके पालतू पशु चरते हैं और उन्हीं पालतू पशुओं से मिलने वाले दूध दही से आप अपना परिवार पालते हैं. ऐसे में सभी को गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए. क्योंकि उसी की वजह से आपका परिवार चलता है. लोगों ने श्रीकृष्ण की बात मानकर इंद्र देव की पूजा करना छोड़ दिया और गिरिराज पर्वत की पूजा करने लगे.
जब इंद्र को इस बारे में पता चला तो वह क्रोधित हो गया और उन्होंने ब्रज क्षेत्र में जमकर बारिश कराई, जिससे सब कुछ तहस-नहस होने लगा. गांव वालों ने श्री कृष्ण से कहा कि हम पहले से ही कह रहे थे कि अगर हमने इंद्र की पूजा करना छोड़ दिया तो वह क्रोधित हो जाएंगे. इसी वजह से वे लगातार बारिश कर रहे हैं. इसके बाद श्रीकृष्ण ने कहा कि जिन गिरिराज पर्वत की आपने पूजा की है, आज वही गिरिराज पर्वत आपकी रक्षा करेंगे.
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भगवान श्रीकृष्ण सभी गांव वालों को वह गिरिराज पर्वत के पास ले गए और लीला दिखाते हुए अपनी सबसे छोटी उंगली पर गिरिराज पर्वत को उठा लिया. उसके नीचे सभी ग्वालों और जानवरों को खड़ा कर दिया जिससे वह भारी तूफान और बारिश से बच गए. उसी दिन से गिरिराज पर्वत की पूजा की जाने लगी और इस त्यौहार को गोवर्धन पर्व के नाम से जाना जाने लगा.
गोवर्धन पर्व के दिन लोग अपने घर में गाय के गोबर से श्री कृष्ण के गोवर्धन स्वरूप का निर्माण करते हैं और विधि विधान से पूजा पाठ करते हैं. साथ ही गोवर्धन भगवान को अन्नकूट का भोग भी लगाया जाता है. गाय के गोबर से श्री कृष्ण के स्वरूप का निर्माण करने का एक अलग ही महत्व है.
बताया जाता है कि गाय श्रीकृष्ण को काफी प्यारी थी और गाय का जो गोबर होता है वह काफी पवित्र और शुद्ध माना जाता है. ऐसे में पूजा पाठ के किसी भी कार्यक्रम में सिर्फ गाय के गोबर से बनी सामग्री का ही प्रयोग किया जाता है. वहीं दूसरी तरफ गाय के गोबर से बनी हुई सामग्री का प्रयोग करने और गोवर्धन का निर्माण करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव होता है और नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है.
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गोवर्धन पर्व में प्रयोग किए जाने वाले गाय के गोबर को अधिकतर लोग पूजा के बाद फेंक देते हैं. लेकिन कुछ विद्वानों का कहना है कि उस गोबर का प्रयोग लोगों को घर में करना चाहिए क्योंकि उस गोबर से गोवर्धन का निर्माण होने के बाद वह गोबर और ज्यादा पवित्र हो जाता है. ऐसे में उस गोबर से आप कच्चे घर में लेप कर सकते हैं या उससे उपले या कंडे बनाकर हवन सामग्री में उसका प्रयोग किया जा सकता है. जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होगा.
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गाय के ताजे गोबर से ही गोवर्धन पूजा की जानी चाहिए.
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गोबर सफेद गाय का ही होना चाहिए.
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गर्भवति गाय का गोबर नहीं इस्तेमाल करना चाहिए.
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बिना किसी मिलावट के गोबर का इस्तेमाल करना चाहिए.
रिपोर्ट: राघवेंद्र सिंह गहलोत