Varanasi News: नेता दल बदलते हैं, डॉक्टर दिल बदलते हैं और डॉ० राजीव जीवन बदलते हैं, ये कहना है उन बच्चों का जिनके जीवन को नई दिशा देने में डॉ. राजीव ने एक गुरु-शिक्षक और पिता सभी की भूमिका का निर्वहन किया है. कूड़ा बीनने वाले और मुसहरों के बच्चों को विद्यावान बनाने में डॉ राजीव अहम भूमिका निभा रहे हैं. शिक्षक दिवस के अवसर पर प्रभात खबर ने ऐसे व्यक्तित्व को ढूंढ निकाला, जिन्होंने असल मायने में गुरु की परिभाषा को साकार किया है.
डॉ. राजीव ने अपने गृहस्थ जीवन का त्याग करते हुए सन्यास ले लिया है. अपना सारा जीवन उन्होने इन्ही बच्चों को विद्यावान बनाने में समर्पित कर दिया है. पेशे से इतिहास विषय के प्रोफेसर डॉ. राजीव बीएचयू में कार्यरत हैं. वैसे तो प्राचीन नगरी काशी विद्वानों, आचार्यों, संतों और त्यागियों से भरी पड़ी है. ऐसे में काशी की इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर डॉ० राजीव श्रीवास्तव ने कूड़ा बीनने वाले और वंचित मुसहर समाज के बच्चों को शिक्षित एवं संस्कारित कर उनके जीवन को बदलने में 35 वर्षों से अनवरत लगे हैं.
डॉ. राजीव ने स्टेशन पर बच्चों को पढ़ाने के लिए 1988 में विशाल भारत संस्थान की स्थापना की. 900 से अधिक बच्चों को एक अभिभावक की तरह पालन-पोषण कर शिक्षित कर चुके हैं. बच्चों को शिक्षा के साथ राष्ट्रभक्ति का संस्कार देने के लिए सुभाष भवन और सुभाष मन्दिर की स्थापना की जहां बच्चों की आवश्यकताएं पूरी होती हैं. शिक्षा के लिए समर्पित व्यक्तित्व डॉ. राजीव अपना पूरा वेतन दान कर देते हैं. बेसहारा बच्चा शिक्षा से वंचित न रह जाएं. इसके लिए डॉ. राजीव ने सन्यास ले लिया ताकि अपने निजी जीवन को सुख सुविधाओं से दूर रख सकें.
एक आदर्श शिक्षक के रूप में जीवन जीने वाले डॉ० राजीव ने प्रसिद्ध समाज सुधारक एवं आध्यात्मिक गुरु इन्द्रेश कुमार से रामपंथ में दीक्षा ली और अनुसूचित समाज को दीक्षित कर पुजारी बनाने की योजना पर कार्य कर रहे हैं. शिक्षा का अर्थ ही समानता, बंधुत्व और प्रेम है. नफरत का पाठ पढ़ाने वाले शिक्षा का अर्थ नहीं समझते.
डा.राजीव बताते हैं कि उन्होंने मुगलसराय में 1988 में कुछ बच्चों को प्लेटफॉर्म नंबर पर पढ़ाना शुरू किया था. 1992 में पिता डॉक्टर राधेश्याम श्रीवास्तव ने शर्त रख दी कि या तो परिवार चुन लो या बच्चों के साथ रह लो. उन्होंने कहा कि पिता की शर्त के बाद केवल मार्कशीट लेकर बनारस रेलवे स्टेशन आ गए और फिर पलटकर पीछे नहीं देखा. तीन महीने लगातार बनारस के स्टेशन को आशियाना बनाना पड़ा था.
इस दौरान उन्होंने, काशी विद्यापीठ से ही पीएचडी की. 1996 में काशी विद्यापीठ में संविदा पर पढ़ाने का मौका मिला. इसके बाद 2007 में बीएचयू में जॉब मिल गई. इस समय 700 से ऊपर बच्चों को अपने पैसे से शिक्षित कर रहे हैं. 2016 में सुभाष भवन के लिए जमीनी खरीदी थी, जिसका 17 जून 2018 को शिलान्यास किया गया. इससे पहले किराए के घर में रहते थे. साल 2019 में 18 फरवरी को सुभाष भवन में शिफ्ट हुए. जहां हिंदू, मुस्लिल, दलित सभी बच्चे एक साथ रहकर न सिर्फ शिक्षा ग्रहण करते हैं, बल्कि एक रसोई में एक साथ भोजन भी करते हैं.
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में इतिहास के शिक्षक के रूप में इतने लोकप्रिय हैं कि उनके क्लास में अन्य विषयों के भी विद्यार्थी क्लास करते हैं. अपने विद्यार्थियों से एक अभिभावक की तरह व्यवहार करने वाले डॉ० राजीव उनके प्रत्येक संकट में उनके साथ खड़े रहते हैं. कई ऐसे भी छात्र हैं जो बीएचयू में पढ़ने आये और गुरुजी के साथ ही रहने लगे. सन्यास लेने के बाद नाम से कम गुरुजी के सम्बोधन से ही पहचाने जाते हैं. गुरुकुल परम्परा में विश्वास रखने वाले गुरुजी हर धर्म और जाति के बच्चों के साथ भोजन करते हैं.
रिपोर्ट- विपिन सिंह