UP Nikay Chunav: अधिसूचना जारी करने पर बुधवार तक रोक बढ़ी, हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में कल फिर होगी सुनवाई

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल पीआईएल के मुद्दे पर सुनवाई होगी. व्यक्तिगत निकायों के मसले नहीं सुने जायेंगे. स्टे को कल तक के लिए बढ़ा दिया गया है. इसलिए अब अगली सुनवाई 21 दिसंबर को होगी. इस तरह निकाय चुनाव को लेकर इंतजार एक बार फिर बढ़ गया है.

By Sanjay Singh | December 20, 2022 5:40 PM

Lucknow: प्रदेश में निकाय चुनाव में अन्य पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण के मुद्दे पर मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में सुनवाई हुई. मामले पर कोई फैसला नहीं दिया गया. इस पर कल बुधवार को भी सुनवाई जारी रहेगी. इसके साथ ही अधिसूचना जारी करने पर लगी रोक भी बुधवार तक के लिए बढ़ा दी गई है. आज सरकार ने कोर्ट के समक्ष मामले में प्रति शपथ पत्र दाखिल किया. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल पीआईएल के मुद्दे पर सुनवाई होगी. व्यक्तिगत निकायों के मसले नहीं सुने जायेंगे. स्टे को कल तक के लिए बढ़ा दिया गया है. इसलिए अब अगली सुनवाई 21 दिसंबर को होगी. इस तरह निकाय चुनाव को लेकर इंतजार एक बार फिर बढ़ गया है.

2017 में ओबीसी सर्वे को माना जाए आरक्षण का आधार

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में स्थानीय निकाय चुनाव में अन्य पिछड़े वर्ग को दिए गए आरक्षण के मुद्दे पर इससे पहले सोमवार को दाखिल किए गए अपने हलफनामे में यूपी सरकार ने कहा है कि स्थानीय निकाय चुनाव मामले में 2017 में हुए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सर्वे को आरक्षण का आधार माना जाए. दायर याचिकाओं के पक्षकारों को उपलब्ध कराए गए जवाबी हलफनामे में सरकार ने कहा है कि इसी सर्वे को ट्रिपल टेस्ट माना जाए. शहरी विकास विभाग के सचिव रंजन कुमार ने हलफनामे में कहा है कि ट्रांसजेंडर्स को चुनाव में आरक्षण नहीं दिया जा सकता.

सरकार से मांगी थी जानकारी

पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा था कि किन प्रावधानों के तहत निकायों में प्रशासकों की नियुक्ति की गई है. इस पर सरकार ने कहा कि 5 दिसंबर, 2011 के हाईकोर्ट के फैसले के तहत इसका प्रावधान है.

कोर्ट ने 20 दिसंबर तक लगाई थी रोक

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने पहले स्थानीय निकाय चुनाव की अंतिम अधिसूचना जारी करने पर 20 दिसंबर तक रोक लगा दी थी. साथ ही राज्य सरकार को आदेश दिया था कि 20 दिसंबर तक बीते 5 दिसंबर को जारी अंतिम आरक्षण की अधिसूचना के तहत आदेश जारी न करे. कोर्ट ने ओबीसी को उचित आरक्षण का लाभ दिए जाने व सीटों के रोटेशन के मुद्दों को लेकर दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया था. न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव की खंडपीठ ने यह आदेश रायबरेली निवासी सामाजिक कार्यकर्ता वैभव पांडेय व अन्य की जनहित याचिकाओं पर दिया था.

याचिका में ओबीसी आरक्षण व सीटों के रोटेशन का मुद्दा उठाया

याचियों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत, जब तक राज्य सरकार तिहरे परीक्षण की औपचारिकता पूरी नहीं करती तब तक ओबीसी को कोई आरक्षण नहीं दिया जा सकता. राज्य सरकार ने ऐसा कोई परीक्षण नहीं किया. वहीं औपचारिकता पूरी किए बगैर सरकार ने गत 5 दिसंबर को अंतिम आरक्षण की अधिसूचना के तहत ड्राफ्ट आदेश जारी कर दिया. इससे यह साफ है कि राज्य सरकार ओबीसी को आरक्षण देने जा रही है. साथ ही सीटों का रोटेशन भी नियमानुसार किए जाने की गुजारिश की गई है.

याचिओं ने इन कमियों को दूर करने के बाद ही चुनाव की अधिसूचना जारी किए जाने का आग्रह किया. सरकारी की ओर से याचिका का विरोध किया करते हुए कहा गया था कि 5 दिसंबर की सरकार की अधिसूचना महज एक ड्राफ्ट आदेश है, जिस पर सरकार ने आपत्तियां मांगी हैं. ऐसे में इससे व्यथित याची व अन्य लोग इस पर अपनी आपत्तियां दाखिल कर सकते हैं.

रैपिड सर्वे के आधार पर वार्डों का निर्धारण

नगर विकास विभाग की ओर से सभी जिलाधिकारियों से कहा गया था कि नवसृजित या सीमा विस्तारित नगरीय निकायों में ही ओबीसी की जनसंख्या की अवधारणा के लिए रैपिड सर्वे के आंकड़ों के आधार पर आरक्षण का निर्धारण किया जाए. अन्य निकायों जिनकी सीमाओं में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है, उन निकायों में वर्ष 2017 चुनाव के लिए इस्तेमाल किए गए रैपिड सर्वे के आंकड़ों के आधार पर ही वार्डों का निर्धारण किया जाए.

Also Read: UP Nikay Chunav: कांग्रेस सोशल इंजीनियरिंग की राह पर, संगठन में पहले अपना चुकी है फार्मूला, ये है प्लान..
रैपिड सर्वे में ओबीसी वर्ग की ऐसे होती है गिनती

रैपिड सर्वे में जिला प्रशासन की देखरेख में नगर निकायों द्वारा वार्डवार ओबीसी वर्ग की गिनती कराई जाती है. इसके आधार पर ही ओबीसी की सीटों का निर्धारण करते हुए इनके लिए आरक्षण का प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा जाता है. वहीं नगर निकाय चुनावों में ओबीसी का आरक्षण निर्धारित करने से पहले एक आयोग का गठन किया जाएगा, जो निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति का आकलन करेगा. इसके बाद पिछड़ों के लिए सीटों के आरक्षण को प्रस्तावित करेगा. दूसरे चरण में स्थानीय निकायों द्वारा ओबीसी की संख्या का परीक्षण कराया जाएगा और तीसरे चरण में शासन के स्तर पर सत्यापन कराया जाएगा.

Next Article

Exit mobile version