UP News: गोविंद बल्लभ पंत ने जब हिंदी को दिलाया राजभाषा का दर्जा, खफा हो गए थे अपने, संस्कृत का था दबदबा

Hindi Diwas 2022: भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत का भारतीय संविधान में हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान था. उनके प्रस्ताव का कुछ लोगों ने विरोध भी किया. मगर, वह पीछे नहीं हटे. बताया जाता है कि...

By Prabhat Khabar News Desk | September 14, 2022 11:32 AM

Bareilly News: आज यानी 14 सितंबर का दिन देश में हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसका एकमात्र उद्देश्य हिंदी भाषा का उत्थान और विकास करना है. इस खास अवसर पर जानते हैं उनके बारे में जिन्होंने हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिलाने में अहम भूमिका ही नहीं निभाई, बल्कि एक समय तो ऐसा आ गया जब उन्हें अपनों की ही नाराजगी का सामना करना पड़ा.

हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिलाने में निभाई अहम भूमिका

हम बात कर रहे हैं, भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत की, जिन्होंने जंग-ए-आजादी में सक्रिय भूमिका निभाई थी. मगर, देश की आजादी के बाद उनकी राष्ट्र के नवनिर्माण में भी अहम भूमिका है. भारतीय संविधान में हिन्दी भाषा को राजभाषा का दर्जा दिलाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान था. उनके प्रस्ताव का कुछ लोगों ने विरोध भी किया. मगर, वह पीछे नहीं हटे. बताया जाता है कि, पंडित गोविंद बल्लभ पंत के कुछ करीबी लोग संस्कृत को राजभाषा का दिलाने की कोशिश कर रहे थे. उस दौर में संस्कृत भी काफी बोली जाती थी.

गोविंद बल्लभ पंत को आज भी किया जाता है याद

आजादी के बाद जब राजभाषा की चर्चा संविधान सभा में हुई, तो एक धड़ा उर्दू मिश्रित हिंदुस्तानी भाषा को राजभाषा बनाने की वकालत कर रहा था, लेकिन सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी, लेकिन देश में जब 26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ, तो इसमें देवनागरी में लिखी जाने वाली हिंदी सहित 14 भाषाओं को आठवीं सूची में आधिकारिक भाषाओं के रूप में रखा गया. देश में जब भी हिंदी दिवस मनाया जाता है, तो लोग भारत रत्न प. गोविंद बल्लभ पंत को याद करते हैं.

राज्यों के बंटवारे में भी निभाई अहम भूमिका

पंत जी ने मुखरता के साथ देवनागरी में लिखे जाने वाली हिंदी भाषा को राजभाषा बनाए जाने की वकालत की. हालांकि, इस पर महात्मा गांधी ने अपनी सहमति जताई. इसके बाद संविधान सभा में भी एकमत से निर्णय लिया गया. राज्यों के बंटवारे में भी उनकी भूमिका रही. उनके इन्हीं कार्य को देखते हुए 1997 में भारत रत्न के सम्मान से नवाजा गया.

स्वतंत्रता सेनानी से राजनेता बने गोविंद बल्लभ पंत

गोविंद बल्लभ पंत यूपी के पहले और देश के चौथे (सीएम) मुख्यमंत्री बने थे. उन्होंने बरेली से सियासी आगाज किया था. उनका बरेली से लगाव कम था, लेकिन कांग्रेस ने देश के पहले विधानसभा चुनाव-1951 में बरेली शहर सीट से चुनाव लड़ने भेज दिया. वह शहर सीट से चुनाव लड़े और जीत दर्ज की. इसके बाद देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने गोविंद बल्लभ पंत को यूपी का पहला मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा कर दी. इस तरह वह यूपी के पहले और देश के चौथे मुख्यमंत्री बन गए. गोविंद बल्लभ पंत ने मुख्यमंत्री का पद छोड़ने के बाद 1957 में गृह मंत्री की शपथ ली. वह स्वतंत्रता सेनानी से राजनेता बने थे.

काकोरी कांड का लड़ा था मुकदमा

पहले सीएम गोविंद बल्लभ पंत का जन्म 1 सितंबर 1887 को अल्मोड़ा जिले के खूंट गांव के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. पिता की बचपन में मृत्यु हो गई. वह नाना बद्रीदत्त जोशी के साथ इलाहाबाद चले गए. यहीं पर पढ़ाई की. वह कांग्रेस के स्वयंसेवक का कार्य करते थे. उन्होंने 1907 में बीए और 1909 में कानून की डिग्री हासिल की. इसके बाद असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया. इसके बाद 9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड में क्रांतिकारियों ने सरकारी खजाना लूट लिया, जिस पर उन्हें जेल में डाल दिया गया, जिनका पंडित मदन मोहन मालवीय के साथ गोविंद बल्लभ पंत ने भी केस लड़ा था.

पंत की जेल में हुई थी पंडित नेहरू से मुलाकात

गोविंद बल्लभ पंत ने वर्ष 1921 में सक्रिय राजनीति में पदार्पण किया. वह लेजिस्लेटिव असेंबली में चुने गए. उस वक्त उत्तर प्रदेश, यूनाइटेड प्रोविंसेज ऑफ आगरा और अवध कहलाता था. 1932 में पंत देहरादून की जेल में बंद थे. ये इत्तेफाक ही था कि उस वक्त पंडित जवाहरलाल नेहरू भी देहरादून जेल में बंद थे. उस दौरान ही पंडित नेहरू से इनकी अच्छी जान पहचान हो गई. नेहरू इनसे काफी प्रभावित थे. जब कांग्रेस ने 1937 में सरकार बनाने का फैसला किया तो नेहरू ने ही पंत का नाम सुझाया था. इस तरह पंत यूपी के पहले सीएम बने. हालांकि 2 साल बाद वह पद से हट गए. इसके बाद 1946 में कांग्रेस की भारी जीत के बाद उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया, जिस पद पर वह लगातार 8 साल तक बने रहे.

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रिपोर्ट: मुहम्मद साजिद, बरेली

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