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जितिन प्रसाद को पिछले दरवाजे से योगी कैबिनेट में शामिल कराना नहीं होगा आसान, भाजपा के लिए साबित हो सकता है आत्मघाती फैसला

जितिन प्रसाद को भाजपा में शामिल कराने के पीछे उत्तर प्रदेश में जाति समीकरण को दुरुस्त करना अहम कारण है, लेकिन आशंका इस बात की भी है कि जितिन प्रसाद को पार्टी की ओर से इतना बड़ा पुरस्कार देने से पार्टी में आपसी गुटबाजी बढ़ सकती है.

लखनऊ : अभी हाल ही में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद को पिछले दरवाजे से योगी कैबिनेट में शामिल कराना आसान नहीं होगा. मीडिया में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि पूर्व वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जितिन प्रसाद को भाजपा विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) बनाकर योगी कैबिनेट में शामिल करेगी. चर्चा इस बात की भी है कि अगर जितिन को एमएलसी बनाकर योगी कैबिनेट में शामिल किया जाता है, तो यह भाजपा के लिए आत्मघाती फैसला साबित हो सकता है, क्योंकि पार्टी में जितिन को लेकर अभी से ही विरोध के सुर मुखर होने लगे हैं.

भाजपा में बढ़ सकती है आपसी गुटबाजी

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें, तो जितिन प्रसाद को भाजपा में शामिल कराने के पीछे उत्तर प्रदेश में जाति समीकरण को दुरुस्त करना अहम कारण है, लेकिन आशंका इस बात की भी है कि जितिन प्रसाद को पार्टी की ओर से इतना बड़ा पुरस्कार देने से पार्टी में आपसी गुटबाजी बढ़ सकती है. कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा जितिन प्रसाद को सूबे के दिग्गज ब्राह्मण चेहरे के तौर पर पेश कर सकती है. इसके पीछे की वजह यह है कि 2017 में योगी सरकार के गठन के बाद से ब्राह्मणों ने भाजपा से दूरी बना ली है. खासकर, जब से कानपुर वाले विकास दुबे के दबदबे को सफाया करने के लिए जिस प्रकार के हथकंडे का इस्तेमाल किया गया, उससे प्रदेश का ब्राह्मण समुदाय योगी सरकार और भाजपा से खासा नाराज है. यहां के ब्राह्मण समुदाय पहले से ही योगी आदित्यनाथ को ब्राह्मण विरोधी मानता रहा है. सरकार का मुखिया बनने के बाद उत्तर प्रदेश से अपराधियों के खात्मे को लेकर प्रशासनिक स्तर पर जिस तरह का अभियान चलाया जा रहा है, उसके निशाने पर यहां के ब्राह्मण समुदाय के लोग अधिक बताए जा रहे हैं. एक प्रकार से यह कहा जाए, तो यहां पर अंदरुनी तौर पर ठाकुर बनाम ब्राह्मण की जंग जारी है.

भाजपा को कितना होगा फायदा?

राजनीतिक विश्लेषकों के कुछ धड़ों में इस बात की भी चर्चा की जा रही है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में जितिन प्रसाद से भाजपा को कितना फायदा होगा? इस सवाल पर राजनीतिक विश्लेषकों की अलग-अलग राय है. कुछ विश्लेषकों का मानना है कि उत्तर प्रदेश के ज्यादातर ब्राह्मण मतदाता जितिन प्रसाद के साथ नहीं हैं. हालांकि, सूबे के ब्राह्मणों को एकजुट कर अपनी पैठ बनाने के लिए जितिन प्रसाद ने अभियान भी छेड़ रखी है. उन्होंने 2020 में ब्राह्मण चेतना परिषद की शुरुआत की. वह हाल के महीनों में अपने ब्रह्म चेतना संवाद के माध्यम से ब्राह्मण मतदाताओं को जुटाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन इससे उन्हें कुछ खास फायदा मिलने की उम्मीद दिखाई नहीं दे रही है. इसके पीछे अहम कारण उनका पूर्व कांग्रेसी होना है. प्रदेश के ब्राह्मण बहुत पहले ही कांग्रेस से किनारा कर चुके हैं और जितिन प्रसाद का कांग्रेस छोड़ने के पीछे एक अहम वजह यह भी है कि पार्टी में ब्राह्मणों की सुनी नहीं जा रही थी.

यूपी की सियासत में भारी है 12 फीसदी ब्राह्मण मतदाता

वैसे तो उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या 10 से 12 फीसदी ही है, लेकिन यह 12 फीसदी मतदाता करीब 25 फीसदी मतदाताओं पर अपना गंभीर प्रभाव छोड़ता है. उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव अब कुछ ही महीने बाद होने वाला है. भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस बात को लेकर चिंतित है कि वर्तमान की योगी सरकार सूबे के ब्राह्मणों के खिलाफ है. हालांकि, यह बात दीगर है कि उत्तर प्रदेश की सरकार में आधा दर्जन से अधिक मंत्री पद और संगठन में कई अहम पदों पर ब्राह्मण बिरादरी के लोगों के बैठे हुए हैं. बावजूद इसके सूबे के ब्राह्मणों में भाजपा की छवि अच्छी नहीं है.

जितिन का भाजपा में आने के बाद से चुप हैं राजनाथ

उत्तर प्रदेश में पिछले करीब तीन सप्ताह से सियासी हलचल जारी है. यूपी में कैबिनेट विस्तार और जितिन प्रसाद का भाजपा में आने को लेकर राजनीतिक चर्चाएं जोर-शोर से की जा रही हैं, लेकिन इन सबके बीच केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए हैं. जितिन प्रसाद को भाजपा में शामिल किए जाने के बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बधाई भी दी, लेकिन इन सबके बीच उत्तर प्रदेश की सियासत के सबसे बड़े चेहरों में से एक राजनाथ सिंह पूरे परिदृश्य से बाहर दिखाई दे रहे हैं.

सूबाई सियासत से दूर हैं राजनाथ?

देश में 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले का ऐसा दौर था, जब उत्तर प्रदेश की राजनीति में राजनाथ सिंह और योगी आदित्यनाथ को दो ध्रुव माना जाता था, लेकिन वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में स्थिति बदली हुई दिखाई दे रही है. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें, तो वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति में राजनाथ सिंह ने खुद को सूबाई सियासत से खुद को दूर कर लिया है. यही वजह है कि चाहे वह जितिन प्रसाद को भाजपा में शामिल कराने का मामला हो या फिर योगी आदित्यनाथ को केंद्रीय नेतृत्व द्वारा दिल्ली बुलाया जाना, किसी भी मामले में उन्होंने किसी प्रकार की टिप्पणी नहीं की है.

तो क्या दो गुटों के बीच में फंसे रह जाएंगे जितिन?

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें, तो उत्तर प्रदेश में फिलहाल जो राजनीतिक समीकरण बन रहा है, उससे तो यही कयास लगाया जा सकता है कि भाजपा में शामिल होने के बाद जितिन प्रसाद दो गुटों के बीच में फंसकर रह जाएंगे. इसके पीछे अहम कारण यह है कि जातीय समीकरण सुधारने के लिए भाजपा ने उन्हें अपना बनाया तो है, लेकिन ब्राह्मण मतदाताओं ने फिलहाल उन्हें स्वीकार नहीं किया है. वहीं, दूसरी ओर ठाकुर मतदाताओं का भी उन्हें समर्थन मिलने के आसार नहीं ही दिखाई दे रहे हैं. इसके पीछे की अहम वजह सूबे के ठाकुर समुदाय के दिग्गज नेताओं का उनके समर्थन या विरोध में मुखर होकर कुछ नहीं कहना है. इस समुदाय की चुप्पी उन्हें बहुत बड़ी राजनीतिक खाई में धकेल सकती है.

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Posted by : Vishwat Sen

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