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2022 के चुनाव में यूपी के ब्राह्मणों को साध सकेंगे जितिन प्रसाद? भाजपा को सता रहा है कानपुर वाले ‘विकास दुबे’ का खौफ़

दबी जुबान से विश्लेषक और सियासतदान यह कहते हुए पाए जा रहे हैं कि कानपुर वाले विकास दुबे का तथाकथित एनकाउंटर में मारे जाने के बाद योगी सरकार के विरोध में लामबंद ब्राह्मणों को साधने के लिए जितिन प्रसाद को भाजपा में शामिल कराया गया है.

नई दिल्ली : कांग्रेस में कभी किंगमेकर की भूमिका निभाने वाले माधवराव सिंधिया के बेटे और पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का भाजपा में आने के बाद एक और दिग्गज कांग्रेसी नेता जितिन प्रसाद ने भी पार्टी का हाथ छोड़ दिया. सिंधिया के नक्शेकदम पर चलते हुए उन्होंने भी भाजपा का दामन थाम लिया है. जतिन प्रसाद के दादा ज्योति प्रसाद और पिता जितेंद्र प्रसाद भी कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में जाने जाते रहे हैं. उनके पिता यूपी के ब्राह्मणों में धाक थी और वे ब्राह्मणों के दिग्गज नेताओं में गिने जाते थे.

आज जब जितिन कांग्रेस छोड़कर भाजपा के साथ चले गए हैं, तो सियासी गलियारों के अलावा राजनीतिक विश्लेषकों के बीच कयासों और सवालों का बाजार गर्म है. इन्हीं सवालों में अहम सवाल यह खड़ा किया जा रहा है कि क्या जितिन प्रसाद अगले साल यानी 2022 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव या फिर उसके बाद भाजपा के लिए ‘तुरुप का पत्ता’ बन पाएंगे? इस सवाल के पीछे की वजह भी साफ है और वह यह है कि दबी जुबान से विश्लेषक और सियासतदान यह कहते हुए पाए जा रहे हैं कि कानपुर वाले विकास दुबे का तथाकथित एनकाउंटर में मारे जाने के बाद योगी सरकार के विरोध में लामबंद ब्राह्मणों को साधने के लिए जितिन प्रसाद को भाजपा में शामिल कराया गया है.

भाजपा की अंदरुनी कलह का मिलेगा फायदा?

सियासतदान और राजनीतिक विश्लेषकों का एक कुनबा यह कयास भी लगा रहा है कि चूंकि, भाजपा की अंदरुनी राजनीति में योगी-मोदी या यूं कहें कि केंद्रीय संगठन और मोदी के बीच मनमुटाव चल रहा है. इसलिए केंद्रीय नेतृत्व ने योगी के तोड़ के तौर पर कांग्रेस से जतिन प्रसाद को तोड़कर भाजपा में शामिल कराया है. बावजूद इसके भाजपा की अंदरुनी राजनीति पर तात्कालिक टिप्पणी करना फिलहाल इतना आसान नहीं रह गया है. हालांकि, भाजपा का दामन थामने के साथ ही जितिन प्रसाद ने अपने बयान में कहा कि अगर वह हमारे अपने लोगों के लिए काम नहीं कर सकते, तो फिर कांग्रेस में बने रहना बेकार है.

दो चुनाव जीते, दो चुनाव हारे

बता दें कि 27 साल की उम्र में जितिन प्रसाद ने 2004 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की थी. इसके बाद वे 2009 के लोकसभा चुनाव में भी जीते और कांग्रेस नीत वाली यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री भी बनाए गए. देश में मोदी लहर के दौरान उन्हें 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. इसके साथ ही, 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उनका कोई खास प्रदर्शन नहीं रहा और न ही वे 2021 पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का बंगाल प्रभारी रहते हुए पार्टी को मजबूत किया. अब वे 47 साल के हो गए हैं, तब उन्होंने दो साल से चली आ रही अटकलों पर विराम लगाते हुए कांग्रेस को गुडबाय कह दिया.

सोनिया-राहुल को झटका

अब जबकि जितिन प्रसाद कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में आ गए हैं, तो देश की सबसे पुरानी पार्टी की मुखिया सोनिया गांधी और उसके पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को एक करारा झटका लगा है. इसके साथ ही, माना यह भी जा रहा है कि 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सब कुछ दांव पर लगा देने वाली पार्टी को बड़ा फायदा मिलने वाला है. उनका छोड़ने के बाद कांग्रेस के बागी नेता से लेकर वफादार या तटस्थ नेता तक अब यह कहने लगे हैं कि जतिन प्रसाद का पार्टी छोड़ना दुर्भाग्यपूर्ण और बेहद नुकसानदेह है.

पीएम मोदी, शाह और योगी ने किया स्वागत

कांग्रेस के एक बागी नेता संजय झा ने इंडिया टुडे से बातचीत के दौरान कहा कि अगर वे अमित शाह होते, तो उन्होंने भी जितिन प्रसाद को तोड़ लिया होता. वहीं, जितिन का भाजपा में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनकी प्रशंसा करते हुए कहा कि उनके आने से पार्टी को फायदा होगा.

यूपी के ब्राह्मणों को साधने में जुटे हैं जितिन

जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद को उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का एक प्रभावशाली ब्राह्मण चेहरा माना जाता था, लेकिन जितिन प्रसाद के राजनीति में आने से बहुत पहले ब्राह्मण कांग्रेस से दूर हो गए थे. लगातार दो लोकसभा चुनाव हारने के बाद जितिन प्रसाद ने 2020 में ब्राह्मण चेतना परिषद की शुरुआत की. वह हाल के महीनों में अपने ब्रह्म चेतना संवाद के माध्यम से ब्राह्मण मतदाताओं को जुटाने का प्रयास कर रहे हैं. उनके इस अभियान में वे ब्राह्मण मतदाता हैं, जिन्होंने बहुत पहले खुद को कांग्रेस से दूर कर लिया था.

यूपी के ब्राह्मणों को लेकर चिंतित है संघ

उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव अब कुछ ही महीने बाद होने वाला है. भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस बात को लेकर चिंतित है कि वर्तमान की योगी सरकार सूबे के ब्राह्मणों के खिलाफ है. सूबे में करीब 10 से 12 फीसदी ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या है, लेकिन समझा यह जाता है कि ये 10 से 12 फीसदी ब्राह्मण मतदाता करीब 25 फीसदी मतदाताओं के बीच प्रभावशाली हैं.

यूपी में भाजपा को लेकर बदलेगी धारणा?

उत्तर प्रदेश की सरकार में आधा दर्जन से अधिक ब्राह्मण मंत्री और संगठन में कई अहम पदों पर इस बिरादरी के लोगों के बैठे होने के बावजूद सूबे के ब्राह्मणों में भाजपा को लेकर अच्छी धारणा नहीं है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, मुरली मनोहर जोशी और कलराज मिश्र के टाइम से यूपी के ब्राह्मणों ने भाजपा से दूरी बना रखी है.

चुनावी खेल बिगाड़ सकता है विकास दुबे का मुठभेड़

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कानुपर वाले विकास दुबे का तथाकथित तौर पर पुलिस के हाथों मारा जाना सूबे का पूरा चुनावी खेल बिगाड़ सकता है. इसका कारण यह है कि सूबे में भाजपा सरकार के मुखिया आदित्यनाथ के प्रति ब्राह्मणों की सोच अच्छी नहीं है. आदित्यनाथ का जन्म ठाकुर परिवार में हुआ है और उन्हें ब्राह्मण विरोधी माना जाता है. उनकी इस मानसिकता को बल तब और मिलता है, जब कानपुर का डॉन विकास दुबे एक हाईवोल्टेज ड्रामे में मारा जाता है. इस घटना के बाद से ही यूपी के ब्राह्मण योगी सरकार के खिलाफ माना जा रहा है.

जितिन प्रसाद के आने के बाद ब्राह्मणों की बदल सकती है सोच

अब जबकि जितिन प्रसाद भाजपा में शामिल हो गए हैं, तो यह कयास लगाया जा रहा है कि विकास दुबे के प्रकरण के बाद इनके आने पर भाजपा को लेकर ब्राह्मणों में बनी सोच बदल सकती है. जितिन प्रसाद रीता बहुगुणा जोशी के बाद कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले यूपी के ब्राह्मण बिरादरी से दूसरे बड़े कद्दावर नेता हैं.

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Posted by : Vishwat Sen

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