Prayagraj: माघ मेला में पौष पूर्णिमा के पहले स्नान पर आज प्रदेश और देश के विभिन्न हिस्सों से पहुंचे श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई. भोर में पौष पूर्णिमा लगते ही श्रद्धालुओं की भीड़ स्नान घाटों पर उमड़ पड़ी. सबसे ज्यादा भीड़ संगम तट पर दिखी. मेला क्षेत्र में 14 स्नान घाट बनाए गए हैं.
इस दौरान सुरक्षा के लिहाज से संगम पर एटीएस के कमांडो तैनात रहे. इसके अलावा आरएएफ और पीएसी भी तैनाती रही. मोक्ष की कामना के लिए माघ मेले के पहले स्नान पर्व पौष पूर्णिमा पर आज पांच लाख श्रद्धालुओं के आगमन का अनुमान लगाया गया है. इसके साथ ही आज से कल्पवास की शुरुआत हो गई है.
पौष पूर्णिमा लगने के साथ ही श्रद्धालुओं ने पूजा अर्चन कर कल्पवास का संकल्प लिया. अब इन्हें कल्पवासी कहकर पुकारा जाएगा. अब एक महीने से अधिक दिन तक ये कल्पवासी यहीं अपना ठिकाना बनाएंगे. ये भयंकर शीतलहर में भी जमीन पर सोएंगे, यहीं अपना भोजन पकाएंगे, स्नान करेंगे और पूजन अर्चन में लीन हो जाएंगे. कल्पवास के पहले दिन कल्पवासियों ने तुलसी और शालिग्राम की स्थापना और पूजन किया. साथ ही अपने रहने के स्थान के पास जौ के बीज रोपित किए. एक माह के बाद जब ये अवधि पूर्ण हो जाएगी तो ये लोग इसको अपने साथ ले जाएंगे. जबकि तुलसी को गंगा में प्रवाहित कर दिया जाएगा.
धर्म शास्त्रों के मुताबिक कल्प का अर्थ है युग और वास का अर्थ है रहना. यानी किसी पवित्र भूमि में कठिनाई के साथ संसार की मोह माया से दूर भक्ति भाव के साथ निश्चित समय तक रहने को कल्पवास कहते हैं. कल्पवास के लिए वैसे तो उम्र की कोई बाध्यता नहीं है. लेकिन, माना जाता है कि मोह माया से मुक्त और जिम्मेदारियों को पूरा कर चुके व्यक्ति को ही कल्पवास करना चाहिए, क्योंकि जिम्मेदारियों से जकड़े व्यक्ति के लिए आत्मनियंत्रण कठिन माना जाता है. माघ मेले में कल्पवास के लिए प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से लोग यहां पहुंचे हैं. देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 1954 के कुंभ मेले में किले में कल्पवास किया था.
प्रयागराज में कल्पवास की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है. कल्पवास की परंपरा के महत्व की चर्चा वेदों से लेकर महाभारत और रामचरितमानस में अलग-अलग नामों से मिलती है. आज भी कल्पवास नई और पुरानी पीढ़ी के लिए आध्यात्म की राह का एक पड़ाव है, जिसके जरिए स्वनियंत्रण और आत्मशुद्धि का प्रयास किया जाता है. बदलते समय के अनुरूप कल्पवास करने वालों के तौर-तरीके में कुछ बदलाव जरूर आए हैं, लेकिन न तो कल्पवास करने वालों की संख्या में कमी आई है, न ही आधुनिकता इस पर हावी हुई है.
कल्पवास के दौरान कल्पवासी को जमीन पर शयन करना होता है. इस दौरान फलाहार, एक समय का आहार या निराहार रहने का भी प्रावधान है. कल्पवासी को नियमपूर्वक तीन समय गंगा स्नान और भजन-कीर्तन, प्रभु चर्चा और प्रभु लीला का दर्शन करना चाहिए. कल्पवास की शुरूआत करने के बाद इसे 12 वर्षों तक जारी रखने की परंपरा है. इससे अधिक समय तक भी इसे जारी रखा जा सकता है.
इस बार पौष पूर्णिमा पर तीन योगों का मिलन है. इंद्र योग, ब्रह्म योग के साथ ही सर्वार्थ सिद्धि योग में संगम पर डुबकी लगाने के लिए देश-दुनिया के कोने-कोने से संत, श्रद्धालु और कल्पवासी पुण्य की डुबकी लगाने पहुंचे. इस पूर्णिमा पर ग्रहों की युति शुभ है. लेकिन, पुष्य नक्षत्र का संयोग नहीं है. अन्न-वस्त्र के दान के साथ ही पौष पूर्णिमा से ही रेती पर मास पर्यंत जप, तप और ध्यान के महीने भर का कल्पवास आरंभ हो गया.
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पंचांग के अनुसार इस बार पौष पूर्णिमा आज भोर में 2.17 बजे लग गई. अगले दिन सात जनवरी की सुबह 4.36 बजे तक पूर्णिमा रहेगी. ऐसे में उदया तिथि की मान्यता के तहत आज पौष पूर्णिमा का स्नान है. ग्रहों और योगों के मिलन से इस पूर्णिमा पर स्नान दान का महत्व अधिक है. ज्योतिषाचार्य गणेश दत्त त्रिपाठी के अनुसार इस बार पौष पूर्णिमा पर विशेष योग मिलने से कल्पवास अधिक फलदायी है. संकल्प लेने वालों की कामनाएं पूरी होंगी.