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दिन में बिछती थीं और रात को उखड़ जाती थी रेल की पटरियां, ऐसा है इस दरगाह का रहस्य

लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन पर रेल ट्रैक के बीच में एक ऐसी दरगाह है, जिस पर हर गुरुवार को बड़ा मेला लगता है. इस मजार पर सभी धर्म के लोग अपनी मन्नतों के लिये आते हैं. इसे खम्मन पीर बाबा की दरगाह कहा जाता है

Lucknow: चारबाग रेलवे स्टेशन अपनी वास्तुकला के लिये मशहूर है. लेकिन यहां रेल ट्रैक के बीच एक ऐसी दरगाह है जहां मन्नत मांगने के लिये प्रत्येक गुरुवार को हजारों लोग जुटते हैं. इसे खम्मन पीर बाबा की दरगाह कहा जाता है. चारबाग रिजर्वेशन काउंटर के पास से इस दरगाह का रास्ता है.

बताया जाता है कि जहां यह दरगाह है वहां पहले भदेवा नाम का जंगल हुआ करता था. इसी स्थान पर अंग्रेजों से हिंदुस्तानियों की जंग हुई थी, जिसमें खम्मन पीर बाबा शहीद हो गए थे. शहीद बाबा की कब्र यहीं पर बना दी गई थी. इस दरगाह की खास बात यह है कि यह रेलवे की पटरियों के बीच में स्थित है. दोनों तरफ से ट्रेनें गुजरती रहती हैं और जायरीन अपनी मन्नत मांगने यहां आते रहते हैं.

खम्मन पीर के खतीब-ओ-इमाम कमरुदीन ने बताया कि अंग्रेज जब यहां रेलवे ट्रैक बिछा रहे थे, तब उन्हें मालूम नहीं था कि यहां पीर बाबा का विश्राम स्थल है. अंग्रेज यहां दिन में ट्रैक बिछाते, लेकिन जब वह दिन में आते तो पटरियां उखड़ी हुई मिलतीं. कई दिनों तक यह स्थिति बनी रही. बताया जा रहा है कि अंग्रेज इंजीनियर के ख्वाब में बाबा में आए और उसे बताया कि यह मेरी आरामगाह है.

तब उस अंग्रेज को लगा कि यहां पर कोई शक्ति है. इसके बाद वह जगह पीर बाबा के नाम से छोड़ दी गयी. लोगों की मानें तो यह मजार सैकड़ों साल पुरानी है. हर मजहब के लोग अपनी मुरादें लेकर आते हैं, चादर चढ़ाते हैं. उनकी मुराद भी पूरी होती हैं. यहां देश-विदेश से भी बड़ी संख्या में लोग आते हैं. यहां उर्स भी मनाया जाता है. जिसमें लखनऊ ही नहीं आस-पास के जिलों से भी जायरीन पहुंचते हैं. खासबात यह है के इस दरगाह में आने वाले जायरीनों में हिंदुओं की संख्या बहुतायत में है.

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