Varanasi News: शिव की नगरी में महादेव के दो रूप, भक्तों की आस्था का केन्द्र बिंदु बने हुए है. एक तिलभांडेश्वर, तो दूसरे गोरी केदारेश्वर, कहीं तिल-तिल बढ़ता स्वरूप तो कहीं पाषाण रूपी अलोकिक रूप. दोनों ही शिव भक्तों के लिए बाबा का वरदान हैं. तिलभांडेश्वर महादेव का स्वरूप प्रत्येक वर्ष तिल-तिल करके बढ़ता रहता है. गंगा से करीब 500 मीटर की दूरी पर स्वयंभू बाबा तिलभांडेश्वर महादेव का अति प्राचीन मंदिर है. वही काशी में महादेव के कई रूप हैं, जिसमें गौरी केदारेश्वर मंदिर भी भक्तों के लिए शिव वरदान स्वरूप है.
काशी के पंडित ऋषि त्रिवेदी ने दोनों मंदिर का महत्व विस्तार से बताया. उन्होंने बताया कि यहां सावन में श्रद्धालु भारी संख्या में दर्शन करने आते हैं. मान्यता है कि जब खिचड़ी से बाबा प्रकट हुए तो पाषाणवत यानि लिंग के रूप में आ गए, जिसमे आज भी दो धार दिखती हैं. इसमे से एक को माता पार्वती का स्वरूप तथा दूसरे स्वरूप को महादेव के रूप में पूजा जाता है.
काशी विश्वनाथ के अलावा शहर में तिलभांडेश्वर महादेव में भी भक्तों का रेला उमड़ा रहता है. तिलभांडेश्वर महादेव में जमीन से 70 फिट ऊपर महादेव के शिवलिंग के दर्शन कर मनोकामना मांगने वालों की लंबी लाइन लगी रहती है. इनका महात्म्य है कि गंगा सागर में बार-बार स्नान, प्रयागराज संगम में स्नान और काशी के दशाश्वमेध घाट पर स्नान करने से जो पुण्य की प्राप्ति होती है, उस फल, पुण्य की प्राप्ति केवल एक बार इनके दर्शन मात्र से हो जाती है. बाबा तिलभांडेश्वर महादेव के ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कब हुई इस बारे में कोई निश्चित तिथि या काल नहीं है.
प्रचलित मान्यता के अनुसार, ऋषि-मुनियों ने इस स्थल पर तपस्या किया करते थे. ऋषिमुनि ने एक मिट्टी के भांड में तिल भरकर पास में रखते थे. मन्दिरों के शहर बनारस में कई रहस्य छिपे हुए हैं. इन्हीं में से एक है काशी के केदार खण्ड का गौरी केदारेश्वर मंदिर. वैसे तो आपने कई शिवलिंग देखे होंगे लेकिन काशी के इस शिवलिंग की एक नहीं बल्कि कई महिमा हैं. यह शिवलिंग आमतौर पर दिखने वाले बाकी शिवलिंग की तरह ना होकर दो भागों में बंटा हुआ है. एक भाग में भगवान शिव और माता पार्वती हैं, वहीं दूसरे भाग में भगवान नारायण अपनी अर्धनगिनी माता लक्ष्मी के साथ हैं.
यही नहीं इस मंदिर की पूजन विधि भी बाकी मंदिरों की तुलना में अलग है. यहां बिना सिला हुआ वस्त्र पहनकर ही ब्राह्मण चार पहर की आरती करते हैं. वहीं इस स्वंभू शिवलिंग पर बेलपत्र, दूध गंगाजल के साथ ही भोग में खिचड़ी जरूर लगाई जाती है. ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव स्वयं यहां भोग ग्रहण करने आते हैं.
रिपोर्ट- विपिन सिंह