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UP Election: पूर्वांचल में जीत पक्की करने के लिए नेताओं में मची मठाधीशों को रिझाने की होड़, समझें समीकरण

विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक दलों के नेता वाराणसी के मठ, आश्रम व धार्मिक स्थल के जरिए एक विशेष वर्ग को साधने में जुट गए हैं.

Varanasi News: काशी में स्थापित मठ और मंदिरों को लेकर सभी धर्म-वर्ग समुदाय के बीच में एक भावनात्मक लगाव है. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में राजनीतिक दृष्टिकोण की यदि बात करे तो यहां के मठ, आश्रम और धार्मिक स्थलों के जरिए एक विशेष वर्ग से जुड़ने की की हमेशा नेताओं द्वारा कोशिश की जाती है. ऐसा इसलिए क्योंकि काशी एक धार्मिक नगरी है यहां गंगा के किनारे बने मठ और आश्रम में दूर दराज से विशेष वर्ग के अनुयायी आते हैं.

कोर वोट को प्रभावित करने में जुटी राजनीतिक हस्तियां

चुनावी माहौल में नेताओं को लगता है कि वे इन वर्गों तक यहां उपस्थिति दर्ज कराकर लोगों को प्रभावित कर सकते हैं. हाल ही में संत रविदास जयंती के अवसर पर जिस प्रकार से पंजाब और हरियाणा से आए दलित वर्गों के अलावा भी राजनीतिक नेताओं का हुजूम यहां उमड़ा था. उसे देखकर यही कयास लगाया जा रहा था कि कोर वोट को प्रभावित करने के लिए इतनी राजनीतिक हस्तियां यहां पधार रही हैं. ऐसे में हमने काशी के गड़वाघाट आश्रम व कुछ वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकारों से इस पर मन्तव्य जानने की कोशिश की.

देशभर से आते हैं अनुयायी

मठ गढ़वा घाट ट्रस्ट स्वामी हरसेवानन्द शिक्षक सोसायटी के सचिव प्रकाश ध्यानंद ने बताया कि गड़वाघाट की स्थापना 1925 में हुई थी. पहली गद्दी के महाराज 1925 से लेकर 1849 तक थे इसके बाद स्वामी हरसेवानन्द 1949 से लेकर 1972 तक थे. स्वामी हरिशंकरा नन्द जी महाराज 1872 से 1983 तक थे. इस समय वर्तमान में स्वामी सदगुरुदेव परमानन्द जी महाराज हैं जो लगातार अभी तक गद्दी पर विराजित हैं. इसका आश्रम पूरे भारत में है और अनुयायी भी हर राज्य से यहां आते हैं.

‘जाति या विशेष वर्ग से नहीं जीव से होगा है संबंध’

आश्रम में अब तक देश के शीर्ष नेताओं में पीएम मोदी, अमित शाह, अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव, राहुल गांधी, पूर्व पीएम चंद्रशेखर, समेत क़ई बड़े लीडर आ चुके हैं. ऐसा कहा जाता है कि आश्रम में विशेष वर्ग के अनुयायी आते हैं, जिनका कोर वोट बैंक है. ऐसे में क्या इस बार भी आश्रम में राजनीतिक गतिविधि देखने को मिलेगी. इसके जवाब में स्वामी कहते हैं कि आश्रम किसी विशेष वर्ग का नहीं होता है, आश्रम सबका होता है. हमारे आश्रम में क़ई मुस्लिम समुदाय के भी महात्मा आते हैं. यहां जीव की पूजा होती हैं ,इसलिए जीव से सम्बंध रखा जाता है, जाति या विशेष वर्ग से संबंध नहीं रखा जाता है.

वरिष्ठ पत्रकार उत्पल पाठक ने बताए सियासी समीकरण

काशी के वरिष्ठ पत्रकार उत्पल पाठक ने काशी की राजनीति में जुड़े आश्रम के अनुयायी व विशेष वर्ग को लेकर कहा कि, काशी न सिर्फ सार्वभौमिक रूप से सर्वविद्या की राजधानी है, बल्कि धार्मिक राजधानी भी है. यहां हर समुदाय के मंदिर है और सबकी अपनी-अपनी प्रतिष्ठा व आस्था है. रविदास मंदिर में भी चुनाव होने की वजह से पॉलिटिशियन का जमावड़ा लगा हुआ था.

उत्पल पाठक ने बताया कि, यहां दलितों से जुड़ा हुआ वर्ग विशेष आस्था रखता है, तो वहीं सवर्ण भी यहां आते हैं. उसी प्रकार कीनाराम आश्रम, संकटमोचन मन्दिर, सक्तेशगढ़ आश्रम, गड़वाघाट आश्रम हर जगह सभी लोग जाते हैं. राजनीतिक लोग भी यहां पहुंचकर जनता को जताते हैं कि हम वहां भी पहुंच गए जहां आप लोग आते हैं, और आपके और हमारे देवता एक हैं. इसलिए हमे सपोर्ट करना चाहिए.

गड़वाघाट मठ

उत्तर प्रदेश के जिला मिर्जापुर एवं जिला सोनभद्र में, इस आश्रम की ’श्रीगुरुदेवनगर एवं श्रीगुरुदासपुर’ नाम की दो बड़ी शाखायें हैं. आश्रम की अन्य बड़ी शाखायें- हरिद्वार,मुंबई, देहरादून, कोलकाता आदि शहरों में भी हैं. इसके अलावा उत्तर प्रदेश एवं बिहार प्रदेश में, लगभग 65 शाखायें हैं.

रविदास मंदिर में चुनाव होने की वजह से पॉलिटिशियन का जमावड़ा लगा हुआ था. कोविड की वजह से पिछले साल पंजाब से लोग कम आये थे. बेगमपुरा ट्रेन नहीं आई थी, मगर फिर भी कांग्रेस लीडर प्रियंका गांधी आयी थी. यहां भी दलितों से जुड़ा हुआ वर्ग विशेष आस्था रखता है. मगर सवर्ण भी यहां आते हैं. उसी प्रकार की संकटमोचन मन्दिर, सक्तेशगढ़ आश्रम, गड़वाघाट आश्रम हर जगह सभी लोग जाते हैं, और यह मैसेज देते हैं कि यह एक शक्ति केंद्र है.

अघोर पीठ कीनाराम आश्रम

16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में वाराणसी के भदैनी मोहल्ले में स्थिर रविंद्रपुरी वर्तमान में आश्रम को पुनः प्रतिष्ठित किया गया. अघोर पीठ का यह सबसे महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है. 170 वर्ष की आयु में अघोराचार्य बाबा कीनाराम ने समाधि ली और उसके बाद धीरे-धीरे परंपरा आगे बढ़ती रही. वर्तमान समय में बाबा सिद्धार्थ गौतम राम यहां विराजमान हैं. यह मठ पूर्वांचल ही नहीं बल्कि पूरे देश के कौने-कौने से आने वाले भक्तों के लिए आस्था का बड़ा केंद्र है. ऐसा माना जाता है कि यहां पर बड़ी संख्या में ठाकुर समुदाय रघुवंशियों की आस्था जुड़ी हुई है.

जंगमवाड़ी मठ

यह मठ वाराणसी के प्राचीनतम मठों में से एक है. लिखित ऐतिहासिक आलेखों के अनुसार, यह मठ 8वीं. शताब्दी में निर्मित है. हालांकि इसके निर्माण की सटीक तिथि प्रमाणित करना कठिन है. कहा जाता है कि राजा जयचन्द ने इस मठ के निर्माण के लिए भूमि दान में दी थी. तत्पश्चात यह मठ 86 जगत्गुरुओं की अटूट वंशावली का साक्षी है. इस मठ के वर्तमान गुरु, पीठाधिपति जगत्गुरू श्री चन्द्रशेखर शिवाचार्य महास्वामीजी हैं.

इस मठ से सम्बंधित एक सुखद तथ्य यह भी है कि इस मठ में कई गुरुमाएं भी थीं, जिन में धर्मगुरु शर्नम्मा प्रमुख थीं. यह लिंगायत समुदाय से जुड़ा है. ऐसे में सियासी दृष्टि से यह कयास लगाया जाने लगा है कि मिशन यूपी 2022 के तहत ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां आए. इतना ही नहीं भाजपा ने सोची समझी रणनीति के तहत येदियुरप्पा को भी आमंत्रित किया. कर्नाटक लिंगायत समुदाय से आते है जो पूरे कर्नाटक में एक अगड़ी जाति मानी जाती है और उत्तर कर्नाटक में तो एक प्रभावशाली वोट बैंक है. वहीं कांग्रेस पार्टी 1990 से ही लिंगायत समुदाय की नाराजगी झेल रही है, जब तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी ने उनके नेता वीरेंद्र पाटिल को मुख्यमंत्री पद से हटाया था.

रिपोर्ट- विपिन सिंह

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