Loading election data...

लॉकडाउन: अपनों से मिलने की चाह में सात सौ किमी पैदल चलकर अपने घर पहुंचे सात मजदूर

देश में जारी लॉकडाउन के बीच अपना रोजगार खो चुके मजदूरों की अपने-अपनों से जा मिलने की आस पूरी करने की पहाड़ सी जद्दोजहद का सिलसिला जारी है. ताजा मामला बलरामपुर का है, जहां सात श्रमिक 700 किलोमीटर पैदल चलकर सोमवार को अपने घर पहुंचे. परिवार के लिये दो वक्त की रोटी जुटाने के लिये झांसी जिले में पत्थर तोड़ने का काम करने पहुंचे बलरामपुर के पचपेड़वा स्थित खादर गांव के निवासी सात मजदूरों का काम कोरोना संक्रमण के मद्देनजर लागू लॉकडाउन के कारण ठप हो गया.

By Radheshyam Kushwaha | April 20, 2020 9:50 PM

बलरामपुर. देश में जारी लॉकडाउन के बीच अपना रोजगार खो चुके मजदूरों की अपने—अपनों से जा मिलने की आस पूरी करने की पहाड़ सी जद्दोजहद का सिलसिला जारी है. ताजा मामला बलरामपुर का है, जहां सात श्रमिक 700 किलोमीटर पैदल चलकर सोमवार को अपने घर पहुंचे. परिवार के लिये दो वक्त की रोटी जुटाने के लिये झांसी जिले में पत्थर तोड़ने का काम करने पहुंचे बलरामपुर के पचपेड़वा स्थित खादर गांव के निवासी सात मजदूरों का काम कोरोना संक्रमण के मद्देनजर लागू लॉकडाउन के कारण ठप हो गया. उनके पास जो जमा पूंजी थी वह भी करीब 20 दिन में खत्म हो गयी. लॉकडाउन बढ़ने और रोटी का संकट खड़ा होने पर सभी मजदूरों का हौसला जवाब दे गया और सभी मजदूर एक सप्ताह पहले करीब 700 किलोमीटर का सफर पैदल तय करने के लिये निकल पड़े.

मजदूर शिव प्रसाद (35) बताते हैं, ‘उनकी 80 वर्षीय मां की तबीयत खराब होने की सूचना मिली थी. मां बार-बार याद कर रही थी. मां के पास जाने का इरादा करके वह झांसी से अपने साथियों के साथ अपने गांव के लिये पैदल निकले. उनके पास खाने पीने का सामान नहीं था लेकिन घर पहुचने की जूनन लेकर वहां से निकल पड़े. एक हफ्ते के सफर में तमाम परेशानियां आयीं. कई बार हौसला जबाब दे गया लेकिन परिवार वालों का चेहरा देखने की लालसा में हौसले को फिर से इकठ्ठा कर सबके साथ चल दिए. शिव प्रसाद के साथी मजदूर प्रभुदयाल (28) ने बताया, 14 अप्रैल की सुबह सभी लोग झांसी से निकल पड़े. पहले तो उम्मीद थी कि कहीं न कहीं लखनऊ तक जाने के लिये वाहन मिल जाएगा लेकिन करीब 400 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद भी उन्हें वाहन नहीं मिला.

कई जगह वाहनों को आते-जाते देख, उन्हें रोकने की कोशिश की लेकिन कोई नहीं रुका. वाहन पकड़ने की कोशिश में उनका मोबाइल फोन भी कहीं गिर गया. शिव प्रसाद बताते है कि पिछले एक सप्ताह से अपने साथियों सहित लगातार पैदल सफर कर रहे हैं और थककर चूर हो जाने पर सिर्फ दो घण्टे आराम करने के बाद मंजिल की तरफ चल पड़ते. उन्होंने बताया कि रास्ते में कई बार पैरों में छाले पड़ते और फूटते रहे लेकिन परिवार से मिलने की आस के आगे ये तमाम तकलीफें कुछ भी नहीं थीं. पुलिस अधीक्षक देव रंजन वर्मा ने बताया कि झांसी से चलकर अपने गांव खादर जाने वाले सात मजदूरों की स्क्रीनिंग कराकर उन्हें उनके घर में ही 14 दिन के लिये पृथकवास में भेजा जा रहा है.

उन्होंने बताया कि इन मजदूरों की निगरानी के लिये पुलिस टीम भी लगा दी गई है, जो 14 दिन लगातार इन पर नज़र रखेगी. उन्होंने बताया कि कोरोना वायरस के खिलाफ चल रही जंग में कुछ दिनों बाद कामयाबी जरूर मिलेगी. उन्होंने कहा कि इसके साथ ही इन मजदूरों की जिंदगी फिर से पटरी पर लौट आएगी लेकिन लॉकडाउन के समय व्यतीत किया गया वक्त और 700 किलोमीटर का थकाकर चकनाचूर कर देने वाला सफर किसी डरावने सपने से कम नहीं रहा होगा.

Next Article

Exit mobile version