Bareilly News: मिशन 2024 की तैयारियों में जुटी समाजवादी पार्टी में एक के बाद एक बड़े फैसले लिए जा रहे हैं. केंद्र में पीएम की कुर्सी के लिए यूपी की 80 लोकसभा सीट में से अधिक से अधिक पर जीत जरूरी है. मगर, यूपी में बिना पिछड़ों (OBC) के लोकसभा-विधानसभा में जीत मुश्किल है, लेकिन यहां का ओबीसी पिछले कुछ चुनाव से भाजपा के साथ है.
साल 2019 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों पर निगाह डालें, तो ओबीसी का यादव मतदाता तक बड़ी संख्या में भाजपा के साथ चला गया था. मगर, अब सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने मुस्लिम-यादव (MY) के साथ ओबीसी-एससी कार्ड खेलने की तैयारी की है. क्योंकि, यूपी में करीब 40 फीसद ओबीसी हैं. इसमें करीब 10 फीसद यादव, 8 फीसद कुर्मी, गंगवार, पटेल और कन्नौजिया, 5 फीसद मल्लाह, कश्यप, राजभर, 3 फीसद लोध-किसान, 3 फीसद जाट, 2 फीसद विश्वकर्मा (कुम्हार), 2 फीसद गुर्जर, तो वहीं 7 फीसद में अन्य पिछड़ी जातियां हैं.
इसके साथ ही 22 फीसद एससी और करीब 20 फीसद मुस्लिम मतदाता हैं. यूपी में मुस्लिम, ओबीसी और एससी मिलकर 80 फीसद से अधिक हैं. इनके साथ आने से विधानसभा से लेकर लोकसभा तक में जीत का परचम फहराया जा सकता है. क्योंकि, यूपी में 18 फीसद सवर्ण जातियों का वोट है. इसमें 10 फीसद ब्राह्मण, तो वहीं बाकी में अन्य सवर्ण. मगर, अब अखिलेश यादव सवर्ण मतदाताओं का मोह छोड़कर ओबीसी- एससी पर फोकस कर रहे हैं. क्योंकि, सवर्ण वोट हमेशा भाजपा के साथ ही रहता है. उनके इन फैसलों से भाजपा काफी चिंतित है. इसका तोड़ तलाशने को चिंतन भी शुरू हो गया है.
यूपी की सियासत को समझने में मुलायम सिंह यादव के बाद शिवपाल सिंह यादव काफी माहिर हैं. हालांकि, उनकी नाराजगी से सपा को नुकसान भी हुआ. विधानसभा चुनाव 2022 में मुस्लिम मतदाता 97 फीसद सपा के साथ गया. मगर, अखिलेश पर मुस्लिमों पर जुल्म के वक्त न खड़े होने का आरोप था. वह कांग्रेस की तरफ बढ़ रहा था. मगर, शिवपाल सिंह ने स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ सियासत की नई इबारत लिख दी है. ओबीसी को एकत्र करने की कवायद शुरू कर दी है. 2019 लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन के बाद भी सपा को सिर्फ 5 सीट मिली थीं.
सपा ने रविवार को राष्ट्रीय कमेटी का ऐलान किया है. इसमें एक राष्ट्रीय प्रमुख महासचिव के साथ 14 राष्ट्रीय महासचिव बनाए हैं. मगर, इसमें एक भी सवर्ण जाति का नहीं है. कमेटी में ओबीसी को तब्बजो दी गई है. राष्ट्रीय महासचिव के रूप में मुस्लिम समाज से आजम खान के अलावा किसी मुस्लिम चेहरे को जगह नहीं मिली है. हालांकि, कमेटी के ऐलान के बाद पूर्व सांसद सलीम इकबाल शेरवानी को जगह दी गई है.
ओबीसी नेताओं में रवि प्रकाश वर्मा, स्वामी प्रसाद मौर्य, विश्वंभर प्रसाद निषाद, लालजी वर्मा, राम अचल राजभर हरेंद्र मलिक नीरज चौधरी आदि को राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया है. ओबीसी कैटेगरी में कई जातियां है, इसका ध्यान भी रखा है. सपा ने ओबीसी की सभी प्रमुख जातियों के नेताओं को राष्ट्रीय संगठन में बड़े पदों पर रखा है. सपा ने मौर्य, राजभर निषाद और कुर्मी जातियों के अलावा जाट नेताओं को भी जगह दी है. पासी, जाटव जैसी दलित जातियों को भी पद देकर दलितों को संदेश दिया जाएगा.
सपा प्रमुख के फैसलों से पार्टी के सवर्ण जाति के नेता बेचैन हैं. इसमें से कई ने सोशल मीडिया पर बुराई शुरू कर दी है. मगर, सपा को यह वोट भी नहीं मिलता. सवर्ण जाति के प्रत्याशी को छोड़कर अन्य सीट कर यह वोट भाजपा के साथ जाता है. इसीलिए सपा ने ओबीसी कार्ड खेलकर ओबीसी को दोबारा संगठित करने की कवायद शुरू की है, जिसके चलते राजनीति में ब्राह्मणों, और ठाकुरों के लिए कोई जगह नहीं.
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पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को पद्म विभूषण सम्मान से नवाजे जाने की घोषणा के बाद सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा की गई.इसमें अखिलेश यादव ने पिछड़ों-दलितों और मुसलमानों के समीकरण पर ही राजनीति करने वाली सपा की रणनीति को साफ कर दिया है.सपा कार्यकारिणी को भी देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि अब मुस्लिम और यादवों के अलावा सपा में ओबीसी नेताओं का दबदबा होगा.
रिपोर्ट- मुहम्मद साजिद, बरेली