अब विधान परिषद में भी पारित हो गया लव जिहाद रोधी विधेयक, पढ़ें कितनी मिलेगी सजा

सदन में भोजनावकाश के बाद शुरू हुई कार्यवाही के दौरान इस विधेयक को सदन के पटल पर रखा गया. सदन में सपा और विपक्ष के नेता अहमद हसन और कांग्रेस सदस्य दीपक सिंह ने इसमें कई खामियां गिनाते हुए इसे प्रवर समिति के पास भेजने का आग्रह किया.

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 25, 2021 8:24 PM

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने का फैसला लिया था और अब यह विधानपरिषद में भी पास हो गया. विधानसभा के बाद बृहस्पतिवार को विधान परिषद में भी पारित हो गया. विधेयक में शादी समेत छल, कपट या बलपूर्वक धर्म परिवर्तन कराने को संज्ञेय अपराध बनाते हुए अधिकतम 10 साल की कैद और 50,000 रुपये जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है .

सदन में भोजनावकाश के बाद शुरू हुई कार्यवाही के दौरान इस विधेयक को सदन के पटल पर रखा गया. सदन में सपा और विपक्ष के नेता अहमद हसन और कांग्रेस सदस्य दीपक सिंह ने इसमें कई खामियां गिनाते हुए इसे प्रवर समिति के पास भेजने का आग्रह किया.

इसे खारिज करते हुए सभापति कुंवर मानवेन्द्र सिंह ने इसे ध्वनिमत से पारित घोषित कर दिया. कथित ‘लव जिहाद’ रोकने के लिये लाये गये इस विधेयक में छल, कपट या बलपूर्वक धर्म परिवर्तन कराने को संज्ञेय अपराध बनाते हुए अधिकतम 10 साल की कैद और 50,000 रुपये जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है.

विधेयक पर चर्चा के दौरान सपा सदस्य शशांक यादव ने इस विधेयक की धारा आठ और नौ को संविधान की मूल भावना के बिल्कुल विपरीत बताया. उन्होंने कहा कि सरकार की यह भावना अपनी जगह पर सही है कि विधि विरुद्ध तरीके से धन परिवर्तन नहीं कराया जा सकता, मगर इसके लिए पहले से ही कानून मौजूद है.

उन्होंने कहा कि ऐसे कई मामले हैं जिनमें लड़का और लड़की दोनों के ही माता—पिता कह रहे हैं कि यह शादी दोनों पक्षों की सहमति से हुई है, मगर कोई भी व्यक्ति रक्त संबंध बताकर शिकायत कर रहा है और पुलिस उस पर मुकदमा दर्ज कर रही है.

विपक्ष के नेता अहमद हसन ने आरोप लगाया कि पुलिस धर्म परिवर्तन सम्परिवर्तन अध्यादेश का दुरुपयोग कर रही है. इस विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजा जाए ताकि इसके हर पहलू को जांच—परख लिया जाए.

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कांग्रेस सदस्य दीपक सिंह ने भी विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजने का आग्रह करते हुए कहा कि भारतीय दंड विधान में विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन रोकने के लिए पहले से ही कई प्रावधान हैं. सरकार अपने पिछले चार साल की असफलताओं को छुपाने के लिए किसी भी चीज को कानून का रूप दे रही है, यह उचित नहीं है.

बसपा सदस्य दिनेश चंद्रा ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25 में जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने की पहले से ही व्यवस्था दी गयी है इसलिए किसी नए कानून की कोई जरूरत नहीं है. प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री मोहसिन रजा ने इस कानून की जरूरत पर जोर देते हुए दलीलें पेश कीं.

नेता सदन उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने कहा कि सरकार की मंशा इस कानून का दुरुपयोग करने की कतई नहीं है. यह किसी धर्म विशेष के संबंध में नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर कोई हिंदू भी इस तरह का कृत्य करता है तो वह भी उतना ही दंड का पात्र है.

उन्होंने कहा कि यह विधेयक केवल इसलिए लाया गया है कि लोग जबरन किसी को प्रताड़ित करके या प्रभावित करके धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित या उत्प्रेरित न कर सकें. इसी बीच, सभापति कुंवर मानवेंद्र सिंह ने नेता विरोधी दल और उनकी पार्टी के सदस्यों द्वारा दिए गए संशोधन प्रस्ताव को नियमों के विरूद्ध बताते हुए उन्हें खारिज कर दिया. इसके बाद सभापति ने विधेयक को ध्वनिमत से पारित घोषित कर दिया.

विधानसभा में बुधवार को इसे पारित किया गया था. इसी बीच, सपा के सदस्य सदन के बीचोबीच आकर हंगामा करने लगे और विधेयक की प्रतियां फाड़ दीं. सभापति ने उन्हें अपने स्थान पर जाने को कहा, मगर ऐसा नहीं होने पर उन्होंने सदन की कार्यवाही 10 मिनट के लिए स्थगित कर दी.

गौरतलब है कि मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ की अध्‍यक्षता में पिछले वर्ष नवंबर माह में मंत्रिमण्डल की बैठक में ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्‍यादेश को मंजूरी थी. इसका उल्लंघन करने पर कम से कम एक साल और अधिकतम पांच साल कैद तथा 15000 रुपए जुर्माने का प्रावधान किया गया है.

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नाबालिग लड़की, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की महिला के मामले में यह सजा तीन साल से 10 वर्ष तक की होगी और 25000 रुपये जुर्माना लगाया जाएगा. इसके अलावा सामूहिक धर्म परिवर्तन के संबंध में अधिकतम 10 साल की कैद और 50,000 रुपये जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है.

इस विधेयक के तहत ऐसे धर्म परिवर्तन को अपराध की श्रेणी में लाया जाएगा जो छल, कपट, प्रलोभन, बलपूर्वक या गलत तरीके से प्रभाव डाल कर विवाह या किसी कपटपूर्ण रीति से एक धर्म से दूसरे धर्म में लाने के लिए किया जा रहा हो. इसे गैर जमानती संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखने और उससे संबंधित मुकदमे को प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट के न्यायालय में विचारणीय बनाए जाने का प्रावधान किया गया है .

इसमें सामूहिक धर्म परिवर्तन के मामले में संबंधित सामाजिक संगठनों का पंजीकरण रद्द कर उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही किये जाने का प्रावधान है. कोई धर्मांतरण छल, कपट, जबरन या विवाह के जरिए नहीं किया गया है, इसके सबूत देने की जिम्मेदारी धर्म परिवर्तन कराने वाले तथा करने वाले व्यक्ति पर होगी.

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