21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

महान महंत की महानगाथा : महंत रामाश्रय दास ने कॉलेज के लिए दान की थी 40 बीघा जमीन

आज ही के दिन सतनामी परंपरा की महत्वपूर्ण कड़ी महंत रामाश्रय दास का शरीर गोरखपुर के पाली गांव में शांत हुआ था. इसके उपरांत उनके पार्थिव देह को सिद्धपीठ भुड़कुड़ा लाया गया. पूर्ववर्ती सद्गुरुओं की समाधि के समीप मठ परिसर में ही समाधि दी गयी.

पूर्वांचल के गाजीपुर के जखनिया तहसील का एक गांव भुड़कुड़ा सतनामी संत परंपरा का लोक तीर्थ है. यहां बूला गुलाल भीखा जैसे तत्व ज्ञानी सिद्ध साधक ध्यान की गहराई में उतरकर साधना किए तथा मानवता का संदेश दिए. आठ प्रहर बत्तीस घरी भरो पियाला प्रेम/यारी कहें विचारि के यही हमारो नेम की परंपरा यहां जीवंत हुई. कालांतर में इस परंपरा से एक महत्वपूर्ण नाम जुड़ा, जिसे महंत रामाश्रय दास के रूप में जाना जाता है. उन्होंने ध्यान योग को अपनाकर मन पर विजय प्राप्त किया.

वे कहते थे, ‘ध्यान किए क्या होय, मन को जो नहिं वश करे/मन वश नहिं जो होय, ध्यान सो काहे करै’. उन्होंने कॉलेज की स्थापना के लिए 1972 में 40 बीघा जमीन और 10 हजार रुपये दान किये थे.  श्री म. रा. दा. पी. जी. कॉलेज भुड़कुड़ा के अंग्रेजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ संतोष कुमार मिश्र ने कहा कि 14 मई 2008 महंथ रामाश्रय दास के ब्रह्मलीन हुए थे.

आज ही के दिन सतनामी परंपरा की महत्वपूर्ण कड़ी महंत रामाश्रय दास का शरीर गोरखपुर के पाली गांव में शांत हुआ था. इसके उपरांत उनके पार्थिव देह को सिद्धपीठ भुड़कुड़ा लाया गया. पूर्ववर्ती सद्गुरुओं की समाधि के समीप मठ परिसर में ही समाधि दी गयी. डेढ़ दशक के बाद भी एक संत के रूप में उनकी सूक्ष्म उपस्थिति का बोध समाज में निरंतर बना हुआ है.

इससे यह सिद्ध होता है कि आत्मा अमर है, तो महात्मा (महान+आत्मा) भी अमर हैं. यदि मठ मंदिर समाज के शक्ति केंद्र हैं, तो महंत रामाश्रय दास जैसे संत सज्जन शक्ति पुंज के रूप में इस धरा धाम को आलोकित किये हैं. समाज द्वारा प्रेरणादायी जीवन को विस्मृत नहीं किया जा सकता. उनके द्वारा किया गया परोपकारी व्यक्तित्व का स्मरण सदैव दिलाता रहता है.

महंत रामाश्रय दास ने ‘सेवा धरम सकल जग जाना ‘ के मर्म को जानकर भुड़कुड़ा जैसे अत्यंत पिछड़े क्षेत्र में 40 बीघा जमीन एवम 10 हजार रुपये दान देकर वर्ष 1972 में उच्च शिक्षा का प्रकल्प खड़ा किया. अपने गुरु द्वारा आरंभ किये गये कार्य को आगे बढ़ाया. इस प्रकल्प को चलाने के लिए आरंभिक दिनों में अध्यापकों को आवासीय व्यवस्था एवम भोजन निःशुल्क उपलब्ध कराया.

धीरे धीरे यह महाविद्यालय एक विशिष्ट उच्च शिक्षण संस्थान के रूप में स्थापित हुआ. बीते 50 वर्षों में इस प्रकल्प से बहुतेरे लाभान्वित हुए और आगे भी हो रहे हैं. जिस प्रकार गृहस्थ अपने पुरखों का स्मरण कर श्राद्ध तथा तर्पण करते हैं, उसी प्रकार से समाज के लोग भी प्रेरणादायी जीवन का पुण्य स्मरण कर जयंती एवं पुण्यतिथि मनाते हुए अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं. अमृतकाल में सिद्धपीठ का कण-कण ब्रह्मलीन महंत रामाश्रय दास को श्रद्धापूर्वक याद कर कृतज्ञता का भाव व्यक्त कर रहा है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें