Varanasi News: काशी में विराजते हैं बाबा तिलभांडेश्वर, मकर संक्रांति पर बढ़ जाता है शिवलिंग का आकार
महाशिवरात्रि के दिन भोर में मंदिर खुलने से लेकर शाम छह बजे तक सभी को गर्भगृह में प्रवेश और स्पर्श की अनुमति होती है. शाम छह बजे शंख बजने के बाद महाशिवरात्रि का अनुष्ठान आरंभ हो जाता है. उसके बाद अगली सुबह छह बजे तक गर्भगृह में अर्चकों के अतिरिक्त किसी का प्रवेश नहीं होता.
Mahashivratri News: काशी में महाशिवरात्रि पर्व बहुत धूमधाम से मनाई जाती हैं. भोलेशंकर की अतिप्रिय नगरी काशी में भोलेनाथ का एक ऐसा मंदिर है जहां शिवलिंग प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति पर्व के अवसर पर बढ़ता है. यह मंदिर काशी के सोनारपुरा क्षेत्र में स्थित है. महाशिवरात्रि औऱ सावन में बाबा के दर्शनों के लिए भक्तों की भीड़ लगी रहती है.
गर्भगृह में अर्चकों के अतिरिक्त किसी का प्रवेश नहीं होतामहाशिवरात्रि के दिन भोर में मंदिर खुलने से लेकर शाम छह बजे तक सभी को गर्भगृह में प्रवेश और स्पर्श की अनुमति होती है. शाम छह बजे शंख बजने के बाद महाशिवरात्रि का अनुष्ठान आरंभ हो जाता है. उसके बाद अगली सुबह छह बजे तक गर्भगृह में अर्चकों के अतिरिक्त किसी का प्रवेश नहीं होता. काशी में यह एकमात्र ऐसा शिवमंदिर है जहां महाशिवरात्रि के अनुष्ठान में दोनों पक्षों को समान रूप से महत्व दिया जाता है.
काशी के केदार खंड में स्थित है बाबा तिलभांडेश्वर का मंदिर. किवदंतियों के मुताबिक भगवान शिव का ये लिंग हर रोज एक तिल के आकार में बढ़ता है जिसकी तस्दीक़ शिव पुराण नामक धर्म ग्रन्थ भी करता है. वर्त्तमान में इस लिंग का आधार कहां है, ये तो पता नहीं लग पाया है लेकिन ज़मीन से सौ मीटर ऊँचाई पर भी यह विशाल शिवलिंग अपनी कहानी खुद हीं बयां कर रहा है. महाशिवरात्रि में इस जागृत शिवलिंग की आराधना का विशेष महत्व है. बाबा तिलभांडेश्वर महादेव के ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कब हुई, इस बारे में कोई निश्चित तिथि या काल नहीं है.
बाबा का ज्योतिर्लिंग प्रतिदिन तिल-तिल बढ़ता जा रहाबाबा का बखान काशी खंड, शिवपुराण के कोटिरुद्र एवं वेदों में है. प्रचलित मान्यता के अनुसार एक ऋषि-मुनि इस स्थल पर तपस्या कर रहे थे. ऋषिमुनि ने एक मिट्टी के भांड में तिल भरकर पास में रखते थे. किवदंती है कि उसी जगह शनि महाराज और गणेश जी के बीच में किसी बात को लेकर र्चचा हो रही थी और इस दौरान गणेश जी के पैर से तिल पूरित मिट्टी का भाण्ड उलट गया और वही एक ज्योतिर्लिंग स्वरूप हो गया. बाबा का ज्योतिर्लिंग प्रतिदिन तिल-तिल बढ़ता जा रहा है.
40 दिन तक लगातार एक निश्चित समय पर नहीं होता दर्शन?कहा जाता है कि उस समय के महात्मा अचरज में पड़ गये कि बाबा अगर रोज इसी तरह एक तिल बढ़ते रहे तो भविष्य में परेशानी होगी. यह सोचकर महात्मा ने बाबा की स्तुति की, जिस पर बाबा प्रसन्न होकर उक्त महात्मा को स्वप्न में मिले और कहा कि वैसा ही होगा जैसा भक्तगण चाहते हैं. तब से लेकर वर्तमान में एक बार मकर संक्रांति के दिन बाबा एक तिल बढ़ते हैं और इसका प्रत्यक्ष स्वरूप विद्यमान है. वेद सम्मत है कि बाबा के ज्योतिìलग के दर्शन करने का फल गंगा सागार में स्नान करने के समान है. इसके अलावा धन और पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. यह भी कहा जाता है कि 40 दिन तक लगातार एक निश्चित समय पर बाबा का दर्शन कोई नहीं कर पाता है.
रिपोर्ट : विपिन सिंह