Mulayam के जीवन पर बनी फिल्म में नहीं पत्नी साधना का जिक्र, ऐसा क्या हुआ जो नाम पड़ गया ‘मुल्ला मुलायम’

मुलायम सिंह यादव की जिंदगी पर बनी फिल्म (मैं मुलायम सिंह यादव) में उनकी दूसरी पत्नी के नाम का जिक्र नहीं है. मूवी में अमित सेठी ने नेताजी का लीड रोल निभाया था. मिथुन चक्रवर्ती के बेटे म‍िमोह ने मूवी में श‍िवपाल सिंह यादव का किरदार निभाया था.

By Sohit Kumar | October 11, 2022 12:18 PM

Bareilly News: समाजवादी पार्टी (सपा) के संस्थापक पूर्व मुख्यमंत्री एवं रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव की जिंदगी काफी संघर्षशील रही है. उनकी जिंदगी के अनछुए पहलुओं को हर कोई जानना चाहता है. उनकी दो पत्नियां थीं. पहली पत्नी मालती देवी की 2003 में मौत के बाद दूसरी शादी साधना गुप्ता से की थी. हालांकि, साधना गुप्ता का जिक्र मुलायम सिंह यादव की जिंदगी पर बनी फिल्म (मूवी) में नहीं है.

डायरेक्टर शुभेंदु राज घोष ने “मैं मुलायम सिंह यादव” मूवी बनाई थी. यह फिल्म 29 जनवरी 2021 को रिलीज की गई. हालांकि “मैं मुलायम सिंह यादव” मूवी को पर्दे पर कोई रिस्पांस नहीं मिला. मगर,यह चर्चित काफी रही. इस मूवी में उनकी दूसरी पत्नी साधना गुप्ता उनके बेटे प्रतीक का भी कोई रोल (जिक्र) नहीं है. मूवी में अमित सेठी ने नेताजी का लीड रोल निभाया था. मिथुन चक्रवर्ती के बेटे म‍िमोह ने मूवी में श‍िवपाल सिंह यादव का किरदार निभाया था.

फिल्म में अखाड़े से लेकर यूपी की सियासत तक का सफर

हालांकि, शुवेंदु घोष ने फिल्‍म को रिलीज करने से पहले विवादों से बचने के लिए सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अख‍िलेश यादव से विशेष अनुमति ली. फिल्‍म में सना अमीन शेख ने मुलायम सिंह यादव की पहली पत्‍नी मालती देवी का किरदार निभाया है. इसके अलवा प्रकाश बलबेटो ने राम मनोहर लोहिया और गोविंद नामदेव ने चौधरी चरण सिंह का किरदार निभाया है. इसमें जरीना वहाब ने मुलायम सिंह यादव की मां और अनुपम श्याम ने उनके पिता का रोल निभाया. मूवी में सपा संस्थापक के अखाड़े से लेकर यूपी के सीएम की कुर्सी संभालने तक की कहानी बताई गई थी. उनकी निजी जिंदगी को भी छुआ गया. मगर, कुछ खुलकर नहीं दिखाया गया था.

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जानें क्यों पड़ा ‘मुल्ला मुलायम’ नाम

भाजपा देश भर में राममंदिर को लेकर आंदोलन कर रही थी. 25 सितंबर, 1990 को भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने रथयात्रा शुरू की. पांच हफ्ते बाद आडवाणी की रथयात्रा की योजना अयोध्या पहुंचने की थी. उनका रथ आठ राज्यों से होकर करीब 6000 मील की दूरी तय करता. विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) से जुड़े लोग शहर-शहर स्वागत में जुट रहे थे.

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सरयू नदी के पुल पर देखी गई भीड़

इस बीच 30 अक्टूबर की सुबह कार सेवकों की भारी भीड़ सरयू नदी के पुल पर देखी गई, जो अयोध्या के पुराने शहर को नए शहर से अलग करती थी. कारसेवकों ने पुलिस का घेरा तोड़ डाला और मस्जिद की ओर तेजी से बढ़ चले. वहां उनका सामना बीएसएफ के दस्तों से हुआ. कुछ कारसेवक उनको भी चकमा देने में कामयाब हो गए और बाबरी मस्जिद तक पहुंच गए.

बीजेपी के रखे नाम से मुलायम सिंह यादव को मिला फायदा

उस भीड़ के हमले को रोकने के लिए सुरक्षाबलों ने पहले आंसू गैस और फिर बाद में गोलियों का इस्तेमाल किया. कारसेवकों को तंग गलियों और मंदिर के परिसरों में खदेड़ा गया. उनमें से कुछ ने लाठियों और पत्थरों से मुकाबला किया. सुरक्षाबलों और कारसेवकों के बीच पूरे तीन दिनों तक लड़ाई चलती रही. इस घटना के बाद मुलायम सिंह यादव को भाजपा ने मुल्ला मुलायम का नाम दे दिया. मगर, उनको मुल्ला मुलायम सिंह यादव से काफी फायदा मिला. वह यूपी की 20 फीसद मुस्लिम आबादी के एकलौते नेता बन गए. यादव के साथ मुस्लिम मतदाता उनसे जुड़ गए.

मुलायम बोले- देश की एकता के लिए पुलिस ने चलाईं गोलियां

मुलायम सिंह यादव ने 2013 में एक टीवी चैनल को एक इंटरव्यू दिया था. उसमें मुलायम सिंह ने कहा था कि देश की एकता के लिए उनकी सरकार की पुलिस को गोली चलानी पड़ी थीं. तब मुलायम सिंह ने कहा था, ‘मैंने साफ कहा था कि ये मंदिर-मस्जिद का सवाल नहीं है, देश की एकता का सवाल है. देश की एकता के लिए हमारी सरकार की पुलिस को गोली चलानी पड़ी. मुझे अफसोस है कि लोगों की जानें गईं. न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, 1990 की घटना को लेकर साल 2017 में मुलायम ने अपने 79वें जन्मदिन के मौके पर कहा, ”देश की एकता के लिए और भी मारना पड़ता तो सुरक्षा बल मारते.”

रिपोर्ट: मुहम्मद साजिद, बरेली

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