UP: रामचरितमानस पर टिप्पणी को मायावती ने बताया- दुःखद और दुर्भाग्यपूर्ण, सपा और BJP पर लगाया मिलीभगत का आरोप
मायावती ने रामचरितमानस की आड़ में सपा के राजनीतिक रंग-रूप को दुःखद व दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. 'संकीर्ण राजनीतिक व चुनावी स्वार्थ हेतु नए-नए विवाद खड़ा करके जातीय नफरत फैलाना आदि भाजपा की राजनीतिक पहचान सर्वविदित है, किन्तु रामचरितमानस की आड़ में सपा का वही राजनीतिक रंग-रूप दुःखद व दुर्भाग्यपूर्ण.
Lucknow News: उत्तर प्रदेश में रामचरितमानस पर सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य की ओर से लगातार विवादित बयान दिए जा रहे हैं, जिसको लेकर समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव बीजेपी के बाद अब बसपा के निशाने पर आ गए हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस को बकवास ग्रंथ बताया था, इसके बाद मौर्य के समर्थन में उतरी ओबीसी महासभा ने लखनऊ में रामचरितमानस की प्रतियां तक जला डालीं. ऐसे में अब बीएसपी चीफ मायावती ने रामचरितमानस की आड़ में सपा के राजनीतिक रंग-रूप को दुःखद व दुर्भाग्यपूर्ण बताया है.
‘बीजेपी के बाद सपा का राजनीतिक रंग-रूप दुःखद व दुर्भाग्यपूर्ण’
उत्तर प्रदेश की पूर्व सीएम ने ट्वीट कर लिखा, ‘संकीर्ण राजनीतिक व चुनावी स्वार्थ हेतु नए-नए विवाद खड़ा करके जातीय व धार्मिक द्वेष, उन्माद-उत्तेजना व नफरत फैलाना, बायकाट कल्चर, धर्मान्तरण को लेकर उग्रता आदि भाजपा की राजनीतिक पहचान सर्वविदित है, किन्तु रामचरितमानस की आड़ में सपा का वही राजनीतिक रंग-रूप दुःखद व दुर्भाग्यपूर्ण.
‘रामचरितमानस पर टिप्पणी दोनों पार्टियों की मिलीभगत’
उन्होंने आगे लिखा, रामचरितमानस के विरुद्ध सपा नेता की टिप्पणी पर उठे विवाद व फिर उसे लेकर भाजपा की प्रतिक्रियाओं के बावजूद सपा नेतृत्व की चुप्पी से स्पष्ट है कि इसमें दोनों पार्टियों की मिलीभगत है ताकि आगामी चुनावों को जनता के ज्वलन्त मुद्दों के बजाए हिन्दू-मुस्लिम उन्माद पर पोलाराइज किया जा सके।
घृणित राजनीति का शिकार होने से बचना जरूरी- मायावती
उन्होंने कहा कि, ‘उत्तर प्रदेश में विधानसभा के हुए पिछले आमचुनाव को भी सपा-भाजपा ने षडयंत्र के तहत मिलीभगत करके धार्मिक उन्माद के जरिए घोर साम्प्रदायिक बनाकर एक-दूसरे के पूरक के रूप में काम किया, जिससे ही भाजपा दोबारा से यहां सत्ता में आ गई. ऐसी घृणित राजनीति का शिकार होने से बचना जरूरी.
इससे पहले मायावती ने महंगाई, गरीबी और बेरोजगारी के मुद्दे पर केंद्र की बीजेपी सरकार पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि, कुछ मुट्ठीभर लोगों को छोड़कर देश की समस्त जनता जबरदस्त महंगाई, गरीबी व बेरोजगारी आदि के तनावपूर्ण जीवन से त्रस्त है, जिनके निदान पर ध्यान केन्द्रित करने के बजाय धर्मान्तरण, नामान्तरण, बायकाट व नफरती भाषणों आदि के जरिए लोगों का ध्यान बांटने का प्रयास घोर अनुचित व अति-दुःखद है. ताज़ा घटनाक्रम में राष्ट्रपति भवन के मशहूर मुग़ल गार्डेन का नाम बदलने से क्या देश व यहां के करोड़ों लोगों के दिन-प्रतिदिन की ज्वलन्त समस्यायें दूर हो जाएंगी. वरना फिर आम जनता इसे भी सरकार द्वारा अपनी कमियों व विफलताओं पर पर्दा डालने का प्रयास ही मानेगी.
रामचरितमानस पर विवादित टिप्पणी को बसपा प्रदेश अध्यक्ष का बयान
वहीं दूसरी ओर बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल देर शाम को आगरा में कार्यकर्ताओं के साथ सेक्टर बैठक करने के लिए पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने पत्रकारों से वार्ता की और स्वामी प्रसाद मौर्य के रामचरितमानस को लेकर दिए गए बयान पर उन्हें सलाह देते हुए भी नजर आए. उन्होंने कहा कि किसी भी राजनेता को धर्म के बारे में टिप्पणी नहीं करनी चाहिए. वहीं उन्होंने कहा कि बसपा 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर तैयारी में पुरजोर तरीके से जुटी हुई है. और बताया कि बहन मायावती का काम करने का तरीका सपा और भाजपा से अलग है.
सबसे पहले बिहार के शिक्षा मंत्री ने दिया था विवादित बयान
दरअसल, श्रीरामचरितमानस पर सबसे पहले विवादित बयान बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर प्रसाद ने दिया था. इसके बाद उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री और सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी श्रीरामचरितमानस को लेकर बड़ा विवादित बयान दिया है. ऐसे में दोनों नेता साधु-संतों के निशाने पर आ गए हैं. चंद्रशेखर और स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ अयोध्या कोतवाली में तहरीर देकर कार्रवाई की मांग की गई है. प्रयागराज में अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने भी दोनों नेताओं के विवादित बयान की कड़ी निंदा की है.
विवादित बयान देने के मामले में हद तो तब हो गई जब स्वामी प्रसाद मौर्य ने मानस को प्रतिबंधित करने की मांग कर डाली. उन्होंने कहा कि, रामचरितमानस में कुछ जातियों को दर्शाते हुए जिस पर अपमानजनक टिप्पणियां की हैं, हम उसका विरोध करते हैं. इसमें वह शुद्रों को अधम जाति का होने का सर्टिफिकेट दे रहे हैं. इसका संज्ञान लेते हुए इसमें जो आपत्तिजनक अंश है, उसे बाहर करना चाहिए या इस पूरी पुस्तक को ही प्रतिबंधित कर देना चाहिए. उन्होंने यहां तक कहा कि कई करोड़ लोग रामचरित मानस को नहीं पढ़ते, सब बकवास है. यह तुलसीदास ने अपनी खुशी के लिए लिखा है.