यूपी में जातिगत समीकरण को दुरुस्त करेंगे मोदी के नए सिपहसालार, कैबिनेट में ओबीसी और दलितों को तवज्जो
केंद्रीय मंत्रिमंडल में बुधवार को हुए विस्तार में उत्तर प्रदेश के जिन सात मंत्रियों को शामिल किया गया है, उनके चुने जाने में जातिगत समीकरण को साधते हुए 2022 में होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव को भी ध्यान में रखा गया है.
नई दिल्ली/लखनऊ : केंद्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार हो गया. बुधवार को मोदी सरकार के नए मंत्रिमंडल में 43 सदस्यों ने शपथ ग्रहण कर लिया है. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के मंत्रिमंडल की पहली फेरबदल के साथ ही कयास यह लगाए जाने लगे हैं कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले वहां के जातिगत समीकरण को दुरुस्त करने के लिए नए सिपहसालारों की तैनाती कर दी गई है. यानी कुल मिलाकर यह कि मोदी सरकार ने अभी ही से यूपी की जातियों को साधने के लिए वैसे तेज-तर्रार और बाहुबली नेताओं को अहम जिम्मेदारी दी है, जो 2022 में किले में पताका फहराने में पूरी ताकत भिड़ा दें.
क्या है रणनीति?
केंद्रीय मंत्रिमंडल में बुधवार को हुए विस्तार में उत्तर प्रदेश के जिन सात मंत्रियों को शामिल किया गया है, उनके चुने जाने में जातिगत समीकरण को साधते हुए 2022 में होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव को भी ध्यान में रखा गया है. राज्य से जो नये केंद्रीय मंत्री बनाये गये हैं, उनमें से तीन नेताओं का संबंध पिछड़े वर्ग, तीन का दलित समूह है, जबकि एक ब्राह्मण समुदाय से हैं. यह बात दीगर है कि इन सात चेहरों में से केवल एक सहयोगी दल का है और बाकी के भाजपा के ही सांसद हैं.
कौन किस जाति से?
मोदी मंत्रिमंडल में शामिल किए गए मंत्रियों में महाराजगंज संसदीय क्षेत्र से भाजपा से छठी बार चुने गए पंकज चौधरी और मिर्जापुर से भाजपा की सहयोगी अपना दल (एस) से दूसरी बाद की सांसद अनुप्रिया पटेल पिछड़े वर्ग के कुर्मी समाज से हैं, जबकि बदायूं निवासी राज्यसभा सदस्य बीएल वर्मा पिछड़े वर्ग के लोधी राजपूत हैं.
केवल एकमात्र ब्राह्मण समाज से
अनुसूचित जाति वर्ग में आगरा से भाजपा सांसद सत्यपाल सिंह बघेल धनगर, जालौन के सांसद भानु प्रताप वर्मा-कोरी और लखनऊ के मोहनलालगंज क्षेत्र के सांसद कौशल किशोर पासी समाज से आते हैं. इनके अलावा, लखीमपुर खीरी से दूसरी बार के सांसद अजय कुमार केवल एकमात्र सांसद ब्राह्मण समाज से हैं.
कुर्मियों में कमल खिलाएंगे पंकज
यूपी कोटे से शामिल किये गये मंत्रियों में सिर्फ अनुप्रिया पटेल सहयोगी अपना दल (एस) की हैं, जबकि बाकी सभी भारतीय जनता पार्टी के सांसद हैं. पंकज चौधरी को केंद्र में संतोष गंगवार के इस्तीफा देने के बाद मौका मिला है, क्योंकि गंगवार भी कुर्मी समाज के हैं. उत्तर प्रदेश में कुर्मी बिरादरी की मजबूत भागीदारी है. महाराजगंज से छह बार के सांसद पंकज चौधरी जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर क्षेत्र से हैं और गोरखपुर के डिप्टी मेयर भी रह चुके हैं. वहीं सहयोगी अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काशी क्षेत्र से जुड़ी हैं.
कल्याण सिंह के विकल्प के तौर पर बीएल वर्मा
भाजपा ने कल्याण सिंह के विकल्प के तौर पर बीएल वर्मा को हमेशा बढ़ावा दिया और मंत्रिमंडल में भी उन्हें इसी इरादे से मौका दिया गया है. सांसद सत्यपाल सिंह बघेल इस बार अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित आगरा संसदीय क्षेत्र से भाजपा के सांसद चुने गए. इसके पहले वह 2017 में फिरोजाबाद की टूंडला सीट से विधानसभा के लिए चुने गए और योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली राज्य सरकार में मंत्री भी रहे. बघेल इससे पहले सपा-बसपा में भी रह चुके हैं.
कौशल किशोर को शामिल कर पासी समुदाय को साधा
अपने राजनीतिक जीवन में वामपंथी पृष्ठभूमि से राजनीति की शुरुआत करने वाले पासी समाज के कौशल किशोर लखनऊ के मोहनलालगंज क्षेत्र से भाजपा से दूसरी बार सांसद हैं और पार्टी ने उन्हें दूसरी बार राज्य में अनुसूचित मोर्चा का अध्यक्ष भी बनाया है. राज्य में गैर-जाटव दलितों में पासी समाज की अच्छी तादाद है.
गैर-जाटवों को महत्व
इसी तरह, जालौन के भाजपा सांसद भानु प्रताप वर्मा अनुसूचित वर्ग के कोरी समाज से आते हैं. भानु प्रताप वर्मा कानपुर-बुंदेलखंड के प्रतिनिधित्व के तौर पर भी एक प्रमुख चेहरा हैं. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, दलित चेहरों में पासी, कोरी और धनगर को मौका देकर भाजपा ने गैर-जाटवों को महत्व देने का संदेश दिया है.