बरेली में ‘या हुसैन’ की सदाओं से गूंजा शहर, उलमाओं ने तकरीर कर ईमाम हसन-हुसैन की शहादत को किया याद
ताजियों के जुलूस लेकर शहर की बाकरगंज स्थित समेत देहात की कर्बला पहुंचे. अकीदतमंदों ने जगह- जगह खाने के लंगर और पानी शर्बत की सवील लगाई. हुसैनी कमेटियों ने भी लंगर के इंतजाम किए थे. दरगाह आला हजरत पर मरकजी दारुल इफ्ता में मुफ्ती सलीम नूरी ने तकरीर की.
Bareilly News: मुहर्रम के आशूरा (10 तारीख) को शिया और सुन्नी मुसलमानों ने हजरत इमाम हसन-हुसैन को शहादत पर याद किया. शिया मुसलमान शहर के अलग-अलग इलाकों से जुलूस के रूप में स्वालेनगर कर्बला तक पहुंचे. उन्होंने या हुसैन हम ना हुए के साथ जगीरो का मातम किया.उनके शरीर से खून बह रहा था. लब्बैक या हुसैन, लब्बैक या हुसैन की सदाएं बुलंद की.
फौज ने यजीदी जंग से लोहा लिया
इसके अलावा शहर से लेकर देहात तक मुसलमानों ने तख्त और ताजियों के जुलूस निकाले. ताजियों के जुलूस लेकर शहर की बाकरगंज स्थित समेत देहात की कर्बला पहुंचे. अकीदतमंदों ने जगह- जगह खाने के लंगर और पानी शर्बत की सवील लगाई. हुसैनी कमेटियों ने भी लंगर के इंतजाम किए थे. दरगाह आला हजरत पर मरकजी दारुल इफ्ता में मुफ्ती सलीम नूरी ने तकरीर की. उन्होंने कहा नवासा ए रसूल हजरत इमाम हुसैन रजि.अल्लाह ताआला अन्हो की फौज ने यजीदी जंग से लोहा लिया था.
बड़ी संख्या में बच्चे थे मौजूद
उन्होंने कहा कि यह जंग इतिहास की अनोखी जंग है. इसने इस्लामी जगत को झकझोर कर रख दिया. हजरत इमाम हसन हुसैन ने कर्बला में अपनी और अपने परिवार की शहादत व कुर्बानी देकर जुल्म, अन्याय, धार्मिक, बुराई के खिलाफ आवाज बुलंद की. मगर, हम सच्चे हुसैनी होते, तो इमाम हुसैन के बताए रास्ते पर चलते बुराइयों से लड़ते. मगर इस से भटक गए हैं. सामाजिक बुराई खत्म करने शराब, जुए, जीनाखोरी, चोरी आदि जैसी बीमारियों से बचाने के लिए लोगों को जागरूक करते. इस दौरान बड़ी संख्या में बच्चे मौजूद थे
रिपोर्ट : मुहम्मद साजिद