UP News: मुख्तार अंसारी को SC से मिली राहत, जेलर को धमकाने पर मिली थी 7 साल की सजा, लगाई अंतरिम रोक

UP News: उत्तर प्रदेश के माफिया डॉन पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी को आज सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है. साल 2003 में एक जेलर को जान से मारने की धमकी देने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुख्तार अंसारी को सात साल की सजा सुनाई थी, जिसपर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है.

By Prabhat Khabar News Desk | January 2, 2023 2:44 PM

UP News: उत्तर प्रदेश के माफिया डॉन पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी को आज सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है. साल 2003 में एक जेलर को जान से मारने की धमकी देने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुख्तार अंसारी को सात साल की सजा सुनाई थी, जिसपर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है.

बता दें हाईकोर्ट के आदेश से पहले निचली अदालत ने मुख्तार को इस मामले में बरी कर दिया था. लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 21 सितंबर 2022 को निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया था. और सात साल की सजा सुनाई थी. इसके साथ ही 37 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया था.

क्या है पूरा मामला
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दरअसल पूरा मामला साल 2003 का है. तत्कालीन जेलर एसके अवस्थी ने लखनऊ के थाना आलमबाग में मुख्तार अंसारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था. उन्होंने अपनी एफआईआर में लिखवाया था जेल में मुख्तार से मिलने आए लोगों की तलाशी लेने का आदेश देने पर मुझे जान से मारने की धमकी दी गई थी. इतना ही नहीं मेरे साथ गाली गलौज करते हुए मुख्तार अंसारी ने मेरे पर पिस्तौल भी तान दी थी.

पिछले महीने एक अन्य मामले में मिली 10 साल की सजा

गौरतलब है कि पिछले महीने मुख्तार अंसारी और उसके साथी भीम सिंह को गाजीपुर जनपद में 1996 के चर्चित मामले में गैंगस्टर कोर्ट ने दोषी करार दिया था. कोर्ट ने मामले में मुख्तार और भीम सिंह को 10 साल की सजा सुनाई थी. इसके साथ ही 5 लाख का जुर्माना लगाया गया था. एमपी-एमएलए कोर्ट के जज दुर्गेश ने ये सजा सुनाई थी.

मुख्तार पर दर्ज गैंगस्टर मामले में 25 नवंबर को फैसला सुनाया जाना था. लेकिन, संबंधित कोर्ट के जज के तबादले के कारण फैसले के लिए 15 दिसंबर की तारीख नियत की गई थी. फैसले को लेकर कोर्ट परिसर में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे. गैंगस्टर एक्ट का यह मामला मुख्तार अंसारी और उसके सहयोगी भीम सिंह पर गाजीपुर की सदर कोतवाली में 1996 में दर्ज हुआ था. अब 26 साल बाद अदालत ने फैसला सुनाया था.

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