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Mulayam Singh: शिकोहाबाद के इस गांव में पले बढ़े मुलायम सिंह, दोस्तों संग खेलते और खाते थे मक्के की रोटी

Mulayam Singh Yadav Death: शिकोहाबाद के जिस इटौली गांव में नेताजी पैदा हुए इस गांव में उनकी तबीयत में सुधार के लिए कई दिनों से प्रार्थना चल रही थीं. गांव वालों को जैसे ही नेताजी के निधन की खबर मिली वह सभी शोक में डूब गए.

By Sohit Kumar | October 11, 2022 3:05 PM

Agra News: समाजवादी पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के तीन बार के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में 82 साल की उम्र में निधन हो गया. निधन की खबर मिलते ही उनके चाहने वालों में शोक की लहर दौड़ पड़ी. वहीं, शिकोहाबाद के जिस इटौली गांव में नेताजी पैदा हुए वहां उनकी तबीयत के सुधार के लिए कई दिनों से प्रार्थना चल रही थी. लोगों को जैसे ही नेताजी के निधन की खबर मिली वह सभी शोक में डूब गए.

इटौली गांव में बड़े हुए मुलायम सिंह यादव

शिकोहाबाद के इटौली गांव में ही नेताजी बड़े हुए और यहीं पढ़ाई की. नेताजी यहीं अपने परिवार के साथ रहा करते थे, बाद में वे सैफई चल गए. इटौली के रहने वाले वीर राज सिंह यादव ने बताया के नेताजी का पूरा परिवार इटावा के सैफई से पहले फिरोजाबाद के इटौली गांव में रहता था.

सैफई में नहीं लगता था मुलायम सिंह यादव का मन

नेताजी मुलायम सिंह के बाबा मेवाराम सैफई जाकर रहने लगे थे. जिसके बाद मुलायम सिंह यादव के पिता सुधर सिंह और बाकी चाचाओं का जन्म सैफई में हुआ, लेकिन मुलायम सिंह का सैफई में मन नहीं लगता था. ऐसे में वह अपने पैतृक गांव इटौली में आ जाया करते थे और यहीं पर रहते थे. नेताजी ने इटौली गांव में रहकर आदर्श कृष्ण कॉलेज से पढ़ाई भी की.

आदर्श कृष्ण कॉलेज में पैदल जाते थे पढ़ने

इटौली गांव के नेताजी के पुराने घर में रहने वाले और उनके खानदानी कुलदीप यादव का कहना है कि उनके दादा गिरवर सिंह ने उनको बताया था कि नेताजी इटौली गांव से शिकोहाबाद में स्थित आदर्श कृष्ण कॉलेज में पैदल पढ़ाई करने जाते थे. संग में उनके मित्रों की टोली भी रहती थी. पढ़ाई के साथ-साथ नेताजी पशु भी चराने के लिए खेतों में जाते थे.

फोन कर पूछ लिया करते थे हालचाल

उन्होंने बताया कि 2012 में नेता जी ने अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया जिसके बाद नेताजी समय निकालकर गांव पहुंचे. जहां पर उन्होंने मेरे बाबा गिरवर सिंह यादव से उनका हालचाल जाना. इससे पहले वह अधिकतर हमारे पिताजी और ताऊजी से फोन पर बाबा का हाल चाल पूछ लिया करते थे. कुछ समय बाद हमारे बाबा का निधन हो गया उसके बाद नेता जी गांव नहीं आए.

कुलदीप के पिताजी वीरराज सिंह ने बताया कि जब हम छोटे थे तब नेताजी खेत से चरी ढोकर घर लाया करते थे. और घर पर आकर मक्के की रोटी ही खाया करते थे. उस समय नेताजी नेतागिरी से दूर थे और स्कूल के मास्टर थे रोजाना साइकिल से वह अपने स्कूल जाया करते थे. जिसके बाद उन्होंने फिर राजनीति में कदम रखा. आज उनके निधन से जहां एक तरफ पूरा देश और उनके समर्थक दुखी हैं. वहीं हमारे गांव में भी शोक की लहर दौड़ पड़ी है. लंबे समय से हम उनकी यादों को अपने पास संजोए हुए रखे हैं. नेताजी का ऐसे जाना काफी दुखदाई है.

रिपोर्ट- राघवेन्द्र गहलोत, आगरा

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