Nag Panchami 2022: काशी के जैतपुरा के नागकूप पर उमड़े श्रद्धालु, जानें शेषनाग के अवतार से जुड़ी मान्यता

जैतपुरा स्थित नागकूप महर्षि पतंजलि की तपोस्थली है. नाग पंचमी पर हर साल उनकी जयंती श्रद्धाभाव से मनाई जाती है. कहा जाता है कि ‘योगसूत्र’ के रचनाकार महर्षि पतंजलि ने कभी जैतपुरा मोहल्ले में नागकूप पर श्रावण कृष्ण पंचमी को ही अपने गुरु महर्षि पाणिनी के ‘अष्टाध्यायी’ ग्रंथ पर महाभाष्य पूरा किया था.

By Prabhat Khabar News Desk | August 2, 2022 1:58 PM
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Nag Panchami 2022: काशी की गलियों में नागपंचमी का उल्लास मंगलवार सुबह से ही नजर आने लगा. जैतपुरा स्थित नागकूप पर मेला जैसा नजारा रहा. मंगला आरती के बाद से दर्शन-पूजन का सिलसिला शुरू हो गया. अनुष्ठान पूजन के साथ ही लोगों ने नाग देवता से परिवार की कुशलता की कामना की. जैतपुरा स्थित नागकूप महर्षि पतंजलि की तपोस्थली है. नाग पंचमी पर हर साल उनकी जयंती श्रद्धाभाव से मनाई जाती है. कहा जाता है कि ‘योगसूत्र’ के रचनाकार महर्षि पतंजलि ने कभी जैतपुरा मोहल्ले में नागकूप पर श्रावण कृष्ण पंचमी को ही अपने गुरु महर्षि पाणिनी के ‘अष्टाध्यायी’ ग्रंथ पर महाभाष्य पूरा किया था. तभी से उस स्थान पर मेला लगता आ रहा है.

असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं…

भगवान शिव के गले के आभूषण यानि नाग देवता श्रावन शुक्ल के पंचमी तिथि को नाग पंचमी का पर्व है. मान्यता है की वेदों के प्रचलन के साथ ही नागों की पूजा की परम्परा चली आ रही है. महर्षि पतंजलि का योग पीठ जिसे नाग कुआ भी कहा जाता है जो वाराणसी में स्थित है. जहां महर्षि पाताल लोक में जाकर साधना किया करते थे. महर्षि को भगवान शेषनाग का अवतार भी माना जाता है! वाराणसी में एक नागकूप है, जिसकी मान्यता है की इस नागकूप का पानी पिने से ज्ञान की वृद्धि होती है और असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं. नाग पंचमी के मौके पर श्रद्धा से सराबोर होकर भक्त इस कुंड के दर्शन के लिए आते हैं.

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शास्त्रों में 12 प्रकार के सर्पों के पूजन का वर्णन

नाग पंचमी हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है. हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण माह की शुक्ल पक्ष के पंचमी को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन नाग देवता या सर्प की पूजा की जाती है. उन्हें दूध पिलाया जाता है. वैसे नागों की पूजा की ये परम्परा सनातन काल से चली आ रही है. भारत देश कृषिप्रधान देश था और है. सांप खेतों का रक्षण करता है, इसलिए उसे क्षेत्रपाल कहते हैं. जीव-जंतु, चूहे आदि जो फसल को नुकसान करने वाले तत्व हैं, उनका नाश करके सांप हमारे खेतों को हराभरा रखता है. सांप हमें कई मूक संदेश भी देता है. सांप के गुण देखने की हमारे पास गुणग्राही और शुभग्राही दृष्टि होनी चाहिए. सांप सामान्यतया किसी को अकारण नहीं काटता. अपने इन्हीं गुणों के कारण सर्प एक जीव नहीं भगवान के सामान पूजित है. भगवान विष्णु जहां शेषनाग पर शयन करते हैं. वहीं, नाग भोले भंडारी के गले में लिपट कर शोभा बढ़ाता है. शास्त्रों में 12 प्रकार के सर्पों के पूजन का वर्णन मिलता है.

स्‍थान नागकूप में होने की अनोखी मान्‍यता

स्थानीय निवासी अल्पना जो कि नागकुप के दर्शनों के लिए आई हैं. उन्होंने यहां के महत्व को लेकर बताया कि काशी में नाग पंचमी पर नागपूजन की परंपराएं आज भी जीवित हैं. नागपूजन के साथ ही नाग से वर्षभर रक्षा और समृद्धि की कामना का यह पर्व मनाया जाता है. गौ दूध के साथ ही लावा का मेल शिवलिंग पर अर्पित कर समृद्धि की कामना और मान्‍यता का यह पर्व सावन मास में शिव को समर्पण के साथ ही मान्‍यताओं को पूरा करने वाला माना गया है. वर्ष भर में यह त्‍योहार एक बार आता है तो कामनाओं से पूरा शहर बाबा के दर्शन पूजन को उमड़ पड़ता है. जिनपर महंर्षि पतंजलि की कृपा होती है उनको कोई दुख नहीं होता. दरअसल पतंजलि शेषनाग के अवतार माने जाते हैं, जिनका स्‍थान नागकूप में होने की अनोखी मान्‍यता होने की वजह से जैतपुरा के नागकूप में प्रतिवर्ष लोग शीश झुकाने और उनको नमन करने आते हैं. नागपंचमी पर्व पर आस्‍था का रेला यहां उमड़ता है. स्‍नान ध्‍यान और जल आचमन करने के लिए आने वाले समृद्धि की यहां पर कामना करना नहीं भूलते.

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मुख्य द्वार के दोनों ओर सर्प की आकृति

नागकुप के पुजारी तुलसी पाण्डेय बताते हैं कि भगवान शंकर को अति प्रिय नाग देव की पूजा पंचमी के दिन कर के लोग अपने कई तरीके की दोषों से मुक्ति पाते हैं. कई जन्मों से लगे काल सर्प योग से भी मुक्ति पाया जा सकता है. इस दिन नाग की पूजा करके वाराणसी के इस कूप में हजारों लोग दोषों की मुक्ति की कामना से जुटते हैं. नागपंचमी के पूजन का विधान है कि खील यानि धान का लावा नागदेव को अति प्रिय है. घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर सर्प की आकृति उकेरनी चाहिए और उसकी पूजा करनी चाहिए. ये आकृति गोबर पानी और दूध के मिश्रण से बनाया जाता है. नाग पंचमी के दिन पूजा करने से नाग वध का पाप भी कट जाता है. सर्प योग के दोष से विविध प्रकार की बीमारियां हड्डियों का क्षरण भी होता है.

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यहां के स्थानीय निवासियों के अनुसार, काशी में इस दिन सर्पों की आराधना के अलावा नाग कूप के दर्शन और इसके ज़ल के ग्रहण करने की भी परम्परा है. मान्यता है की महर्षि पतंजलि इस कूप के अंदर पाताल साधना किया करते थे और उनकी शक्तियां आज भी इस कूप में समाहित हैं. इसी वज़ह से यहां लोगों के दुःख दर्द दूर हो जाते हैं. महर्षि पतंजलि शेषनाग के अवतार थे. इस नाग कूप का जल आज के दिन लोग यहां से ले जाकर अपने घरों, दुकानों में छिड़कते हैं ताकि पूरे सालभर वे समृद्धि हासिल करते रहें. यहां पर दर्शन और पूजन करने से कालसर्प योग से भी मुक्ति मिलती है.

स्पेशल स्टोरी : विपिन सिंह

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