Lucknow News: मशहूर संगीतकार नौशाद अली (Naushad Ali) किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. उन्होंने भले ही सिर्फ 67 फिल्मों में संगीत दिया था, लेकिन अपने संगीत के वजह से वह आज भी याद किए जाते हैं, यह सब उनके संगीत का ही कमाल है. नौशाद का सिनेमाई संगीत में एक अलग ही योगदान है. उन्होंने हिंदी सिनेमा में संगीत को हमेशा के लिए ही बदल दिया था. आज नौशाद अली का जन्मदिन है… इस खास मौके पर हम आपको बताएंगे उनसे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें…
नौशाद अली का जन्म 25 दिसंबर 1919 को यूपी की राजधानी लखनऊ में हुआ था. इनके पिता का नाम मुंशी वाहिद अली था. नौशाद का संगीत सफर चुनौतियों से भरा रहा. उनके घर में मौसिकी को अच्छा नहीं माना जाता था, लेकिन नौशाद अली को बचपन से ही संगीत का शौक था. बचपन के दिनों में नौशाद एक क्लब में जाकर साइलेंट फिल्में देखा करते थे, और नोट्स तैयार किया करते थे. इतना ही नहीं वह एक म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट की दुकान पर इसलिए काम करते थे. ताकि उन्हें हारमोनियम बजाने का मौका मिले.
नौशाद ने 1937 में नवाबों के शहर को अलविदा कह दिया था, लेकिन यह शहर उनकी यादों में हमेशा जिदा रहा. उन्होंने अपनी एक गजल में लखनऊ का जिक्र करते हुए कहा कि, ‘वह गलियां वह मुहल्ले, सब बन गए कहानी, मैं भी था लख़नऊ का, यह बात है पुरानी.’ नौशाद ने महज 17 साल की उम्र में ही मुंबई की ओर रुख किया, और अपनी किस्मत आजमाने के लिए मुंबई पहुंच गए. शुरुआती दिनों में उन्हें बहुत ज्यादा संघर्ष करना पड़ा.
नौशाद के जीवन में एक दिन ऐसा आया, जब उन्हें पहली बार 1940 में आई फिल्म प्रेम नगर के गानों को कंपोज किया था. इन गानों को लोगों ने खूब प्यार दिया, लेकिन उनकी पहचान तब बनी, जब 1944 में ‘रतन’ प्रदर्शित हुई, जिसमें जोहरा बाई अम्बाले वाली, अमीर बाई कर्नाटकी, करन दीवान और श्याम के गाए गीत बहुत लोकप्रिय हुए, और यहीं से शुरू हुआ कामयाबी का ऐसा सफर जो कम लोगों के हिस्से आता है.
उन्होंने छोटे पर्दे के लिए ‘द सोर्ड ऑफ टीपू सुल्तान’ और ‘अकबर द ग्रेट’ जैसे धारावाहिक में भी संगीत दिया. बहरहाल, नौशाद साहब को अपनी आखिरी फिल्म के सुपर फ्लॉप होने का बेहद अफसोस रहा. सौ करोड़ की लागत से बनने वाली अकबर खां की ताजमहल फिल्म रिलीज होते ही औंधे मुंह गिर गई. मुगले आजम को जब रंगीन किया गया तो उन्हें बेहद खुशी हुई.
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नौशाद ने अपने करियर में केवल 67 फिल्मों में संगीत दिया, लेकिन उनका कौशल इस बात की जीती जागती मिसाल है कि आज भी लोग उनके गाने को सुनते हैं. बात करें उनके फिल्मी करियर की तो उन्होंने अंदाज, मदर इंडिया, अनमोल घड़ी, अमर, स्टेशन मास्टर, शारदा कोहिनूर, मुग़ल-ए-आज़म, दुलारी साज,आवाज, राम और श्याम ,गंगा जमुना सहित कई फिल्मों में अपने संगीत से लोगों को झूमने पर मजबूर किया है. 5 मई 2006 को उनका निधन हो गया.