Lucknow: जब-जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस की बात की जाती है तो गुमनामी बाबा का नाम भी जरूर जेहन में आता है. अयोध्या निवासी गुमनामी बाबा की बहुत सी बातें नेताजी से मिलती थीं. इस बात हमेशा ही चर्चा होती थी कि क्या नेताजी सुभाष चंद्र बोस और गुमनामी बाबा एक ही व्यक्ति थे. गुमनामी बाबा की सच्चाई को जानने के लिये एक कमीशन भी बनाया गया था. आइये जानते हैं क्या थी गुमनामी बाबा की सच्चाई…
अयोध्या (तत्कालीन फैजाबाद) के रामभवन में लंबे समय तक रहे गुमनामी बाबा उर्फ भगवान जी ही क्या नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे, यह पता लगाने के लिये 2016 में जस्टिस विष्णु सहाय आयोग का गठन किया गया था. गुमनामी बाबा की मौत 18 सितंबर 1985 को अयोध्या में हुई थी. इसके बाद से उनकी पहचान को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म रहा. उनके सामान, खासतौर एक बक्से को लेकर कुछ अलग तरह की अफवाहों का बाजार लंबे समय तक गर्म रहा.
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बताया जाता है कि जस्टिस विष्णु सहाय कमेटी की रिपोर्ट में गुमनामी बाबा की पहचान को लेकर कुछ खास जानकारी नहीं दी गयी थी. इस कमेटी ने गुमनामी बाबा की जो विशेषताएं बतायी थी, वह काफी हद तक नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में उपलब्ध जानकारियों से मिलती थीं. जैसे गुमनामी बाबा अंग्रेजी, हिंदी व बंगाली जानते थे. उनके निवास से इन भाषाओं की कई किताबें मिली थी.
इसके अलावा उनके बक्से से नेताजी सुभाष चंद्र बोस और उनके विभिन्न आयोजन की फोटो मिली थी. नेताजी के जैसे कई गोल फ्रेम के चश्मे, आजाद हिंद फौज की वर्दी, नेताजी के माता-पिता की फोटो सहित कई दस्तावेज भी मिले थे. इन सामानों से यह अनुमान लगाया जाता है कि गुमनामी बाबा का कुछ संपर्क नेताजी और आजाद हिंद फौज से था.
सन् 2016 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर एक याचिका दाखिल की गयी थी. इस याचिका में गुमनामी बाबा के नेताजी सुभाष चंद्र बोस होने की संभावना व्यक्त की गयी थी. इस याचिका में इस संभावना की जांच कराने की अपील भी की गई थी. इसके बाद हाईकोर्ट ने तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार को आदेश इस मामले की जांच के लिये एक आयोग गठित करने का आदेश दिया था. इस आयोग या कमेटी ने गुमनामी बाबा से जुड़े तथ्यों की तलाश की थी.