Lucknow News: विश्व पर्यावरण दिवस पर आज हर जगह कई कार्यक्रम किए जाएंगे. सभी हरियाली को बढ़ावा देने की बात करेंगे. सभी जल संचयन को लेकर एक, से बढ़कर एक तरकीबें बताएंगे. मगर कुछ घंटों के बाद विशेषज्ञ की बातों को सभी भुला देंगे. समाज में जब तक उन उपायों को नहीं अपनाया जाएगा जो पर्यावरण दिवस पर बताए जाएंगे, तब तक क्लाइमेट चेंज की समस्या से हम जूझते ही रहेंगे. यह कहना है उन विशेषज्ञों का जो पृथ्वी पर आ रहे क्लाइमेट चेंज को लेकर काफी समय से अध्ययन कर रहे हैं.
इस संबंध में लखनऊ यूनिवर्सिटी के जूलॉजी डिपार्टमेंट के हेड डॉ. ध्रुव सेन सिंह बताते हैं कि क्लाइमेट चेंज के सबसे बड़े कारक हमारा समाज ही है. उन्होंने इस संबंध में विस्तार से बताते हुए कहते हैं कि तेजी से हो रहा नगरीकरण एक बहुत बड़ा कारण है, जिसने क्लाइमेट को बुरी तरह से प्रभावित किया है. उन्होंने वनों की कटाई और बेतरतीब तरीके से बसते शहरों को लेकर सवाल उठाते हुए कहा कि पेड़ों की अंधाधुन कटाई के चलते पृथ्वी का पारा बढ़ता जा रहा है. पहले भी गर्मी के मौसम में पारा 42-43 तक चला जाता था. मगर इतनी गर्मी का एहसास नहीं होता था. वहीं, अब हमने तेजी से शहरों को बढ़ाते हुए जिस तरह से पेड़ों को काटा है, उसके चलते गर्मी का प्रकोप बढ़ता जा रहा है.
उन्होंने एक दूसरा कारण बताते हुए कहा कि समाज के लोगों की लाइफस्टाइल अब काफी बदल चुकी है. एयर कंडीशन (एसी) और गाड़ियों की बढ़ती संख्या ने पर्यावरण को बुरे बदलाव की ओर बढ़ा दिया है. गर्मी के मौसम में बड़ी संख्या में लोगों के घरों में एसी का प्रयोग होने लगा है. हर छोटी दूरी के लिए गाड़ी का प्रयोग किया जा रहा है. इसके चलते दिक्कतें बढ़ रही हैं. उन्होंने चेताते हुए कहा कि समय रहते इस समस्या का समाधान करने की जरूरत है.
डॉ. ध्रुव सेन ने एक सवाल के जवाब में कहा कि लोगों को जल का गलत तरीके से किए जाने वाले दोहन पर काम करने की सख्त आवश्यकता है. जल का गलती तरीके से किया जा रहा दोहन क्लाइमेट चेंज में अहम प्रभाव डाल रहा है. इस बारे में लोगों को अब भी चेतना जरूरी है. जल का संचयन करने की बहुत आवश्यकता है. कुछ आदतों को बदल करके जल की बर्बादी को रोकने में अहम योगदान दिया जा सकता है. उन्होंने एक सवाल के जवाब में उदाहरण देते हुए यह भी कहा कि एक समय था जब हमारे पास खेती और पौधरोपण के लिए जो जगह अंदाजन 100 स्क्वायर फीट थी, तो शहरीकरण और वनों की कटाई के चलते मात्र 20 रह गई है. ऐसे में इसका असर तो दिखना ही है.
हालांकि, उन्होंने मेट्रो सिटीज की तर्ज पर फाइव डे वर्क कल्चर को बढ़ावा देने, साल के कुछ दिनों में लॉकडाउन का पालन कराने की वकालत भी की. उन्होंने क्लाइमेट चेंज को प्रभावित होने से बचाने के लिए कहा कि लोग यदि घरों से निकलते समय गाड़ी का प्रयोग कम करें. एसी का बेजां इस्तेमाल न करें और लॉकडाउन जैसी परिस्थिति को अपनाते हुए कुछ दिन बाहर न निकलें तो परिवर्तन लाया जा सकता है. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि यह करना स्वाभाविक नहीं है. मगर एक तरीका तो है ही.
वहीं, लंबे समय कृषि एवं पर्यावरण जैसे आवश्यक विषयों की पत्रकारिता करने वाले अरविंद शुक्ला कहते हैं कि विश्व पर्यावरण दिवस पर आज हर जगह कई कार्यक्रम किए जाएंगे. सभी हरियाली को बढ़ावा देने की बात करेंगे. सभी जल संचयन को लेकर एक, से बढ़कर एक तरकीबें बताएंगे. मगर कुछ घंटों के बाद विशेषज्ञ की बातों को सभी भुला देंगे. समाज में जब तक उन उपायों को नहीं अपनाया जाएगा जो पर्यावरण दिवस पर बताए जाएंगे, तब तक क्लाइमेट चेंज की समस्या से हम जूझते ही रहेंगे. यह कहना है उन विशेषज्ञों का जो पृथ्वी पर आ रहे क्लाइमेट चेंज को लेकर काफी समय से अध्ययन कर रहे हैं.