Varanasi News: सनातन धर्म में आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से अमावस्या तक के 15 दिन पूर्वजों के लिए समर्पित हैं, जिस तिथि को माता-पिता का देहांत होता है, उस तिथि को पितृपक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है. शास्त्रों में मनुष्यों के लिए देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण बताए गए हैं. कारण यह कि जिन माता-पिता ने हमारी आयु-आरोग्यता, सुख-सौभाग्यादि की वृद्धि के लिए अनेकानेक प्रयास किए उनके ऋण से मुक्त न होने पर हमारा जन्म ग्रहण करना निरर्थक होता है.
इस बार पितृपक्ष 11 सितंबर से आरंभ हो रहा है, जिसका 25 सितंबर को पितृ विसर्जन के साथ समापन होगा. आश्विन कृष्ण प्रतिपदा 10 सितंबर को दोपहर 3.46 बजे लग रहीम है, जोकि 11 सितंबर को दोपहर 2.15 बजे तक रहेगी. शास्त्रों के अनुसार, पितृपक्ष में अपने पितरों के निर्मित जो अपनी सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करते हैं. उनका मनोरथ पूर्ण होता है.
प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार, पितृ लोग अपने पुत्रादि से श्राद्ध तर्पण की अपेक्षा करते हैं. यदि उन्हें यह उपलब्ध नहीं होता है तो नाराज होकर श्राप देकर चले जाते हैं. हर सनातनी को केवल वर्ष भर में उनकी मृत्यु तिथि को सर्व सुलभ जल तिल यव कुश और पुष्प आदि से श्राद्ध संपन्न करने और गो ग्रास देकर एक तीन पांच आदि ब्राह्मणों को भोजन करा देने से पितृ गण संतुष्ट होते हैं, और उनके ऋणों से मुक्ति मिलती है.
अतः इस सरलता से साध्य होने वाले कार्य की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए. इसके लिए जिस मास की जिन तिथियों को माता पिता आदि की मृत्यु हुई हो उस तिथि को श्राद्ध तर्पण, गो ग्रास व ब्राह्मणों को भोजन कराना आवश्यक होता है. इससे पितर प्रसन्न होते हैं और परिवार का सुख सौभाग्य समृद्धि की अभिवृद्धि होती है.
इस बार पितृपक्ष 15 दिनों में पूर्ण होगा. तिथि की हानि-वृद्धि नहीं है. आश्विन अमावस्या तिथि 24-25 सितंबर की रात 2.54 बजे लगेगी जो 26 सितंबर की भोर 3.24 बजे तक रहेगी. 26 सितंबर को ही प्रातः आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि मिलने से नवरात्र का प्रारंभ माना जाएगा.
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मातृ नवमी (19 सितंबर) तिथि विशेष पर माता की मृत्यु तिथि ज्ञात न होने पर श्राद्ध का विधान है.
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आश्विन कृष्ण द्वादशी (22 सितंबर) साधु, यति, वैष्णव का श्राद्ध.
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आश्विन कृष्ण चतुर्दशी (24 सितंबर) किसी दुर्घटना में मृत व्यक्तियों का श्राद्ध
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सर्व पैत्री अमावस्या (25 सितंबर) अज्ञात तिथि, जिस मृतक की तिथि ज्ञात न हो या अन्यान्य कारणों से नियत तिथि पर श्राद्ध न कर पाने के कारण तिथि विशेष पर श्राद्ध
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पितृ विसर्जनः रात में मुख्य द्वार पर दीपक जलाकर पितृ विसर्जन किया जाता है.
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प्रतिपदा रविवार 11 सितंबर
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द्वितीया सोमवार 12 सितंबर
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तृतीया मंगलवार 13 सितंबर
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चतुर्थी बुधवार 14 सितंबर
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पंचमी गुरुवार 15 सितंबर
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षष्ठी शुक्रवार 16 सितंबर
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सप्तमी शनिवार 17 सितंबर
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अष्टमी रविवार 18 सितंबर
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नवमी सोमवार 19 सितंबर (मातृ नवमी का श्राद्ध)
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दशमी मंगलवार 20 सितंबर
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एकादशी बुधवार 21 सितंबर (इंद्रा एकादशी व्रत)
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द्वादशी गुरुवार 22 सितंबर (साधु यति वैष्णवों का श्राद्ध)
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त्रयोदशी शुक्रवार 23 सितंबर
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चतुर्दशी शनिवार 24 सितंबर (शस्त्रादि दुर्घटना आदि से मृत्यु वालों का श्राद्ध)
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सर्वपैत्री अमावस्या 25 सितंबर (अज्ञात तिथि वालों या जो लोग नियत तिथि पर श्राद्ध न कर पाए हों उनके लिए श्राद्ध)
रिपोर्ट- विपिन सिंह, वाराणसी