Pitru Paksha 2022: कालों के काल महाकाल साक्षात काशी नगरी में बाबा विश्वनाथ के रुप में विराजित हैं. यहां मोक्ष कामना की पूर्ति हेतु लोग जीवन के अंतिम समय में आते हैं. गया तीर्थ की मान्यता रखने वाले वाराणसी के चेतगंज स्थित पिशाचमोचन कुंड पर पितृपक्ष को लेकर प्रेत और दुष्टात्माओं से मुक्ति के लिए लोगों का श्राद्ध कर्म शुरू हो गया है. पिछले दो साल से कोरोना काल की वजह से पितृपक्ष में सनातन धर्मी नहीं आए थे. यह एकमात्र ऐसा तीर्थ है जहां त्रिपिंडी श्राद्ध (Tripindi Shraddha) होने के साथ-साथ किसी भी प्रेतात्मा को काले, लाल और सफ़ेद झंडों के प्रतीक से बांधा जाता है क्योंकि इन तीनों रंगों में भगवान शंकर, ब्रहमा और विष्णु का वास होता है. यही नहीं यह प्रेत आत्मा को पीपल के वर्षों पुराने पेड़ में सिक्के के ऊपर कील ठोक कर पेड़ में चुनवा दिया जाता है.
भगवान शिव की नगरी में पिशाच का मंदिर न हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता. मोक्ष की नगरी काशी में है पिशाच मोचन तीर्थ. जहां की मान्यता है कि यहां लोगों को प्रेत और दुष्ट आत्माओं से मुक्ति मिलती है. इसे प्रेत आत्मा के मुक्ति का कुंड कहा जाता है. इसका नाम है पिशाच मोचन कुंड. इस कुंड का उल्लेख काशी खंड में भी मिलता है. यहां ये मान्यता है कि हजार वर्ष पुराने इस कुंड किनारे बैठकर अपने पित्रों जिनकी आत्माएं भटकती हैं, उनके लिए यहां पितृ पक्ष में आकर कर्मकांडी ब्राम्हण से पूजा करवाने से मृतक को प्रेत योनियों से मुक्ति मिल जाती है. कहते हैं यहां जो इंसान अंतिम सांस लेता है उसे मोक्ष मिलता है. जिन लोगों की मृत्यु यहां नहीं होती. उनका अंतिम संस्कार यहां पर कर देने मात्र से ही मोक्ष मिलता है. गया की तरह ही काशी में भी एक ऐसा कुंड भी है जहां पर मृत आत्माओं की शांति के लिए लोग पिंडदान करने आते हैं. पितृपक्ष शुरू होते ही इस कुंड पर भूतों का मेला लगता है.
यहां पर पूजा कराने वाले कर्मकांडी बताते हैं कि पिशाच मोचन कुंड को विमल तीर्थ भी कहा जाता है. मान्यता ये भी है की किसी भी इन्सान की मृत्यु (गति) होने के बाद उसे तिन तरह के प्रेत योनी मिलती है. जिसको सात्विक, रजस और तमस योनी कहा जाता है. इसी प्रेत योनियों को शांत करने के लिए यहां बाकायदा मिट्टी का कलश बनाकर उसके ऊपर नारियल रखकर सफ़ेद, लाल व काला कपड़ा लपेटकर श्राद्ध कर्म किया जाता है ताकि तीनों प्रेत योनियों से मोक्ष मिल जाए. मान्यता ये भी है की ये तीनों रंग के कपड़े क्रमश: सफ़ेद भगवान विष्णु, लाल भगवान ब्रम्हा और काला शिव के लिए प्रयोग किया जाता है.
कर्मकांडी ब्राम्हण आचार्य महेंद्र तिवारी ने कहा कि यहां एक खास बात ये भी है कि त्रिपिंडी श्राद्धकर्म पूरी दुनिया में केवल यही पिशाच मोचन कुंड पर ही होता है. यहां वर्षों पुराने पीपल के पेड़ में प्रेत आत्माओं को सिक्कों के सहारे पेड़ में चुनवा दिया जाता है ताकि जो भी यहां आये उसके परिजनों को मोक्ष मिल जाए. इसी वजह से यहां स्थित इस पुराने पीपल के पेड़ में असंख्य सिक्कों के ऊपर किल ठोका गया है.
गरुड़ पुराण और स्कंद पुराण में श्राद्ध पक्ष और पिशाचन मोचन का वर्णन मिलता है. बनारस में अकेला ऐसा स्थान है, जहां त्रिपिंडी श्राद्ध किया जाता है. जिस भी व्यक्ति की अकाल मृत्यु होती है, उसे यहां मोक्ष मिलता है. शास्त्रों में कहा गया है कि गंगा के धरती पर आने के पहले से ही बनारस में इस कुंड का अस्तित्व रहा है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, पिशाच मोचन कुंड का नाम पिशाच नाम के व्यक्ति से पड़ा था, जो कि बहुत पाप करता था. उसे इसी कुंड में मुक्ति मिली थी. इसके साथ ही जिन लोगों की अकाल मृत्यु होती है, उनके परिजन यहां आकर के पूजा करते हैं. वे श्राद्ध कर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति हेतु तर्पण करते हैं.
आचार्य महेंद्र तिवारी कर्मकांडी ब्राम्हण बतलाते हैं कि पिशाच मोचन कुंड कहीं भी नहीं है. विश्व में इस कुंड पर तो वर्ष भर लोग आते हैं लेकिन पितृपक्ष में यहां हजारों की भीड़ रोज उमड़ती है. हर आने वाला श्रद्धालु अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए यहां आकर त्रिपिंडी श्राद्ध करने के बाद पीपल के पेड़ में सिक्के में किला जरुर ठोकता है. इस मान्यता के साथ कि अब कोई भी प्रेत बाधा उन लोगों को परेशान नहीं करेगी और उनके पूर्वजों को मोक्ष की नगरी काशी में सर्वदा के लिए मुक्ति भी मिल जाएगी.
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