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UP By-Election: रामपुर-खतौली में तल्खी के बीच जीत के दावे, सियासी किलों को बचाने और ढहने की दिखी लड़ाई

उपचुनाव को लेकर आमतौर पर कहा जाता है कि इसमें सत्तापक्ष भारी रहता है. लेकिन, इस बार रामपुर और खतौली में जिस तरह से समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल आक्रामक अंदाज में दिखे, उसने सत्तापक्ष के माथे पर जाड़े में पसीना ला दिया. भाजपा नेताओं की जुबान इतनी तल्ख पहली बार दिखी.

By Prabhat Khabar News Desk | December 5, 2022 10:06 PM

Lucknow: यूपी की राजनीति में इस बार उपचुनाव को लेकर जितनी गहमागहमी रही, आरोप प्रत्यारोप लगाये गये और चुनावी रणनीति को धरातल पर उतारने के लिए जिस तरह सियासी दलों ने अपनी पूरी ताकत लगा दी, ऐसा आमतौर पर देखने को नहीं मिलता है.

उपचुनाव को लेकर आमतौर पर कहा जाता है कि इसमें सत्तापक्ष भारी रहता है. लेकिन, इस बार रामपुर और खतौली में जिस तरह से समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल आक्रामक अंदाज में दिखे, उसने सत्तापक्ष के माथे पर जाड़े में पसीना ला दिया. भाजपा नेताओं की जुबान इतनी तल्ख पहली बार दिखी.


पहली बार निर्वाचन आयोग से हुई इतनी शिकायतें

उपचुनाव जीतने के लिए मंत्रियों से लेकर संगठन के बड़े नेताओं ने व्यक्तिगत प्रहार करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी. दूसरी ओर सपा, रालोद ने भी जमकर पलटवार किया. वहीं पहली बार उपचुनाव में निर्वाचन आयोग से इतनी शिकायतें की गई, ज्ञापन सौंपे गये. मतदान के समय पूरे दिन सपा के ट्विटर हैंडल से शिकायतों का दौर जारी रहा. पार्टी ने कई वीडियो और शिकायतों का हवाला देते हुए चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किये.

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक ऐसा इसलिए देखने को मिला क्योंकि सोमवार को महज उपचुनाव के लिए मतदान नहीं हुआ, बल्कि यह सपा और भाजपा के सियासी किलों को बचाने और ढहने की लड़ाई थी. इसी वजह से दोनों ओर से हमले जारी रहे.

खतौली में ये समीकरण रहे हावी

देखा जाए तो मुस्लिम बहुल खतौली से लगातार दो बार से भाजपा विधायक के जीतने पर यह सीट एक तरह से पार्टी का मजबूत किला माना जाने लगी है. वहीं जाटलैंड की खतौली सीट की जीत-हार से रालोद की प्रतिष्ठा जुड़ी है. खतौली सीट पर भाजपा ने निवर्तमान विधायक विक्रम सैनी की पत्नी राजकुमारी सैनी को ही मैदान में उतारा. इस सीट पर रालोद मुस्लिम, जाट और गुर्जर समीकरण के साथ आजाद समाज पार्टी को साथ लेकर उसके नेता चंद्रशेखर आजाद के नाम पर दलित जोड़ने की जुगत में लगी रही.

बसपा के मैदान में नहीं होने से गठबंधन को फायदा

सियासी जानकारों के मुताबिक बसपा का चुनाव मैदान में नहीं होना और चंद्रशेखर आजाद का साथ मिलना रालोद-सपा गठबंधन के लिए फायदेमंद रहा. संभावना जतायी जा रही है कि दलितों के एक वर्ग ने गठबंधन उम्मीदवार के पक्ष में मतदान किया. हालांकि इसकी सच्चाई 8 दिसंबर को ही पता चल सकेगी.

भाजपा ने खतौली सीट को फिर से हासिल करने के लिए सैनी समाज के नेता और कई चुनाव लड़ चुके पूर्व एमएलसी हरपाल सैनी को भाजपा में शामिल किया गया. रालोद के टिकट के सबसे प्रमुख दावेदार अभिषेक गुर्जर को साथ लिया. इसके अलावा कई और नेताओं को भाजपा में शामिल कर जातीय समीकरण साधा गया.

मतदान के बाद भाजपा उत्साहित

मतदान के बाद भाजपा नेताओं का दावा है कि वोटिंग उनकी उम्मीद के मुताबिक रही. बसपा के चुनाव से बाहर होने के कारण दलित का बड़ा वर्ग भाजपा के साथ रहा. जाट और गुर्जर समाज का भी बड़े पैमाने पर साथ मिलने का दावा पार्टी नेता कर रहे हैं. उनका कहना है कि पार्टी पसमांदा मुसलमानों को भी साधने में सफल रही. हालांकि रालोद की ओर से भी जीत के दावे किये गये हैं.

रामपुर में भाजपा ने आजम को घेरा

रामपुर की बात करें तो आजम इस सीट से 10 बार विधायक रह चुके हैं. भाजपा का दावा है कि उसे बड़ी तादाद में रामपुर के मुसलमानों के वोट मिले हैं. खासकर नवाब खानदान और आजम से परेशान वर्ग का उसे साथ मिला. पार्टी नेताओं के मुताबिक जिस रणनीति से उसने रामपुर लोकसभा सीट पर कब्जा जमाया था, उसी तर्ज इस बार भी उसे मतदाताओं का साथ मिला है.

उधर रामपुर में जिस तरह से सपा ने मतदान प्रभावित करने का आरोप लगाया है. उससे जाहिर हो रहा है कि पार्टी वोटिंग के रुख से संतुष्‍ट नहीं है. खुद आजम की पत्नी और पूर्व सांसद तंजीन फातिमा ने वोट डालने के बाद कहा कि वोटिंग के नाम पर मजाक हो रहा है.

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आजम का परिवार रहा नाराज, लगाये आरोप

सपा ने भाजपा पर अपने बस्ते पर तोड़फोड़ करने का आरोप लगाया. मुस्लिम वोटरों को घर से नहीं निकलने देने की बात कही. अब्दुल्ला आजम भी पुलिस प्रशासन के व्यवहार से नाराज दिखे. सियासी जानकारों के मुताबिक जिस तरह से आजम परिवार इस बार बेचैन दिखा, उससे कयास लगाये जा रहे हैं कि आजम का किला ढह सकता है. आसिम राजा आजम की विरासत को आगे बढ़ाने में फिर नाकाम होंगे. हालांकि भाजपा के जीत के दावे की हकीकत 8 दिसंबर को सामने आएगी.

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