Dusshera के दिन रावण दहन से बची लकड़ियों के हैं कई लाभ, खत्म होती हैं नेगेटिव वाइब्स, जानें और भी फायदे
Dusshera 2022: इस बार दशहरा का पर्व पांच अक्टूबर, 2022 को मनाया जाएगा. दशहरा (Dussehra 2022) पर रावण दहन के बाद बची हुई लकड़ियों को घर में रखने को लेकर कई महत्व हैं. दशहरे से जुड़े कई और बातें ऐसी हैं, जो चौंकाने वाली हैं. आइए जानते हैं.
Aligarh News: दशहरा (Dussehra 2022) पर रावण दहन के बाद बची हुई लकड़ियों को घर में रखने को लेकर कई महत्व हैं. दशहरे से जुड़ी कई और बातें ऐसी हैं, जो चौंकाने वाली हैं. अलीगढ़ के ज्योतिषाचार्य पंडित ह्रदय रंजन शर्मा ने बताया कि भारतीय संस्कृति सदा से ही वीरता और शौर्य की समर्थक रही है. भगवान राम के समय से विजय दशमी विजय प्रस्थान का प्रतीक माना जाता है. इस बार दशहरा का पर्व पांच अक्टूबर, 2022 को मनाया जाएगा.
खत्म होती हैं नेगेटिव वाइब्स
पंडित ह्रदय रंजन शर्मा ने बताया कि, भगवान राम ने रावण से युद्ध हेतु इसी दिन प्रस्थान किया था. शिवाजी ने भी औरंगजेब के विरुद्ध इसी दिन प्रस्थान किया था. भारतीय इतिहास में अनेक उदाहरण हैं, जब हिन्दू राजा इस दिन विजय-प्रस्थान करते थे. हिंदू मान्यता के अनुसार, रावण दहन से बची लकड़ियां घर में रखने से नकारात्मक शक्तियों का खात्मा होता है. दशहरा पर कुछ ऐसी बातें हैं, जो कुछ अटपटी सी लगती हैं, पर लोग उन्हें अपनी जिदगी में अपनाते हैं.
ऐसी मान्यता है कि, रावण दहन के बाद बची हुई लकड़ियां मिल जाएं, तो उन्हें घर में लाकर कहीं सुरक्षित रख दें. इससे नकारात्मक शक्तियों का घर में प्रवेश नहीं होता है. दशहरे के दिन लाल रंग के नए कपड़े या रुमाल से मां दुर्गा के चरणों को पोंछकर इसे तिजोरी या अलमारी में रख दें. इससे घर में खुशहाली और तरक्की के नए रास्ते खुलते हैं.
दशहरा के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करें. अगर संभव हो तो इस दिन अपने घर में शमी के पेड़ लगाएं और नियमित दीप दिखाएं. मान्यता है कि दशहरा के दिन कुबेर ने राजा रघु को स्वर्ण मुद्राएं देने के लिए शमी के पत्तों को सोने का बना दिया था, तभी से शमी को सोना देने वाला पेड़ माना जाता है. दशहरे के दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन बहुत ही शुभ होता है. इस दिन यह पक्षी दिखे तो आने वाला साल खुशहाल होता है.
क्यों मनाई जाती है विजयादशमी
दशहरा को भगवती के विजया नाम पर विजयादशमी (Vijayadashami) कहते हैं. इस दिन भगवान रामचंद्र 14 वर्ष का वनवास काटकर और रावण का वध करके अयोध्या पहुंचे थे, इसलिए भी इस पर्व को विजयादशमी कहा जाता है.
रिपोर्ट- चमन शर्मा, अलीगढ़