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44वें शतरंज ओलंपियाड की रिले टॉर्च प्रयागराज से काशी पहुंची, अब अयोध्‍या में खेलप्रेमी कर रहे इंतजार

इस 44वें चेस ओलंपियाड में करीब 187 देश हिस्सा लेंगे. यह चेस ओलंपियाड पहली बार भारत में हो रहा है. यह प्रतियोगिता रूस में आयोजित होने वाली थी लेकिन यूक्रेन-रूस के युद्ध की वजह से इस प्रतियोगिता की मेजबानी इस बार भारत को मिली है. यह मशाल वाराणसी के बाद अयोध्या जाएगी.

Varanasi News: 44वें शतरंज ओलंपियाड की रिले टॉर्च सोमवार प्रयागराज से काशी पहुंची. तमिलनाडु के महाबलीपुरम में 28 जुलाई से शुरू हो रहे चेस ओलंपियाड की रिले टॉर्च मशाल का वाराणसी के महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में भव्य स्वागत हुआ. इस दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम और परंपरागत खेलों का भी आयोजन हुआ. यूपी के 9 जिलों और देश में 75 स्थानों पर रिले टार्च का स्वागत होना है.

मशाल वाराणसी के बाद अयोध्या जाएगी

इस 44वें चेस ओलंपियाड में करीब 187 देश हिस्सा लेंगे. यह चेस ओलंपियाड पहली बार भारत में हो रहा है. यह प्रतियोगिता रूस में आयोजित होने वाली थी लेकिन यूक्रेन-रूस के युद्ध की वजह से इस प्रतियोगिता की मेजबानी इस बार भारत को मिली है. यह मशाल वाराणसी के बाद अयोध्या जाएगी. वाराणसी में आज स्वागत काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो. आनंद त्यागी और कांग्रेस विधायक अजय राय समेत कई खेल अधिकारियों ने किया. कार्यक्रम के दौरान धोबिया और डमरू डांस प्रस्तुत किया. इसके बाद छोटे बच्चों की एक चेस प्रतियोगिता भी आयाेजित की गई। अखिल भारतीय शतरंज महासंघ के अध्यक्ष डॉ. संजय कपूर, एआइसीएफ के सचिव और ओलंपियाड निदेशक भरत सिंह चौहान, रिले टार्च ग्रैंडमास्टर तेजस बाकरे और वंतिका अग्रवाल ने कहा कि इस बार भारत में इतिहास बनेगा. चेस को बच्चों के कोर्स में शामिल कराना है.

अधिक से अधिक प्रेरित करना चाहिए

रिजनल स्‍पोट्र्स ऑफ‍िसर आरपी सिंह ने कहा कि प्रयागराज से रिले टार्चकाशी आ आया है. बीते 19 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस रिले टार्च को दिल्ली से रवाना किया था. यह देश के आठ जनपदों को कवर करते हुए वाराणसी पहुंचा है. इस रिले के साथ जितने भी गणमान्य लोग आ रहे हैं, सभी का महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में स्वागत किया जा रहा है. इस दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम और छोटे बच्चों के लिए चेस प्रतियोगिता का भी अयोजन किया गया है. चेस विश्व का सबसे पुराना खेल है और विश्व की सबसे पुरानी नगरी के दूसरे सबसे पुराने विश्वविद्यालय में आज इस मशाल का आना हमारे लिए गौरव का क्षण है. हमें अपने छात्रों को इस खेल के लिए अधिक से अधिक प्रेरित करना चाहिए क्योंकि इस खेल में हमें भारतीयता की झलक मिलती है और इस खेल की शुरूआत भारत से ही हुई है.

रिपोर्ट : विप‍िन स‍िंह

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