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राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते ही अखिलेश यादव की ‘अग्नि परीक्षा’, निकाय और लोकसभा चुनाव बड़ी चुनौती

समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) का राज्य व राष्ट्रीय सम्मेलन 28 व 29 सितंबर को है. इस सम्मेलन के साथ ही अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और उनकी टीम की अग्निपरीक्षा शुरू हो जाएगी. पहले निकाय चुनाव और फिर 2024 में लोकसभा चुनाव हैं. सबसे बड़ी चुनौती समाजवादी पार्टी के संगठन को मजबूत करना होगा.

Lucknow: समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) एक बार फिर नये सिरे से खड़े होने का प्रयास कर रही है. इसकी नींव राज्य सम्मेलन और राष्ट्रीय सम्मेलन के साथ रखी जाएगी. राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) दोबारा काबिज होंगे. प्रदेश अध्यक्ष के पद को लेकर अभी संशय है. लेकिन माना जा रहा है कि नरेश उत्तम पटेल (Naresh Uttam Patel) को दोबारा प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जाएगी. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि इस राष्ट्रीय अधिवेशन के बाद अखिलेश यादव के लिए आने वाले दिन अग्निपरीक्षा से कम नहीं हैं.

2017 में पहली बार बने थे राष्ट्रीय अध्यक्ष

अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) 01 जनवरी 2017 को पहली बार समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे. यह ताजपोशी विशेष अधिवेशन से हुई थी. जिसमें सपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ।(Mulayam Singh Yadav) नहीं पहुंचे थे. चाचा शिवपाल यादव (Shivpal Singh Yadav) के साथ अखिलेश की अदावत चल रही थी. इसके बाद अक्टूबर 2017 में अखिलेश यादव फिर से आगरा में आयोजित अधिवेशन में राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे. इस अधिवेशन में पार्टी के संविधान को बदला गया और राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यकाल तीन से बढ़ाकर पांच साल कर दिया गया था.

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एवरेस्ट की तरह सामने खड़ी हैं चुनौतियां

29 सितंबर को एक बार फिर समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) संभालेंगे. निर्वाचन अधिकारी चाचा राम गोपाल यादव (Prof Ram Gopal Yadav) को बनाया गया है. इस बार राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अखिलेश यादव के सामने चुनौतियां एवरेस्ट की तरह सामने खड़ी हैं. उनके नेतृत्व में समाजवादी पार्टी तीन चुनाव हार चुकी है. अब 2024 लोकसभा चुनाव में उनकी नेतृत्व क्षमता का फिर से आंकलन हो जाएगा.

लगातार तीन बड़े चुनाव हारी है समाजवादी पार्टी

अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए 2017, 2022 का विधानसभा चुनाव और 2019 का लोकसभा चुनाव समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) हारी है. 2017 विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस से गठबंधन किया था. इसमें दो लड़कों की जोड़ी बहुत फेमस हुई थी. परिणाम उतने अच्छे नहीं रहे थे. 2019 लोकसभा चुनाव में बसपा से गठबंध हुआ और सपा पांच सीट पर सिमट गयी. 2022 विधानसभा चुनाव में कई छोटी पार्टियों से गठबंधन के बाद सपा को 111 सीटें मिली हैं. सपा का वोट प्रतिशत भी बढ़ा है. अब 2024 चुनाव उनके सामने होगा.

कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाना  चुनौती

अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के लिये एक और बड़ी चुनौती अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाना होगा. लागातार सत्ता से दूर रहने के कारण कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा हुआ है. संगठन भी आधा-अधूरा है. सपा (SAPA) का सदस्यता अभियान जारी है. लेकिन इसमें वह तेजी नहीं दिखी जो आमतौर पर होनी चाहिए. आजम खान (Azam Khan) से लेकर कई पूर्व विधायक, मंत्री स्वयं को सत्ता के कोप से बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. ऐसे में कार्यकर्ताओं का जोड़े रखना आसान नहीं होगा.

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