Bareilly News: उत्तर प्रदेश के इटावा जनपद की ग्राम पंचायत सैफई में 22 नवंबर, 1939 को जन्में मुलायम सिंह यादव एक पहलवान थे. वह दंगल में अपने दांव से अच्छे-अच्छे पहलवान को धूल चटा देते थे. मगर, जब वह पहलवानी छोड़कर सियासत में आए. इसके बाद उनके सियासी दांव से विपक्षी नेता घबराते थे. इसलिए उनको नेताजी और धरती पुत्र का खिताब मिला. इस बीच समाजवादी पार्टी ने इटावा का नाम ‘मुलायम नगर’ रखने का प्रस्ताव भेजने की तैयारी कर ली है.
मुलायम सिंह यादव, यूपी के तीन बार मुख्यमंत्री रहे, तो वही केंद्र में रक्षा मंत्री की भी जिम्मेदारी संभाली. मगर, नेताजी का देहांत 10 अक्टूबर, 2022 को गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में हो गया था. मगर, अब इटावा का नाम ‘मुलायम नगर’ रखने का प्रस्ताव भेजने की तैयारी है. जल्द ही इटावा जिला पंचायत की बोर्ड बैठक में प्रस्ताव पास कर भेजने की तैयारी है. सपा के मुलायम दांव से भाजपा टेंशन में है. इटावा को ‘मुलायम नगर’ करने का जल्द ही जिला पंचायत बोर्ड पास कर भेजा जाएगा.
हालांकि, जिला पंचायत अध्यक्ष अभिषेक यादव ने 24 सदस्यीय बोर्ड के सदस्यों के साथ प्रस्ताव पर बैठक की थी. सदस्यों ने मौखिक रूप से सहमति दे दी है. इस प्रस्ताव को बोर्ड से पास कराकर सरकार को भेजा जाएगा. योगी सरकार प्रस्ताव को हरी झंडी देकर इटावा का नाम “मुलायम नगर” करती है, तो जिला पंचायत और मुलायम कुनबे की वाहवाही होगी. इसके साथ ही मुलायम सिंह यादव का नाम जिले से भी हमेशा याद रखा जाएगा.
मगर, भाजपा ने इस प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी, तो सियासी नुकसान भी हो सकता है. सपा मुलायम सिंह यादव विरोधी होने का भाजपा पर आरोप लगाएगी. हालांकि, यूपी में भाजपा कई जिलों के नाम परिवर्तित कर चुकी है. सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद भाजपा यादव मतदाताओं को रिझाने में लगी थी. इसके साथ ही लोकसभा चुनाव 2014, 2019 और विधानसभा चुनाव 2017 और 2022 में यादव बाहुल्य बूथों पर भी सपा को हार मिली.
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इन बूथों पर भाजपा प्रत्याशियों को जीत मिली. मगर, अब भाजपा यादवों में और सेंध लगाने की कोशिश में है. इसी को लेकर सपा ने भाजपा को ‘मुलायम दांव’ से घेरने की कोशिश की है. मुलायम सिंह यादव के पोते अर्जुन यादव से लेकर तमाम सपाइयों ने नेताजी को भारतरत्न देने की मांग की थी. मगर, केंद्र सरकार ने पदम विभूषण का ऐलान किया. इसका सांसद डिंपल यादव से लेकर पार्टी के तमाम लोगों ने विरोध किया था.
रिपोर्ट- मुहम्मद साजिद, बरेली