सरजू पाण्डेय के जन्मशताब्दी वर्ष पर विशेष : सांसद ने कहा था- नेताओं की कथनी और करनी में अंतर नहीं होना चाहिए
स्वामी आग-बबूला हो गये. उन्होंने सारी दूध की बाल्टियों को लात से मारकर गिरा दिया. कहा कि यह दूध नहीं, किसानों का खून है. जमींदार के दरवाजे पर स्वामी जी को सुनने के लिए जुटी भीड़ ने ‘स्वामी जी की जय’ का जयघोष करना शुरू कर दिया. पाली गांव की उस भीड़ में 18 वर्षीय युवा सरजू पाण्डेय भी थे.
वर्ष 1937 में महान किसान नेता स्वामी सहजानंद सरस्वती उत्तर प्रदेश के गाजीपुर के पाली गांव में जमींदार राजा राय के यहां बुलावे पर पहुंचे. जमींदार ने गरीब किसानों से जबरदस्ती दूध लेकर कई बाल्टियां स्वामी जी के स्वागत में अपने दरवाजे पर जुटा ली. स्वामी जी ने पूछा- दूध कहां से लाये हो. जमींदार ने कहा कि रियाया है महाराज. दे जाती है. यह सुनकर स्वामी आग-बबूला हो गये. उन्होंने सारी दूध की बाल्टियों को लात से मारकर गिरा दिया. कहा कि यह दूध नहीं, किसानों का खून है.
स्वामी सहजानंद सरस्वती से प्रभावित होकर शुरू की समाज सेवाजमींदार के दरवाजे पर स्वामी जी को सुनने के लिए जुटी भीड़ ने ‘स्वामी जी की जय’ का जयघोष करना शुरू कर दिया. पाली गांव की उस भीड़ में 18 वर्षीय युवा सरजू पाण्डेय भी थे. अन्याय के खिलाफ स्वामी सहजानंद सरस्वती के इस रूप ने सरजू पाण्डेय के मन-मस्तिष्क में अमिट छाप छोड़ी. उन्होंने किसानों और मजूदरों की सेवा को अपना ध्येय बना लिया. सोमवार (1 मई) को श्रमिक दिवस पर झारखंड की राजधानी स्थित रांची प्रेस क्लब में सरजू पाण्डेय के जन्मशताब्दी वर्ष पर स्मृति सभा का आयोजन किया गया है. इसमें राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश मुख्य अतिथि होंगे. रांची के सांसद संजय सेठ विशिष्ट अतिथि होंगे.
बता दें कि 15 अगस्त 1942 को अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में हजारों की भीड़ लेकर सरजू पाण्डेय ने कासिमाबाद थाने पर चढ़ाई कर दी थी. वहां तिरंगा फहरा दिया. आक्रोशित भीड़ ने थाने को फूंक दिया. सरजू पाण्डेय को 7 साल की सजा हो गयी. उन्हें जेल जाना पड़ा. उनके पैतृक गांव उरहां में अंग्रेजों ने कुर्की-जब्ती कर दी. उनकी मिट्टी के घर पर घोड़े दौड़ाकर मैदान कर दिया. सरजू पाण्डेय के भतीजे और भारद्वाज स्मारक समिति के पूर्व सचिव स्व रामलाल ने एक बार कहा था कि कुर्की के समय वह 8 वर्ष के थे. अंग्रेजों के सिपाहियों ने उनके बदन से शॉल भी खींच लिया था.
देश की आजादी के बाद जेल से हुए आजादसरजू पाण्डेय के पिता महावीर पाण्डेय को भी थानेदार ने डंडों से पीटा. लेकिन, उन्होंने अपने बेटे का पता नहीं बताया. उन पर 20 से अधिक मुकदमे लाद दिये गये. इनमें कुल 46 साल की सजा सुनायी गयी. करीब 4 साल तक वह जेल में रहे. गाजीपुर, वाराणसी और लखनऊ के जेल में उन्होंने सजा काटी. देश आजाद हुआ, तो सरजू पाण्डेय को भी रिहा कर दिया गया.
10 सालों तक लगातार किया किसान आंदोलनसन् 1947 से 1957 तक सरजू पाण्डेय ने किसानों और मजलूमों पर जुल्म कर रहे आततायी जमींदारों के खिलाफ मुहिम छेड़ दी. हरी-बेगारी, नजराना और बंधुआ मजूदरी के खिलाफ सशक्त मुहिम चलायी. किसान और मजदूरों को हक दिलाने के लिए काम किया. कई जमींदारों से उनकी झड़प भी हुई. कई मुकदमे चले. बलिया के छिछोर कांड में भी नामजद किया गया, लेकिन बाद में बाइज्जत बरी हो गये.
नेहरू ने कोट का गुलाब उतारकर किया सरजू पाण्डेय का सम्मानजमीनी सियासत और आंदोलन के कारण सरजू पाण्डेय की लोकप्रियता काफी बढ़ गयी. वर्ष 1957 का रसड़ा लोकसभा और गाजीपुर के मोहम्मदाबाद से विधानसभा चुनाव एक साथ जीते. रसड़ा में पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथी और पूर्व गवर्नर शौकतउल्लाह अंसारी को हराकर सबको चकित कर दिया. संसद में नेहरू जी ने पूछा- कौन है सरजू पाण्डेय. सरजू पाण्डेय जब सदन में खड़े हुए, तो उनकी साधारण वेश-भूषा देख तत्कालीन प्रधानमंत्री हतप्रभ रह गये. पंडित नेहरू ने कोट से गुलाब निकालकर उन्हें सम्मानित किया. कहा- बहुत मजबूत लड़ाई लड़कर आये हो.
चार बार सांसद और तीन बार विधान परिषद के सदस्य रहेसरजू पाण्डेय की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 1957, 1962, 1967 और 1972 का लोकसभा चुनाव वह लगातार जीते. 1957 और 1962 का चुनाव उन्होंने रसड़ा लोकसभा से और 1967 और 1972 का चुनाव गाजीपुर लोकसभा सीट से जीता.
गरीबों और मजलूमों की सेवा करते रहेसंसद में पूर्वांचल की गरीबी का मुद्दा जोरदार ढंग से उन्होंने उठाया. उन्होंने संसद में बताया कि किस तरह लोग गोबर से अनाज निकालकर उसे साफ करके सुखाकर भोजन के काम में लाते हैं. पूर्व सांसद विश्वनाथ सिंह गहमरी के साथ मिलकर पटेल आयोग की अनुशंसा करायी. हालांकि, इसका श्रेय उन्होंने कभी नहीं लिया.
स्वतंत्रता सेनानी की पेंशन और ताम्रपत्र कर दी वापससरजू पाण्डेय जी की ईमानदार की आज भी दाद दी जाती है. तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों को उत्तराखंड में जमीन दी गयी, लेकिन सरजू पाण्डेय ने 20 बीघा जमीन लौटा दी. सरकार द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों को वर्ष 1982 में दिया गया ताम्रपत्र भी उन्होंने लौटा दिया. कहा कि देश सेवा फर्ज है, हमें किसी तमगे या पेंशन की जरूरत नहीं है. यही नहीं, उनकी ईमानदारी और सादगी से प्रभावित होकर पेट्रोलियम मंत्री ने एक पेट्रोल पंप देने की पेशकश की, लेकिन सरजू पाण्डेय ने उसे विनम्रता से मना कर दिया. कहा कि साख पर दाग उचित नहीं है. नेताओं की कथनी और करनी में अंतर नहीं होना चाहिए.
अनुच्छेद 370 का किया विरोधसंसद में वर्ष 1964 में लाल बहादुर शास्त्री कश्मीर पर बिल लाये थे. सरजू पाण्डेय ने उसका समर्थन किया. उन्होंने अनुच्छेद 370 का विरोध किया. उस समय संसद में अटल बिहारी वाजपेयी, राममनोहर लोहिया और मधु लिमये के साथ अपनी आवाज बुलंद की और देश के एकीकरण की पुरजोर वकालत की.
अमित शाह ने संसद में सरजू पाण्डेय को याद किया5 अगस्त 2019 को संसद में अनुच्छेद 370 के खिलाफ लाये गये बिल पर जब गृह मंत्री भाषण दे रहे थे, तो उन्होंने खासतौर पर जिन पुराने प्रमुख नेताओं के नाम लिये, उनमें सरजू पाण्डेय प्रमुख थे. इससे पहले, रांची में आयोजित ‘प्रभात खबर’ के स्थापना दिवस में तत्कालीन उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने ने भी वर्ष 1964 में लाये गये अनुच्छेद 370 बिल पर हुई चर्चा को याद करते हुए सरजू पाण्डेय की चर्चा की थी.
दलितों, पिछड़ों में कराया 110 बीघा जमीन का वितरणवर्ष 1970 में गाजीपुर के सांसद रहते उन्होंने कासिमाबाद के रेंगा गांव में 110 बीघा जमीन का वितरण गरीबों यादव, राजभर और दलित समाज में कराया. जंगीपुर के बोगना ताल की हजारों एकड़ जमीन का वितरण गरीबों में कराया.
तीन बार विधान परिषद सदस्य रहेवर्ष 1977 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद वह तीन बार उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रहे. जनसेवा करते रहे. दूसरे दलों में भी उनके प्रशंसक रहे.
पांच पूर्व प्रधानमंत्रियों के साथ व्यक्तिगत रिश्तेसरजू पाण्डेय का पंडित नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, चंद्रशेखर और अटल बिहारी वाजपेयी से मधुर संबंध थे. इंदिरा गांधी उनके खिलाफ प्रचार करने भी जातीं, तो कहतीं- पाण्डेय जी गलत पार्टी में सही नेता हैं.
शिक्षा के प्रचार-प्रसार में अग्रणी भूमिका1970 से लेकर 1980 तक गाजीपुर पीजी कॉलेज की प्रबंध समिति के उपाध्यक्ष रहे. कॉलेज के संचालन और उन्नयन में प्रमुख भूमिका निभायी. आज भी यह जिले का प्रमुख शिक्षण संस्थान है.
देहावसान पर उमड़ा था जनसैलाब25 अगस्त 1989 को रूस के मॉस्को शहर में हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया. लखनऊ एयरपोर्ट पर उनको कंधा देने के लिए एनडी तिवारी, मुलायम सिंह यादव और बेनी प्रसाद वर्मा सरीखे नेता पहुंचे थे. उनके निधन पर गाजीपुर में उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए अपार जनसमूह उमड़ा. यह भीड़ ऐतिहासिक थी. कहते हैं कि उसके बाद आज तक जिले में कभी वैसी भीड़ लोगों ने नहीं देखी.