Gyanvapi Dispute: बरसों पुरानी किताबों में पन्ना पत्थर से बने शिवलिंंग का है जिक्र, देखें Photos
ज्ञानवापी प्रकरण में हर पक्ष का अपना-अपना दावा है. अब गहराते दावे के बीच बरसों पुरानी किताबों में समाधान तलाशा जाने लगा है. पुरानी पत्रिकाओं और पुस्तकों में दर्ज व्याख्यान को लेकर दावे बढ़ते जा रहे हैं. ऐसे में तकरीबन 30 साल पहले एक पत्रिका के विशेषांक के लिए ली गई तस्वीरों को देखें...
Varanasi News: वाराणासी ज्ञानवापी सर्वे के दौरान मिले शिवलिंग को लेकर कई सारी बातें सामने आ रही हैं. इतिहास पर यदि नजर डालें तो कई जगह इस बात का जिक्र है कि पुराने शिवलिंग का निर्माण पन्ना से हुआ था.
अब ज्ञानवापी के वजूखाने में मिला शिवलिंग पन्ना का है अथवा नहीं? इसका निर्धारण तो पड़ताल के बाद ही होगा लेकिन लगभग इसी आकार के पन्ना के शिवलिंग का जिक्र इतिहास में कई स्थानों पर मिलता है. 400 ईसवी में आए चीनी यात्री फाहियान से लेकर 19वीं शताब्दी में काशी के राजा मोतीचंद की लिखी पुस्तक ‘काशी के इतिहास’ में पन्ना से निर्मित 18 बालिस्त ऊंचे शिवलिंग का उल्लेख है.
इस शिवलिंग के बारे में जांच पड़ताल करने पर पता चला कि पहले चीनी यात्री फाहियान ने अपनी यात्रा-वृत्तांत को लिपिबद्ध किया था. चाइनीज भाषा में फाहियान के लिखे रोचक संस्मरणों का हिंदी अनुवाद जगन्मोहन वर्मा ने किया था.
इसका पहला संस्करण साल 1918 में काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने प्रकाशित किया था. इस पुस्तक में जिक्र है कि फाहियान संस्कृत का अध्ययन करने के लिए काशी आया था. तब उसने राजा विक्रमादित्य द्वारा काशी में बनवाए गए आदि विश्वेश्वर को देखा था, जिसमें पन्ने का शिवलिंग स्थापित था.
आधुनिक इतिहासकार राजा मोतीचंद के ‘काशी का इतिहास’ नामक पुस्तक में उल्लेख है कि वर्ष 1569 में जब अकबर के निर्देश पर उनके मंत्री टोडरमल ने विश्वेश्वर मंदिर का पुन: निर्माण कराया तब भी वहां पन्ने का शिवलिंग ही स्थापित किया गया था.
जिस, मुकदमे के दायर होने के बाद सर्वे हुआ है, उसकी पिटिशन रिपोर्ट में भी उल्लेख किया गया है कि मस्जिद के तहखाने में हरे पत्थर का शिवलिंग है. यही नहीं बीएचयू के वरिष्ठ इतिहासकार प्रो. एके सिंह बताते हैं कि चौथी शताब्दी में फाहियान नामक बौद्ध भिक्षु अपने तीन भिक्षु साथियों के साथ भारत आया था.
चूंकि बौद्ध धर्म भारत से ही चीन गया था. अत: फाहियान का यहां आने का प्रमुख उद्देश्य बौद्ध धर्म के आधारभूत ग्रंथ ‘त्रिपिटक’ में एक ‘विनय पिटक’ को तलाशना था. वर्ष 1994 में ‘राष्ट्र का जागरूक प्रहरी वंदेमातरम’ के काशी विश्वनाथ विशेषांक के एक अध्याय में 18 बालिश्त ऊंचे पन्ने के शिवलिंग का विवरण दिया गया है. इस विशेषांक के लिए सामग्री का संग्रह उस वक्त रामनगर स्थित अमेरिकन इंस्टीट्यूट की लाइब्रेरी से किया गया था.
वंदेमातरम की टीम ने छह महीने तक लाइब्रेरी में मुगल इतिहासकारों से लेकर ब्रिटिश अधिकारी जेम्स प्रिसेप की पुस्तकों का अध्ययन किया था. सोमवार को सर्वे खत्म करने के बाद हिंदू पक्ष के पैरोकार डॉ. सोहनलाल ने बड़ा बयान दिया कि नंदी वाले बाबा मिल गए. इससे ज्यादा उन्होंने कुछ भी नहीं कहा. एक अन्य पक्षकार ने कहा, ‘जो भी आज मिला वह सत्य को सामने ला रहा है.’ कई इतिहासकारों और स्थानीय लोगों का भी मानना है कि विश्वेश्वर महादेव का शिवलिंग पन्ना रत्न का बना हुआ है.
नोट : उपरोक्त तस्वीरें करीब 30 साल पहले एक पत्रिका के विशेषांक के लिए ली गई थीं.
रिपोर्ट : विपिन सिंह