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धर्म-कर्म : महालक्ष्मी का सोरहिया व्रत शुरू, 16 गांव के धागों का है विशेष महत्व, जानेें पूजन की विधि

सौभाग्य स्वरूपा माता लक्ष्मी के पूजन के लिए लक्सा स्थित लक्ष्मी कुंड पर श्रद्धालुओं की भीड़ इकट्ठी हो चुकी है. यहां स्थित लक्ष्मी देवी के दर्शन हेतु महिलाओं ने सुख-समृद्धि के लिए 16 दिन तक व्रत का संकल्प लिया. इस दौरान 16 गांठ धागे का पूजन किया. साथ ही, 16 तरह की मिष्ठान फल आदि देवी को अर्पित किए.

Varanasi News: काशी में भगवती लक्ष्मी की आराधना के लिए विशेष रूप से किया जाने वाले 16 दिवसीय व्रतानुष्ठान के दौरान लगने वाला सोरहिया का मेला कोरोनाकाल के 2 वर्ष बाद माता लक्ष्मी के पूजन के साथ आरंभ हुआ. शनिवार से शुरू हुए सोराहिया मेला को काशी के लक्खी मेले में शुमार किया जाता है. सौभाग्य स्वरूपा माता लक्ष्मी के पूजन के लिए लक्सा स्थित लक्ष्मी कुंड पर श्रद्धालुओं की भीड़ इकट्ठी हो चुकी है. यहां स्थित लक्ष्मी देवी के दर्शन हेतु महिलाओं ने सुख-समृद्धि के लिए 16 दिन तक व्रत का संकल्प लिया. इस दौरान 16 गांठ धागे का पूजन किया. साथ ही, 16 तरह की मिष्ठान फल आदि देवी को अर्पित किए.

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16 दिन तक चलेगा यह मेला

दो वर्ष के बाद लक्ष्मी कुंड पर सोरहिया मेले की रंगत पुनः देखने को मिली. भाद्र शुक्ल अष्टमी से अश्विन कृष्ण अष्टमी तक यानी 16 दिन चलने वाले इस मेले की अपनी रौनक है. कोरोना काल की अपेक्षा इस बार रौनक ज्यादा है. लक्ष्मी कुंड स्थित मंदिर में श्री महालक्ष्मी श्री महाकाली एवं श्री महासरस्वती का वार्षिक 16 दिवसीय दर्शन एवं व्रत पूजन का पर 2 साल बाद पूरी रंगत के साथ शनिवार को नजर आया. संतान की दीर्घायु और धन-धान्य के लिए 16 दिनों तक चलने वाले व्रत पूजन के निमित्त महिलाओं का हुजूम दोपहर बाद से मंदिर क्षेत्र में जुटने लगा.

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कमल के फूल से करें पूजन-अर्चन

मंदिर के महंत रविशंकर पांडेय ने बताया कि अष्टमी से अष्टमी तक महालक्ष्मी की पूजा का विधान है. इस व्रत की शुरुआत माता पार्वती ने की थी. यह पर्व भादो अष्टमी से शुरू होकर कुवार अष्टमी तक मनाया जाता है. 16 दिनों तक चलने वाला सोरहिया मेले में महालक्ष्मी की आराधना की जाती है. लक्ष्मी कुंड स्थित महालक्ष्मी का दर्शन इन दिनों फलदायी होता है. लोग पहले दिन महालक्ष्मी की प्रतिमा खरीदकर घर ले जाते हैं. उनका 16 दिनों तक कमल के फूल से पूजन व अर्चन होता है. कहा जाता है कि सोरहिया में माता लक्ष्मी का पूजन करने से घर में सुख, शांति, आरोग्य, ऐश्वर्य एवं स्थिर लक्ष्मी का वास होता है.

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क्या है व्रत की कहानी?

पूजन के दौरान माता रानी के मंदिर की 16 बार परिक्रमा की जाती है. दर्शन पूजन और 16 प्रकार के फल, मिष्ठान, पान, सुपारी, माला, फूल, नारियल, मेवा, श्रृंगार सामग्री, वस्त्र, आभूषण आदि अपने सामर्थ्य अनुसार विधान करती है. इसमें मां की मिट्टी की मूर्ति 16 दिनों तक पूजी जाती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन लक्ष्मी कुंड की स्थापना अगस्त ऋषि ने की थी. व्रत से जुड़ी मान्यता है कि महाराजा जीतू की कोई संतान नहीं थी. महाराजा ने मां लक्ष्मी का ध्यान किया और मां लक्ष्मी ने सपने में दर्शन देकर 16 दिनों के कठिन व्रत का अनुष्ठान करने को कहा, महाराज जी ने ठीक वैसे ही 16 दिनों तक व्रत रखा और महालक्ष्मी की पूजा किया. कुछ दिनों बाद उन्हें संतान के साथ समृद्धि और ईश्वर की भी प्राप्ति हुई. तभी से यह परंपरा का नाम सोरहिया पड़ा.

पूरे विधि-विधान से करें पूजा

मंदिर में दर्शन करने आई महिला श्रद्धालु सुनीता सिंह ने कहा कि वह सोलह दिन का महालक्ष्मी का व्रत बचपन से करती आ रही हैं. सुबह मां लक्ष्मी का दर्शन मां छोटी लक्ष्मी का दर्शन मां काली का दर्शन सतनारायण भगवान का दर्शन के बाद मां की मिट्टी की प्रतिमा को लेकर घाट पर कथा सुना जाता है. पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है. उसके बाद मां लक्ष्मी की प्रतिमा को लेकर घर जाती हैं. वहां पर उनकी स्थापना की जाती है. यह क्रम प्रतिदिन 16 दिनों तक किया जाता है. इससे मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है.

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रिपोर्ट एवं तस्वीर : विपिन सिंह

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