UP Vidhansabha Parishad: समाजवादी पार्टी (सपा) की यूपी की उच्च सदन से नेता विरोधी दल की मान्यता समाप्त होने के बाद पार्टी की ओर से विरोध जताया गया है. विधान परिषद में सपा की नेता प्रतिपक्ष की मान्यता खत्म हो गई है. 100 सदस्यों वाली विधान परिषद में 10 फीसदी से अधिक सदस्य रहने पर नेता प्रतिपक्ष पद होता है लेकिन अब समाजवादी पार्टी के 9 सदस्य रह गए हैं. उत्तर प्रदेश में 6 जुलाई को विधान परिषद के 12 सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो गया. इनमें से 6 सपा के थे. इसके अलावा बसपा के 3, भाजपा के 2 और कांग्रेस के 1 सदस्य का भी कार्यकाल खत्म हो गया. अब जब सपा की सदस्यता समाप्त हो चुकी है तो उसे लेकर विरोध किया जा रहा है.
विधान परिषद में समाजवादी पार्टी के नेता लाल बिहारी यादव ने कहा कि विधान परिषद के सभापति का नेता विरोधी दल पद की मान्यता समाप्त करना, असंवैधानिक है. सभापति ने विधान परिषद की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमावली 1956 के नियम–234 का उल्लेख करते हुए नेता विरोधी दल की मान्यता को समाप्त करने की जो अधिसूचना जारी की है, वह गणपूर्ति संख्या-10 सदन के संचालन के लिए है. नेता विरोधी दल की मान्यता समाप्त करने के लिए नहीं है जबकि नियम-234 विधान परिषद की कार्यवाही के संचालन के लिए है. इस नियम का नेता विरोधी दल से कोई सरोकार नहीं है.
दरअसल, विधान परिषद में समाजवादी पार्टी विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी है. सपा विधान मण्डल दल के नेता अखिलेश यादव ने सभापति को 26 मई को पत्र भेजकर लाल बिहारी यादव को नेता विरोधी दल नामित करने के लिए संस्तुति की थी. उसी पत्र के आधार पर विधान परिषद के सभापति ने नेता विरोधी दल के रूप में उन्हें मान्यता प्रदान की थी लेकिन 7 जुलाई को अधिसूचना जारी कर नेता विरोधी दल की मान्यता समाप्त कर दी गयी.
इसी संबंध में लाल बिहारी यादव ने कहा कि नेता विरोधी दल सदन में सम्पूर्ण विपक्ष का नेता होता है. समाजवादी पार्टी बड़ी पार्टी है लेकिन नियमों का गलत हवाला देकर नेता विरोधी दल की मान्यता समाप्त करना लोकतंत्र को कमजोर एवं कलंकित करने वाला कदम है. यह सदन में विपक्ष की आवाज दबाने और कमजोर करने की साजिश है. विधान परिषद सभापति का यह फैसला लोकतंत्र की हत्या और कानून की धज्जी उड़ाने जैसा है.