Bareilly News: भारत में आज यानी 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जयंती मनाई जा रही है. इस मौके पर आपको जनना चाहिए कि देश की जंग-ए- आजादी में बरेली की भी मुख्य भूमिका रही. यहां के रुहेला सरदार हाफिज रहमत खां, नज्जू, बुलंद खां आदि ने अंग्रेजों को कई बार धूल चटाई थी. उन्होंने खुद की जान गंवाकर रुहेलखंड को कई बार आजाद भी कराया.
रुहेला सरदार की क्रांतिकारियों की निशानियां आज भी कमिश्नरी से लेकर फतेहगंज पश्चिमी तक हैं. बरेली के क्रांतिकारियों ने महात्मा गांधी से लेकर सुभाष चंद्र बोस के साथ आजादी की लड़ाई में योगदान दिया. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस बरेली में कई बार आए थे.
सुभाष चन्द्र बोस ने बरेली में अंतिम बार वर्ष 1938 में सरस्वती सेकेंडरी स्कूल में सभा की थी. नेताजी ने इस दौरान अपने संबोधन में कहा कि, देश को आजादी केवल अहिंसा से प्राप्त नहीं हो सकती. यह बड़ा उद्देश्य सिर्फ क्रांति से ही हासिल किया जा सकता है. नेता जी की जनसभा में बड़ी संख्या में क्रांतिकारी शामिल हुए थे. बरेली के काफी लोगों ने आजाद हिंद फौज में हिस्सेदारी ली. जनसभा की अध्यक्षता प्रिंसिपल विशंभर नाथ ने की.
आजाद हिंद फौज के कर्नल अमर बहादुर सिंह, शाहनवाज और सहगल को जेल से छूटने पर सम्मानित किया गया था. मुकदमें से बरी होने पर शाहनवाज खान को बरेली में स्वागत के लिए बुलाया गया था. वह हवाई जहाज से बरेली आ रहे थे, लेकिन ब्रिटिश अफसरों ने उन्हें बरेली में उतरने की अनुमति नहीं दी, जिसके चलते शाहनवाज खान ने पत्र लिखकर रुमाल में बाधा और उसे जहाज से नीचे गिरा दिया. जिसमें लिखा था कि रामपुर में उतरेंगे.
शाहनवाज ने क्रांतिकारियों को रूमाल से सूचना दी थी. जब इस पत्र को नीलाम किया गया तो उस वक्त 500 रुपये में नीलाम किया गया. ब्रिटिश हुकूमत ने 2 जुलाई 1940 को नेताजी को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तारी किया था. वह काफी समय तक जेल में रहे. 29 नवंबर 1940 को जेल में भूख हड़ताल की. इसके बाद रिहाई हो गई थी. 5 दिसंबर 1940 को नेताजी को घर में ही नजरबंद कर दिया गया.
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नेताजी ने बरेली में युवाओं में उत्साह भरा था. उन्होंने भारत माता को आजाद कराने के लिए नारा दिया, भारत मां को आजाद कराओ, उन्होंने कहा कि, नौजवान तूफान की तरह होता है, जो अपनी पर आ जाए, तो बड़े से बड़े दरख़्त को तिनके की तरह उड़ा ले जाता है. सुभाष चंद्र बोस, बरेली में सफेद शाल पहनकर मंच पर बैठे थे. वह खुद को हर रूप में ढाल लेते थे. बड़ों के साथ ही बच्चों से भी देशभक्ति की बातें करते थे.
रिपोर्ट- मुहम्मद साजिद, बरेली