BHU में आज भी डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के कार्यकाल को किया जाता है याद, VC के पद पर वेतन लेते थे 1 रुपये
डॉ सर्वपल्लली राधाकृष्णन ने आजादी के आंदोलन में भी अपना अहम योगदान दिया. छात्रों की रक्षा भी की थी. विश्वविद्यालय में आज भी उनकी कई ऐसी दुर्लभ तस्वीरों को मालवीय भवन में संजोकर रखा गया है. उनके बीएचयू के वीसी के तौर पर अपनी दी गई सेवाओं को खासतौर पर शिक्षक दिवस के दिन याद किया जाता है.
Teachers Day 2022: डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Dr Sarvepalli Radhakrishnan) एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने देश को आजादी दिलाने की भूमिका से लेकर शिक्षा के क्षेत्र तक में अपना अमूल्य योगदान दिया. सर्वविद्या की राजधानी काशी में पंडित मदन मोहन मालवीय की बगिया काशी हिंदु विश्वविद्यालय (BHU) को 9 साल तक कुलपति के पद पर बने रहने के दौरान डॉ सर्वपल्लली राधाकृष्णन ने आजादी के आंदोलन में भी अपना अहम योगदान दिया. छात्रों की रक्षा भी की थी. विश्वविद्यालय में आज भी उनकी कई ऐसी दुर्लभ तस्वीरों को मालवीय भवन में संजोकर रखा गया है, जिन्हें देखकर डॉ राधाकृष्णन के बीएचयू के वीसी के तौर पर अपनी दी गई सेवाओं को खासतौर पर शिक्षक दिवस के दिन याद किया जाता है.
बतौर वेतन लेते थे 1 रुपयेदरअसल, डॉ. सर्वपल्लली राधाकृष्णन वेतन के तौर पर सिर्फ 1 रुपये ही लेते थे. इसके अलावा जब उन्होंने यहां वीसी का पद संभाला तो सप्ताह में सिर्फ दो दिन के लिए वे विश्वविद्यालय आते थे. वह ट्रेन के जरिए कोलकाता से शनिवार को यहां आ जाते थे. इसके बाद शनिवार और रविवार को विश्वविद्यालय का कामकाज कर वापस लौट जाते थे. भारत के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती को 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में तो मनाया जाता है. उनका जन्म 1888 में हुआ था. वे नौ साल तक बीएचयू के कुलपति (1939-1948) रहने के बाद दिल्ली में एक कार्यक्रम में जब छात्रों ने बीएचयू का कुलगीत गाया तो तत्कालीन राष्ट्रपति राधाकृष्णन तुरंत रुक गए और छात्रों से मुलाकात की.
बीएचयू में वर्ष 1939 से 1948 तक उन्होंने न केवल बतौर कुलपति जिम्मेदारियों का निर्वहन किया बल्कि छात्रों के बीच एक अलग पहचान भी बनाई. कला संकाय में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के नाम से एक सभागार है. जब कुलपति के रूप में राधाकृष्णन जी यहां पर कार्य करते थे तो वहीं पर गीता का पाठ करते थे. यहां के प्रोफेसर, शिक्षक, विद्यार्थी, कर्मचारी और अपने मित्रों को हफ्ते में एक दिन गीता का पाठ सुनाते थे. बीएचयू में कुलपति के रूप में वेतन न लेने का मामला हो या फिर छात्र-छात्राओं की समस्याओं का समाधान करने की बात हो राधाकृष्णन के सफल कार्यकाल को आज भी लोग याद करते हैं.
Also Read: Teachers Day 2022: शिक्षक दिवस पर आज सीएम योगी टॉप 10 टीचर्स को करेंगे सम्मानित, 75 नामों की लिस्ट जारी छात्रों की सुरक्षा के लिए ब्रिटिश हुकूमत से लड़ पड़ेबीएचयू के वैदिक विज्ञान केंद्र के समन्वय प्रोफेसर उपेंद्र त्रिपाठी ने बताया कि जिस वक्त डॉ राधाकृष्णन ने बीएचयू के कुलपति का कार्यभार संभाला था, उस वक्त देश में अंग्रेजों का शासन था. इसके बावजूद डॉ राधाकृष्णन ने उन्हें कभी भी विश्वविद्यालय में प्रवेश की अनुमति नहीं दी. पूरे देश में 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था, उस समय काशी हिंदू विश्वविद्यालय क्रांतिकारियों का गढ़ था. यहां पढ़ने वाले बहुत से छात्रों ने कई स्वतंत्रता आंदोलनों में हिस्सा लिया. ऐसे में ब्रिटिश हुकूमत को जब यह पता चला तो वह छात्रों को गिरफ्तार करने विश्वविद्यालय परिसर पहुंची. बीएचयू के मुख्य द्वार तक सेना आ गई थी. उस समय कुलपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने ब्रिटिश सैनिक को विश्वविद्यालय में प्रवेश करने से रोक दिया. यही वजह थी कि उस आंदोलन में विश्वविद्यालय के छात्रों को ब्रिटिश पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाई. बीएचयू में आज भी 5 सितंबर को विश्वविद्यालय में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. उनके योगदान को छात्र अपने जीवन में आदर्श बनाकर पालन करने का संकल्प लेते हैं.
रिपोर्ट : विपिन सिंह