Gorakhpur News: गोरखपुर के औरंगाबाद गांव के टेराकोटा हस्तशिल्प का नाम आते ही उसकी एक से बढ़कर एक सुंदर कलाकृतियों की तरफ सबका ध्यान चला ही जाता है. इन्हें बनाने वाले कई कुम्हारों को इसी कला की वजह से सात समंदर पार जाने का मौका भी मिल चुका है. इनके हाथों का जादू अब हर किसी के सिर चढ़कर बोल रहा है. इनमें से कुछ कुम्हारों को नेशनल और स्टेट लेवल पर अवॉर्ड भी मिल चुके हैं. वन डिस्टिक वन प्रोडक्ट में टेराकोटा को शामिल करने के बाद आज टेराकोटा की मांग पहले की अपेक्षा ज्यादा बढ़ गई है. मार्केट में डिमांड इतनी है की ये लोग उसको पूरा ही नहीं कर पर रहे हैं.
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर से महज 15 किलो मीटर दूर औरंगाबाद अपने टेराकोटा हस्तशिल्प के लिए भारत में ही नहीं विदेशों में भी जाना जाता है. औरंगाबाद गांव में 12 कुम्हारों का नाम बड़े ही इज्जत के साथ लिया जाता है. इसमें से कई कुम्हारों को अपने टेराकोटा हस्तशिल्प कला के लिए नेशनल और इंटरनेशनल अवार्ड भी मिल चुका है. वैसे तो वन डिस्टिक वन प्रोडक्ट में टेराकोटा शामिल होने के बाद इनकी डिमांड बढ़ गई है लेकिन दीपावली पर इन लोगों के पास काम इतना रहता है कि यह लोग उसे पूरा ही नहीं कर पाते हैं. 20 परिवार के लगभग 100 से ज्यादा लोगों की रोजी-रोटी टेराकोटा के भरोसे ही चलता है.
मूर्तिकार गुलाब चंद प्रजापति ने बताया कि हमारी सातवीं पीढ़ी टेराकोटा का काम कर रही है. शुरुआत में कोई नहीं जानता था कि इसकी इतनी मांग होगी. धीरे-धीरे यह विश्वस्तर पर जाना जाने लगा. दरअसल, टेराकोटा यहां की खास मिट्टी है. इसको चिकनी मिट्टी भी बोलते हैं. इसकी मदद से हम चीजों का निर्माण करते हैं. इस मिट्टी को हाथों से आकार देकर मूर्ति आदि का निर्माण किया जाता है. इसी हुनर को भारत सरकार द्वारा मान्यता देते हुए टेराकोटा करार दिया गया है. उन्होंने आगे बताया कि टेराकोटा का काम अब कई राज्यों में किया जाता है लेकिन वहां पर ये सांचे से तैयार किया जाता है. मगर उनके गांव में हाथ से ही निर्माण किया जाता है. वे बताते हैं कि उनके परिवार के 9 लोग राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किये जा चुके हैं. गुलाब चंद भी प्रादेशिक पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं.
रिपोर्ट : कुमार प्रदीप