UP Election 2022: यूपी विधानसभा चुनाव के लिए 20 फरवरी यानी आज 16 जिलों की 59 सीटों पर मतदान हो रहा है. ऐसे वोट डालने से पहले और वोट डालने के बाद मतदाओं के जहन में ईवीएम को लेकर कई तरह के सवाल उठते हैं. अगर आपके मन में भी ईवीएम से जुड़ा को सवाल है, तो यह खबर आपके लिए ही है. आइए जानते हैं ईवीएम से जड़े आपके हर सवाल का जवाब…
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन जिसे सामान्य बोलचाल की भाषा में ईवीएम (EVM) कहा जाता है. इलेक्ट्रॉनिक साधनों का प्रयोग करते हुए वोट डालने या वोटों की गिनती करने के काम सहायता करती है. ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) को दो यूनिटों से तैयार किया गया है. पहला कंट्रोल यूनिट और दूसरा बैलट यूनिट. इन यूनिटों को केबल से एक दूसरे से जोड़ा जाता है. ईवीएम की कंट्रोल यूनिट पीठासीन अधिकारी या मतदान अधिकारी के पास रखी जाती है.
बैलेटिंग यूनिट को मतदाताओं द्वारा मत डालने के लिए वोटिंग कंपार्टमेंट के अंदर रखा जाता है. ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि, मतदान अधिकारी आपकी पहचान की पुष्टि कर सके. ईवीएम के साथ, मतदान पत्र जारी करने के बजाय, मतदान अधिकारी बैलेट बटन को दबाएगा जिससे मतदाता अपना मत डाल सकता है. मशीन पर उम्मीदवार के नाम या प्रतीकों की एक सूची उपलब्ध होती है, जिसके बराबर में नीले बटन दिए जाते हैं. मतदाता जिस उम्मीदवार को वोट देना चाहते हैं, उनके नाम के बराबर में दिए गए बटन दबाकर अपना मत उस प्रत्याशी के समर्थन में डालते हैं.
भारत में पहली बार ईवीएम का इस्तेमाल नवंबर 1998 में आयोजित 16 विधानसभा चुनावों में किया गया था. ईवीएम के जरिए मध्य प्रदेश की 5, राजस्थान की 5, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की 6 सीटों पर विधानसभा चुनाव कराए गए थे. इसके बाद साल 2004 से इसका इस्तेमाल सभी चुनावों में किया जाने लगा.
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के इस्तेमाल के लिए बिजली की जरुरत नहीं होती, क्योंकि इसे जब तैयार किया गया था. उस समय भारत के अधिकतर ग्रामीण इलाकों में बिजली का आभाव था. ईवीएम 6 वोल्ट की एल्कलाइन बैटरी से चलती है. यही कारण है कि मशीन क इस्तेमाल मैदान से लेकर पहाड़, कहीं भी किया जा सकता है.
एक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में अधिकतम 3840 वोट दर्ज किए जा सकते हैं. दरअसल, सामान्यतौर पर भारत में एक पोलिंग बूथ 1500 मतदाता वोट देते हैं. हालांकि, इस बार कोरोना के चलते एक मतदान केंद्र पर सिर्फ 1250 मतदाता बोट डाल रहे हैं. इसके अलावा एक ईवीएम में 64 उम्मीदवारों के नाम शामिल किए जा सकते हैं, और एक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में 16 नाम होते हैं, अगर कहीं उम्मीदवारों की संख्या अधिक होती है, वहां ईवीएम की संख्या बढ़ा दी जाती है. इसके अलावा विकल्प के तौर पर बैलेट पेपर का इस्तेमाल भी किया जा सकता है.
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को दो सरकारी कंपनियां- भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया वोटिंग मशीन बनाती हैं. एक्सपर्ट की निगरानी में मशीन का निर्माण किया जाता है. तीन प्रकार की इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें M1, M2 और M3 हैं. सबसे आधुनिक M3 ईवीएम होती है, साल 2013 में इसकी शुरूआत के बाद से उपयोग में हैं. एक ईवीएम मशीन की लागत 1989-90 में 5500/ थी. वर्तमान में इसकी कीमत लगभग 14000 रुपए हैं, जिसमें एक कंट्रोल यूनिट, 1 बैलटिंग यूनिट और बैटरी की कीमत शामिल होती है.
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम में माइक्रोचिप का इस्तेमाल किया जाता है. इसे मास्क्ड चिप भी कहा जाता है. इस चिप को ना तो पढ़ा जा सकता है और न ही ओवरराइट किया जा सकता है.
भारत में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पूरी तरह से सुरक्षित है. चुनाव आयोग कई मौकों पर दावा कर चुका है कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में किसी भी प्रकार की हैकिंग संभव नहीं है. हालांकि, अलग-अलग पार्टियों द्वारा समय-समय पर ईवीएम में हैकिंग का आरोप लगाया गया है, लेकिन कभी भी इसका कोई प्रमाण नहीं मिला. ईवीएम मशीन के सॉफ्टवेयर की जांच एक्सपर्ट की निगरानी में की जाती है. साथ ही बता दें कि मशीन में उम्मीदवार का नाम किस क्रम में होगा, यह पहले से तय नहीं होता. ऐसे में मशीन को हैक करने की कोई संभावना नहीं है. भारतीय ईवीएम किसी भी प्रकार के नेटवर्क पर काम नहीं करती.
Posted by Sohit kumar