Lucknow News: खेती में ज्यादा लागत, मेहनत और कम मुनाफे के कारण अक्सर परेशान होने वाले किसानों के लिए शाहजहांपुर के प्रगतिशील काश्तकार ने बचत का बड़ा उदाहरण पेश किया है. इस किसान ने आम तौर पर सब्जी, फल तैयार किये जाने वाले स्थान पॉली हाउस में गन्ने की पौध तैयार करने का कमाल किया है.
खास बात है कि यह पौध एक नहीं बल्कि साल में दस बार तैयार होगी. यह उत्पादन और गुणवत्ता के मामले में जहां सामान्य प्रजाति से कहीं बेहतर होगी, वहीं रोग रहित होना भी इसकी खासियत है.
शाहजहांपुर के इस प्रगतिशील किसान का नाम कौशल मिश्र है, जिन्होंने अपने गांव गंगानगर स्थित फार्म में चौरासी वर्ग मीटर जगह में पाली हाउस बनाकर उसमें गन्ने की एक लाख पौध तैयार करने में सफलता हासिल की है. जबकि सामान्य तरीके से इतनी जगह में सिर्फ दस हजार पौध ही तैयार हो सकती थी. इस प्रयोग जहां समय और स्थान की बचत हुई है, वहीं लागत कम होने से मुनाफा भी ज्यादा हो सकेगा.
कौशल की इस पहल से किसानों को फसल कटने के समय ही पौध तैयार मिल सकती है. इससे न सिर्फ उनका गन्ना समय से पहले तैयार होगा, बल्कि जमाव अच्छा होने के कारण उसका उत्पादन व चीनी परता भी गुणवत्ता युक्त होगा. कौशल ने इस तरह तैयार हो रही पौध के लिए पॉली हाउस में रैक तैयार करायी है, जिनमें ट्रे रखकर पौध तैयार करने का काम होता है.
प्रत्येक ट्रे में औसतन 50 पौध तैयार की हैं. इसमें खाद का प्रयोग नहीं हुआ है. नाममात्र मिट्टी को नारियल के जूट व बगास में मिलाकर उसमें गन्ने की आंख लगाई गई है. इससे तैयार पौध में लम्बे समय तक नमी और बेहतर जमाव मिलता है. पॉली हाउस में 13,235 व कोलख 14201 की पौध तैयार की गई है.
गन्ने की पौध 20 से 25 दिन में तैयार होती है. इसके बाद इसे सीधे खेत में लगाया जा सकता है. एयर व वाटर प्रूफ होने के कारण इसमें कोई बीमारी नहीं होती है. तापमान नियंत्रित रहता है. वहीं सर्दी अधिक पड़ने पर हीटर का प्रयोग किया जा सकता है
पॉली हाउस तैयार करने में तीन लाख रुपये का खर्च आया है. गन्ने की एक पौध 2.60 रुपये में बिकती है. एक बार में इसमें एक लाख पौध तैयार की जाती है. इस तरह से 2.60 लाख रुपये की आय एक बार में होगी. इस विधि से साल में दस बार तक पौध को तैयार किया जा सकता है. एक बार तैयार पॉली हाउस दस वर्ष तक कारगर है. देखरेख के लिए सिर्फ एक मजदूर की ही जरूरत होती है. सप्ताह में सिर्फ एक बार स्प्रिंकलर से पानी का छिड़काव होता है.
गन्ने की बुवाई सामान्यत: अक्टूबर से नवम्बर तक होती है. साल भर बाद इसकी कटाई होती है. कौशल के मुताबिक जमाव बेहतर न होने के कारण दिसम्बर व जनवरी में गन्ने की पौध तैयार नहीं की जा सकती. उनके इस प्रयोग से फरवरी से नवम्बर तक गन्ने की पौध तैयार की जा सकेगी, जिसे किसान सुविधानुसार खेत खाली होने पर कभी भी लगा सकेंगे.
कौशल ने इस बार अगस्त माह में गन्ने की बुवाई की थी. इसका जमाव भी काफी अच्छा हुआ है. इस विधि से तैयार गन्ने की फसल साल में दो बार काटी जा सकेगी. उनके खेत पर तैयार गन्ने की ऊंचाई 16 फीट है. वह एक हेक्टेयर में 22 क्विंटल गन्ने का उत्पादन करने के साथ ही इसी फसल में सवा तीन लाख रुपये का आलू का उत्पादन भी कर चुके हैं, जबकि एक हेक्टेयर में औसतन 800 से 900 क्विंटल गन्ना होता है.
गन्ने में कर चुके कई प्रयोग कौशल गन्ने की खेती में कई प्रयोग कर चुके हैं. सहफसली का मॉडल देखने देश के विभिन्न राज्यों से किसान व चीनी मिलों के अधिकारी आ चुके हैं. उन्हें विभिन्न स्थानों पर सम्मानित भी किया जा चुका है. उन्होंने नेपाल, छत्तीसगढ़ समेत कई अन्य राज्यों में किसानों को प्रशिक्षित भी किया है. उनका तैयार बीज उत्तर प्रदेश के कई जनपदों में चीनी मिलें व किसान ले जाते हैं.